('अकार' के ताज़ा अंक में प्रकाशित) 'अक्सर आलोचक उसमें अनुशासन की कमी की बात करते हैं। अरे सालो, वो फिल्म का ग्रामर बना रहा है। यह ग्रामर सीखो। ... घिनौनी तबाह हो चुकी किसी चीज़ को खूबसूरत नहीं बनाया जा सकता। ... इंसान के प्रति विश्वसनीय होना, ग़रीब के प्रति ईमानदार होना, यह कला की शर्त है। पैसे-वालों के साथ खुशमिज़ाजी से कला नहीं बनती। पोलिटिकली करेक्ट होना दलाली है। I stand with the left wing art, no further left than the heart – वामपंथी आर्ट के साथ हूँ, पर अपने हार्ट (दिल) से ज़्यादा वामी नहीं हूँ। इस सोच को क़ुबूल करना, क़ुबूल करते-करते एक दिन मर जाना - यही कला है। पोलिटिकली करेक्ट और कल्चरली करेक्ट बांगाली बर्बाद हों, उनकी आधुनिकता बर्बाद हो। हमारे पास खोने को कुछ नहीं है, सिवाय अपनी बेड़ियों और पोलिटिकली करेक्ट होने के।' यू-ट्यूब पर ऋत्विक घटक पर नबारुण भट्टाचार्य के व्याख्यान के कई वीडियो में से एक देखते हुए एकबारगी एक किशोर सा कह उठता हूँ - नबारुण! नबारुण! 1 व्याख्यान के अंत में ऋत्विक के साथ अपनी बहस याद करते हुए वह रो पड़ता है और अंजाने ही मैं साथ रोने लगता हू...
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Very good speech, really makes you think.