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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, May 30, 2009

रोशनी

कभी कभी तारों भरा आस्माँ देख
थक जाता हूँ।

इत्ती बड़ी दुनिया
छोटा मैं

फिर खयाल आता है
तारे हैं
क्योंकि वे टिमटिमाते हैं

रोशनी देख सकने की ताकत का अहसास
मुझे एक तारा बनने को कहता है

तब आस्माँ बहुत सुंदर लगता है।
(1988: अप्रकाशित)

3 Comments:

Blogger प्रदीप कांत said...

रोशनी देख सकने की ताकत का अहसास
मुझे एक तारा बनने को कहता है

तब आस्माँ बहुत सुंदर लगता है।

आज सबसे बड़ी आवश्यकता रोशनी देख सकने की ताकत की है.

5:35 PM, May 31, 2009  
Blogger GopalJoshi said...

padh kar kuch yaad aa gaya..
"jugnuon ko saath le kar raat raushan keejiye, raasta suraj ka dekha to sahar ho jayegi !!"

aur aap ki liye

Chal Ae nazeer kuch ess tarah se kaarwan ke saath, Jab tu na chal sake too tere daastan chale.....

Keep writing .. Best Wishes

2:08 AM, June 02, 2009  
Blogger sandeep sharma said...

bahut khoobsurat lines....

12:39 AM, June 14, 2009  

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