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Showing posts from October, 2007

स्मृति में प्रेम

पच्चीस साल से मैं इंतज़ार कर रहा था, जाने कितने दोस्तों से कहा था कि डोरिस लेसिंग को नोबेल मिलेगा। आखिरकार मिल ही गया। 'चिल्ड्रेन अॉफ व्हायोलेंस' शृंखला में तीसरी पुस्तक 'लैंडलॉक्ड' से मैं बहुत प्रभावित हुआ था। जाने कितनों को वह किताब पढ़ाई। अब फिर पढ़ने को मन कर रहा है, पता नहीं मेरी वाली प्रति किसके पास है। वैसे तो किसी भी अच्छी किताब में कई बातें गौरतलब होती हैं, पर स्मृति में मार्था और एक पूर्वी यूरोपी चरित्र था, जिसका नाम याद नहीं आ रहा, उनका प्रेम सबसे अधिक गुँथा हुआ है। मुझे अक्सर लगा है कि डोरिस ने हालाँकि साम्यवादी व्यवस्थाओं के खिलाफ काफी कुछ कहा लिखा है, 'लैंडलॉक्ड' में क्रांतिमना साम्यवादिओं के गहरे मानवतावादी मूल्यों की प्रतिष्ठा ही प्रमुख दार्शनिक तत्व है। शायद इसी वजह से डोरिस को पुरस्कार मिलने में इतने साल भी लगे।

मंगल मंदिर खोलो दयामय

गाँधी जी के जन्मदिन से दो दिन पहले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में साबरमती आश्रम में गाए गीतों का गायन सुना। हमारे सहयोगी संगीत शिक्षक वासुदेवन ने खुद ये गीत गाए। बड़ा मजा आया। वैष्णो जन और रघुपति राघव जैसे आम सुने जाने वाल गीतों के अलावा छः सात गीत और भी थे, जिनमें मुझे सबसे ज्यादा 'मंगल मंदिर खोलो दयामय' ने प्रभावित किया। मेरा अपना कोीई खुदा नहीं है, पर संगीत के जरिए मैं भक्तिरस में डूब पाने वालों का सुख समझता हूँ। यानी मेरे लिए संगीत का जो भी अनपढ़ आनंद है, वह, और कविता का आनंद, यही बहुत है। ईश्वर की धारणा से जिनको अतिरिक्त सुकून मिलता है, वे खुशकिस्मत होंगे। ऊपर की पंक्तियाँ लिखने के बाद दो दिन बीत गए। इस बीच कैंपस में एक बड़ी दुःखद घटना हो गई। हमारे कैंपस में युवा विद्यार्थी बहुत संयत माने जाते हैं। पिछले आठ सालों में, जब से संस्थान बना है, ऐसी कोई दुःखद घटना नहीं हुई थी। हम सब लोग मर्माहत और उदास हैं। कल अॉस्ट्रेलिया वाला क्रिकेट मैच है और शहर में लोगों को खेल का बुखार चढ़ा हुआ है। पर शहर तो शहर है, बुखार हो या खुमारी, सीधा टेढ़ा चलता ही रहता है। बहुत ही खराब ट्रैफिक का यह श...