Monday, June 30, 2008

एर्नेस्तो गुएवारा दे ला सर्ना

हाल में कई उम्दा फिल्में देखीं। इनमें वाल्टर सालेस की चे गुएवारा पर बनाई फिल्म 'द मोटरसाइकिल डायरीज़' है। सालेस ब्राज़ीलियन है, जहाँ पुर्तगाली भाषा बोली जाती है, पर फिल्म का कथानक स्पानी भाषा में है और मूल स्रोत आर्ख़ेन्तीना के एक लेखक की किताब है। स्पानी भाषा में होने के बावजूद ब्राज़ील की ओर से यह फिल्म कई अंतर्राष्ट्रीय उत्सवों में पेश हुई। फिल्म में चे के दाढ़ी और टोपी वाले चे बनने से पहले की कहानी है। आर्ख़ेन्तीना के एर्नेस्तो गुएवारा दे ला सर्ना और उसका मित्र आल्बर्तो ग्रानादो डाक्टरी की पढ़ाई के आखिरी पड़ाव पर मोटर साइकिल पर दक्षिण अमरीकी देशों की सैर पर निकल पड़ते हैं। युवाओं का सफर जैसा होता है, बहुत कुछ वैसा ही है, कहानी में रोमांच है, प्रेम है, मस्ती है, पर यह चे की कहानी है और इसमें बीसवीं सदी के एक महान मानवतावादी क्रांतिकारी का बनना है। एक भावुक युवा का क्रांतिकारी बनना है, जिसने हमसे पहले और बाद तक की पीढ़ियों को प्रेरित किया। यात्रा के दौरान चे ने जाना कि दुनिया के मेहनती लोग किस तरह अन्यायपूर्ण सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। फिल्म के बेहतरीन दृश्यों में प्रेमी चे और कुष्ठ आश्रम का डाक्टर चे हैं। कहानी में चे सभी दक्षिण अमरीकी लोगों को एक समुदाय की तरह देखता है और क्रांति का आह्वान करता है, पर चे हमलोगों के लिए सिर्फ दक्षिण अमरीकी नहीं था, जहाँ भी अन्याय के खिलाफ संघर्ष है, चे सूरज की तरह रोशनी फैलाता हुआ वहाँ मौजूद है। सी आई ए ने उसे बोलीविया में भले ही मार दिया हो, वह छत्तीसगढ़ में कभी शंकर गुहानियोगी तो कभी बिनायक बन कर आ जाता है। चे कभी मर नहीं सकता, उसकी आत्मा हम सब लोगों में है, जहाँ भी इंसान का इंसान के लिए प्यार है, चे वहाँ मौजूद है।

ओम थानवी ने भारत में चे के सफर पर महत्त्वपूर्ण और रोचक आलेख लिखे हैं, जिन्होंने अभी तक पढ़े नहीं, सुनील दीपक के सौजन्य से यहाँ उपलब्ध हैं। बाद में ये लेख मोहल्ला या हाशिया में से किसी एक में आए थे - मुझे अब याद नही आ रहा किसमें देखा था।

Thursday, June 05, 2008

सबको जेल में डाल दो

हाशिया का ब्लॉग खोलते ही बिनायक सेन की तस्वीर दिखती है। दाढ़ी वाली मुस्कराती शक्ल।
बहुत गुस्सा आता है कि ऐसा खूबसूरत शख्स जेल में बंद है। शायद देश के सभी भले लोगों को छत्तीसगढ़ चलना चाहिए और सरकार से कहना चाहिए कि हम सबको जेल में डाल दो।


हम सबको बंद कर लो, सरकार बहादुर
हम सब कभी कभी गलती से भले खयाल सोच लेते हैं।
हमने जेल में नक्सलियों से मुलाकात नहीं की
गाँधी को भी नहीं देखा, पर क्या करें जनाब
आते जाते इधर उधर की चर्चियाते
कोई न कोई अच्छी बात दिमाग में आ ही जाती है।
साँईनाथ, अरुंधती राय, अग्निवेश अभी बाहर खड़े हैं,
हममें से कोई कुछ पढ़ा रहा है, कोई गीत गा रहा है,
कोई और कुछ नहीं तो मंदिर मस्जिद जा रहा है।
हम सबको बंद कर लो, सरकार बहादुर
हम सब देश के लिए खतरनाक हैं

हमें गरीबी पसंद नहीं, पर गरीब पसंद हैं
हम यह तो नहीं सोचते कि गरीबों को पंख लग जाएँ
पर यह चाहते हैं कि गरीब भी इतना खा सकें कि
वे कविताएँ पढ़ने लगें
इतनी खतरनाक बात है यह
कानून की नई धाराएँ बनाइए मालिक
हमें बाहर न रखें, देश को देश से बचाएँ
बहुत बड़ा सा जेल बनाएँ, जिसमें हमारे अलावा
आस्मान भी समा जाए, इतनी रोशनी
न होने दो सरकार कि किसी को
दाढ़ी वाली मुस्कराती शक्ल दिख सके।


दो सालों के बाद फिर स्टोनहेंज देखने गया। साथ यहाँ हमारे मेजबान प्रोफेसर, मेरे दो शोधकार्य कर रहे छात्र और चीन से आया एक छात्र था। आसपास के कुछ और इलाके भी फिर से देखे।
अभी राजा राममोहन राय की कब्र दुबारा देखने जाना बाकी है।