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Showing posts from January, 2008

साथ रह गए कभी न छूटने वाले इन घावों में

यह जो गाँव पास से गुज़र रहा है इसमें तुम्हारा जन्म हुआ जब भी यहाँ से गुज़रता हूँ स्मृति में घूम जाती हैं तुम्हारी आँखें बचपन में जिन्हें तस्वीर में देखते ही हुआ सम्मोहित तब से कई बार धरती परिक्रमा कर चुकी सूरज के चारों ओर तुम्हारे शब्द कई बार बन चुके बहस के औजार लंबे समय तक कुछ लोगों ने तुम्हारी पगड़ी पर सोचा छायाचित्रों में तुम नहीं तुम्हारी पगड़ी का होना न होना देखा और हमने जाना कि यह वक्त तुम्हें नहीं तुम्हारे नाम को याद रखता है हमारे वक्त में दुनिया बदलती नहीं किसी के आने-जाने से चिंताएँ, हँसी मजाक, दूरदर्शन, खेलकूद सब चलते रहते हैं ब्रह्मांड के नियमों अनुसार यह छायाओं का वक्त है चित्र हैं छायाओं के जिनसे आँखें निकाल दी हैं वक्त के जादूगरों ने रंग दे बसंती गाते हुए हर कोई सीना ठोकता है और फिर या तो जादूगरों की जंजीरों में गला बँधवा लेता है या दृष्टिहीन छायाओं में खो जाता है गीत गाता हुआ आदमी मूक हो जाता है गाँव के पास से गुज़रते हुए देखता हूँ गाँव अब शहर बन रहा है आस पास जो झंडे लगे हैं वह जिन हवाओं में लहरा रहे हैं उनमें खरीद फरोख्त के मुहावरे हैं बीच सड़क गुज़रते हुए सीने से लग...