खबर
जाड़े की शाम
कमरा ठंडा ठन्डा
इस वक्त यही खबर है
- हालाँकि समाचार का टाइम हो गया है
कुछेक खबरें पढ़ी जा चुकी हैं
और नीली आँखों वाली ऐश्वर्य का ब्रेक हुआ है
है खबर अँधेरे की भी
काँच के पार जो और भी ठंडा
थोड़ी देर पहले अँधेरे से लौटा हूँ
डर के साथ छोड़ आया उसे दरवाजे पर
यहाँ खबर प्रकाश की जिसमें शून्य है
जिसमें हैं चिंताएं, आकांक्षाएँ, अपेक्षाएँ
अकेलेपन का कायर सुख
और बेचैनी........
........इसी वक्त प्यार की खबर सुनने की
सुनने की खबर साँस, प्यास और आस की
कितनी देर से हम अपनी
खबर सुनने को बेचैन हैं।
(इतवारी पत्रिका - ३ मार्च १९९७)
********************************************************
अरुन्धती सलाम
मुझे 'इंडियन इंग्लिश' नामक लेखन से बहुत चिढ़ है। पूर्वाग्रह है। फिर भी यदा कदा कुछ अच्छा पढ़ ही लेता हूँ। अरुन्धती राय का 'गॉड अॉफ स्मॉल थिंग्स' मेरी बेटी को बहुत पसंद है। अरुन्धती से मिलने से पहले ही उसने पुस्तक की प्रशंसात्मक समीक्षा की हुई थी - मिलने के बाद तो क्या कहने। मुझे उपन्यास से तो बड़ी समस्याएँ हैं। चूँकि विज्ञान की तरह ही साहित्य में भी मेरी घुसपैठ सीमित स्तर तक है, इसलिए कई बार खुद ही संदेह होने लगता है कि शायद मेरे विचार महज ईर्ष्या की वजह से हैं। पर मुझे अरुन्धती से बेहद प्यार है - हालाँकि मैं कभी उससे मिला नहीं हूँ। बेटी मिल चुकी है, मैं नहींं। उसमें वह कुछ है, इंसान में प्यार करने लायक जो तत्व होने चाहिएं।
फिलहाल तो सिर्फ इसलिए कि उसने साहित्य अकादमी का पुरस्कार लेने से मना कर दिया है। अरुन्धती को यह पुरस्कार उसकी पुस्तक 'द आलजेब्रा अॉफ इनफाइनाइट जस्टिस' के लिए दिया जाना है। चूँकि साहित्य अकादमी को पैसा सरकार से मिलता है, और भारत सरकार निश्चित रुप से जन विरोधी है, इसकी अंतर्देशीय और अंतर्राष्ट्रीय़ नीतियों से अरुन्धती सहमत नहीं है, इसलिए उसने कह दिया - पुरस्कार वुरस्कार नहीं चाहिए।
सलाम अरुन्धती सलाम।
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पी जी आई (पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीचिउट अॉफ मेडिकल रीसर्च) में एक दलित कामगार दाखिल है जिसे अपने मालिक की पिटाई की वजह से गैंग्रीन हो चुके घायल पैर कटवाने पड़े हैं। कुछ साथियों ने संपर्क किया था। क्या कहें - यह मेरा चिंडिया। हर रोज ही ऐसी कोई खबर होती है।
जाड़े की शाम
कमरा ठंडा ठन्डा
इस वक्त यही खबर है
- हालाँकि समाचार का टाइम हो गया है
कुछेक खबरें पढ़ी जा चुकी हैं
और नीली आँखों वाली ऐश्वर्य का ब्रेक हुआ है
है खबर अँधेरे की भी
काँच के पार जो और भी ठंडा
थोड़ी देर पहले अँधेरे से लौटा हूँ
डर के साथ छोड़ आया उसे दरवाजे पर
यहाँ खबर प्रकाश की जिसमें शून्य है
जिसमें हैं चिंताएं, आकांक्षाएँ, अपेक्षाएँ
अकेलेपन का कायर सुख
और बेचैनी........
........इसी वक्त प्यार की खबर सुनने की
सुनने की खबर साँस, प्यास और आस की
कितनी देर से हम अपनी
खबर सुनने को बेचैन हैं।
(इतवारी पत्रिका - ३ मार्च १९९७)
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अरुन्धती सलाम
मुझे 'इंडियन इंग्लिश' नामक लेखन से बहुत चिढ़ है। पूर्वाग्रह है। फिर भी यदा कदा कुछ अच्छा पढ़ ही लेता हूँ। अरुन्धती राय का 'गॉड अॉफ स्मॉल थिंग्स' मेरी बेटी को बहुत पसंद है। अरुन्धती से मिलने से पहले ही उसने पुस्तक की प्रशंसात्मक समीक्षा की हुई थी - मिलने के बाद तो क्या कहने। मुझे उपन्यास से तो बड़ी समस्याएँ हैं। चूँकि विज्ञान की तरह ही साहित्य में भी मेरी घुसपैठ सीमित स्तर तक है, इसलिए कई बार खुद ही संदेह होने लगता है कि शायद मेरे विचार महज ईर्ष्या की वजह से हैं। पर मुझे अरुन्धती से बेहद प्यार है - हालाँकि मैं कभी उससे मिला नहीं हूँ। बेटी मिल चुकी है, मैं नहींं। उसमें वह कुछ है, इंसान में प्यार करने लायक जो तत्व होने चाहिएं।
फिलहाल तो सिर्फ इसलिए कि उसने साहित्य अकादमी का पुरस्कार लेने से मना कर दिया है। अरुन्धती को यह पुरस्कार उसकी पुस्तक 'द आलजेब्रा अॉफ इनफाइनाइट जस्टिस' के लिए दिया जाना है। चूँकि साहित्य अकादमी को पैसा सरकार से मिलता है, और भारत सरकार निश्चित रुप से जन विरोधी है, इसकी अंतर्देशीय और अंतर्राष्ट्रीय़ नीतियों से अरुन्धती सहमत नहीं है, इसलिए उसने कह दिया - पुरस्कार वुरस्कार नहीं चाहिए।
सलाम अरुन्धती सलाम।
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पी जी आई (पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीचिउट अॉफ मेडिकल रीसर्च) में एक दलित कामगार दाखिल है जिसे अपने मालिक की पिटाई की वजह से गैंग्रीन हो चुके घायल पैर कटवाने पड़े हैं। कुछ साथियों ने संपर्क किया था। क्या कहें - यह मेरा चिंडिया। हर रोज ही ऐसी कोई खबर होती है।
Comments
अरुन्धती राय की गॉड ओफ..., झूम्पा लाहिडी की इंतेर्प्रेतर ओफ.., सल्मान रश्दी की ग्राईमस और शेम पसंद आई. विक्रम सेठ की इक्वल मुसीक..मज़ा नहीं आया.शांता रामा राव की बहुत पहले पढी, तब अच्छी लगी थी.
एक किताब है इन्नर कोर्टयार्ड..महिला लेखकों की कहानियाँ, कुछ अनुवाद भी हैं (शायद 'इंडियन इंग्लिश' के परिभाषा में शत प्रतिशत न आये)ये बहुत अच्छी लगी. और भी कई किताब और लेखक याद आ रहे हैं, पर फिर कभी.
प्रत्यक्षा