खिचड़ी
बत्तख था, साही भी, (व्याकरण को गोली मार)
बन गए बत्ताही जी, कौन जाने कैसे यार!
बगुला कहे कछुए से, "बल्ले-बल्ले मस्ती
कैसी बढ़िया चले रे, बगुछुआ दोस्ती!"
तोतामुँही छिपकली, बड़ी मुसीबत यार
कीड़े छोड माँग न बैठे, मिर्ची का आहार!
छुपी रुस्तम बकरी, चाल चली आखिर
बिच्छू की गर्दन जा चढ़ी, धड़ से मिला सिर!
जिराफ कहे साफ, न घूमूँ मैदानों में
टिड्डा लगे भला उसे, खोया है उड़ानों में!
गाय सोचे - ले ली ये कैसी बीमारी
पीछे पड़ गई मेरे कैसे मुर्गे की सवारी!
हाथील का हाल देखो, ह्वेल माँगे बहती धार
हाथी कहे - "जंगल का टेम है यार!"
बब्बर शेर बेचारा, सींग नहीं थे उसके
मिल गया जो हिरण, सींग आए सिर पे!
-सुकुमार राय
('आबोल ताबोल' की बीस कविताओं का अनुवाद
'अगड़म बगड़म' संभावना प्रकाशन, १९८९)
तस्वीरें सुकुमार राय की खुद की बनाई हैं।
Comments
पिपरिया के साथियों की कृपा से बरसों पहले आपके 'आबोल-ताबोल' के अनुवाद देखे थे.आशा है,रामगरुडेर छाना और कुमडो पोटाश भी हिन्दी वालों के लिए पेश करेंगे.
anshumala
नेकी और पूछ पूछ!
बेशक इस्तेमाल कीजिए! खुशी हमारी कि आपने याद किया! दुआ है कि खुशहाल होंगी!