कई साल पहले (फरवरी 1994) मैंने 'समकालीन जनमत' पत्रिका में एक ख़त लिखा था। उम्र कम थी तो ऐसी चीज़ें लिख सकता था जिनको लिखते हुए आज संकोच होता है। इधर वैलेंटाइन डे के पहले की घटनाओं को लेकर काफी हो हल्ला हुआ तो मुझे वह ख़त याद आया। ख़त में बात प्रेम और यौन पर है। प्रेम और यौन एक बात नहीं हैं, इस तरह की आपत्ति हो सकती है, फिर भी मुझे लगा कि दो महीने ब्लाग न लिखने के बाद लिखने लायक बात यह है। मैं उस ख़त को यहाँ हूबहू टाइप कर रहा हूँ। सिर्फ एक बात कि जिन लोगों के नाम इस ख़त में आए हैं, उनका मैं बहुत सम्मान करता हूँ और इसलिए असहमति जताते हुए उनके मूल लेख न शामिल कर पाने से दुविधा हो रही है। अगर किसी को वे लेख प्राप्त हो सकें तो भेज सकते हैं, मैं यहीं पोस्ट कर दूँगा। ख़त में समय के संदर्भ को 1993-94 से लें, यानी दस साल पहले का मतलब 1993-84 आदि। 'समकालीन जनमत' (15-28 फरवरी 1994): मंच यौन-संबंध वाम-चिंतन के दायरे से बाहर क्यों -लाल्टू, चंडीगढ़ आज से करीब पंद्रह साल पहले संयुक्त राज्य अमरीका में कुछ वामपंथी समगठनों द्वारा प्रकाशित यौन-शिक्षा के पैंफलेट देखे थे। तब बड़ा आश्चर्...