छोटे शहर की लड़कियाँ
१९८८ में हरदा एक छोटा शहर था। अब जिला मुख्यालय है। मैं बड़े शहर में जन्मा पला, इसके पहले कभी किसी छोटे शहर में रहा न था। सबसे ज्यादा जिस बात ने मुझे प्रभावित किया, वह था युवाओं की छटपटाहट। मुझे लगता था कि ऊर्जा का समुद्र है, जो मंथन के लिए तैयार है। बहरहाल, संस्था के केंद्र में एक पुस्तकालय था, जहाँ छोटे बच्चों से लेकर कालेज की लड़कियाँ तक आती थीं। खास तौर पर लड़कियों में मुझे लगता था जैसे उनके लिए केंद्र में आना घर परिवार के संकीर्ण माहौल से मुक्ति पाना था। मुझे तब पहली बार लगा था कि इस देश में अगर लड़कियों को घर से बाहर रहने की आज़ादी हो तो आधे से ज्यादी लड़कियाँ निकल भागेंगी। लगता था अगर हम लड़कियों के लिए सुरक्षित जगहें बना सकें तो बहुत बड़ा काम होगा। हाँ भई, उम्र कम थी, संवेदनशील था, तो ऐसा ही सोचता था। उन दिनों यह कविता लिखी थी जो तीन चार पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और मेरे पहले संग्रह 'एक झील थी बर्फ की' में भी है।
छोटे शहर की लड़कियाँ
कितना बोलती हैं
मौका मिलते ही
फव्वारों सी फूटती हैं
घर-बाहर की
कितनी उलझनें
कहानियाँ सुनाती हैं
फिर भी नहीं बोल पातीं
मन की बातें
छोटे शहर की लड़कियाँ
भूचाल हैं
सपनों में
लावा गर्म बहता
गहरी सुरंगों वाला आस्मान है
जिसमें से झाँक झाँक
टिमटिमाते तारे
कुछ कह जाते हैं
मुस्कराती हैं
तो रंग बिरंगी साड़ियाँ कमीज़ें
सिमट आती हैं
होंठों तक
रोती हैं
तो बीच कमरे खड़े खड़े
जाने किन कोनों में दुबक जाती हैं
जहाँ उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता
एक दिन
क्या करुँ
आप ही बतलाइए
क्या करुँ
कहती कहती
उठ पड़ेंगी
मुट्ठियाँ भींच लेंगी
बरस पड़ेंगी कमज़ोर मर्दों पर
कभी नहीं हटेंगी
फिर सड़कों पर
छोटे शहर की लड़कियाँ
भागेंगी, सरपट दौड़ेंगी
सबको शर्म में डुबोकर
खिलखिलाकर हँसेंगी
एक दिन पौ सी फटेंगी
छोटे शहर की लड़कियाँ।
(१९८९)
बाद में चंडीगढ़ में बड़े शहर की लड़कियाँ शीर्षक से एक और कविता भी लिखी थी, वह फिर कभी।
पिछले पोस्ट पर जो टिप्पणियाँ आई हैं, उस संबंध में भूतपूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश कृष्ण अय्यर का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा यह खत पठनीय है।
बाकी इस जानकारी के लिए धन्यवाद कि विनायक सेन नक्सलवादी है, मुझे तो पुलिस ने ही बतला दिया था कि मैं आतंकवादी हूँ। न्यायाधीश कृष्ण अय्यर भी कुछ वादी होगा। आजकल गाँधीवाद के भी खतरनाक पहलू लगातार सामने आ रहे हैं। वैसे विनायक सेन को और दो चार दिन जेल में रख लो - देश के लिए वह दाढीवाला मुस्कराता चेहरा बहुत बड़ा खतरा है।
छोटे शहर की लड़कियाँ
कितना बोलती हैं
मौका मिलते ही
फव्वारों सी फूटती हैं
घर-बाहर की
कितनी उलझनें
कहानियाँ सुनाती हैं
फिर भी नहीं बोल पातीं
मन की बातें
छोटे शहर की लड़कियाँ
भूचाल हैं
सपनों में
लावा गर्म बहता
गहरी सुरंगों वाला आस्मान है
जिसमें से झाँक झाँक
टिमटिमाते तारे
कुछ कह जाते हैं
मुस्कराती हैं
तो रंग बिरंगी साड़ियाँ कमीज़ें
सिमट आती हैं
होंठों तक
रोती हैं
तो बीच कमरे खड़े खड़े
जाने किन कोनों में दुबक जाती हैं
जहाँ उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता
एक दिन
क्या करुँ
आप ही बतलाइए
क्या करुँ
कहती कहती
उठ पड़ेंगी
मुट्ठियाँ भींच लेंगी
बरस पड़ेंगी कमज़ोर मर्दों पर
कभी नहीं हटेंगी
फिर सड़कों पर
छोटे शहर की लड़कियाँ
भागेंगी, सरपट दौड़ेंगी
सबको शर्म में डुबोकर
खिलखिलाकर हँसेंगी
एक दिन पौ सी फटेंगी
छोटे शहर की लड़कियाँ।
(१९८९)
बाद में चंडीगढ़ में बड़े शहर की लड़कियाँ शीर्षक से एक और कविता भी लिखी थी, वह फिर कभी।
पिछले पोस्ट पर जो टिप्पणियाँ आई हैं, उस संबंध में भूतपूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश कृष्ण अय्यर का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा यह खत पठनीय है।
बाकी इस जानकारी के लिए धन्यवाद कि विनायक सेन नक्सलवादी है, मुझे तो पुलिस ने ही बतला दिया था कि मैं आतंकवादी हूँ। न्यायाधीश कृष्ण अय्यर भी कुछ वादी होगा। आजकल गाँधीवाद के भी खतरनाक पहलू लगातार सामने आ रहे हैं। वैसे विनायक सेन को और दो चार दिन जेल में रख लो - देश के लिए वह दाढीवाला मुस्कराता चेहरा बहुत बड़ा खतरा है।
7 Comments:
वाकई लाजवाब...कई दफा मैं भी इसी तरह सोचता था लेकिन उसे कोई शक्ल दे पाने में नाकाम था। आपने दिल की बात कही दी। धन्यवाद.
मुझे बहुत पसंद आई ...
मेरा अपना जहान
कविता में आपने अपने उद्गार बहुत खूबसूरत तरीके से प्रकट किये हैं! वाकई काबिलेतारीफ!
जमाना अब भी बहुत नहीं बदला है ....वैसे लड़कियों के मामले में सारे शहर एक सा बिहेवियर करते है...हमने हॉस्टल लाइफ में भी यही पाया है....आपकी कविता अभी भी प्रसांगिक है......
उम्मीद है कि इसे चोखेरबाली मे संग्रहीत कर लेने पर आप बुरा नही मानेंगे !
रोती हैं
तो बीच कमरे खड़े खड़े
जाने किन कोनों में दुबक जाती हैं
जहाँ उन्हें कोई नहीं पकड़ सकता
Behatareen kavita
"छोटे शहर की लड़कियाँ" बहुत पसंद आई । "बड़े शहर की लड़कियाँ" कविता लिखने में देर न लगाईएगा।
Post a Comment
<< Home