Tuesday, May 26, 2009

अभी समय है

अभी समय है

अभी समय है
कि बादलों को शिकायत सुनाएँ
धरती के रुखे कोनों की
मुट्ठियाँ भर पीड़ गज़ल कोई गाएँ

अभी समय है
आषाढ़ के रोमांच का मिथक
यह रिमझिम भ्रमजाल हटाएँ
सहज दिखता पर सच नहीं जो
सब झूठ है सब झूठ है चिल्लाएँ

अभी समय है
बिजली को दर्ज़ यह कराएँ
बिकती सड़कों पर सौदामिनी
उसकी गीली रात भूखी है
सिहरती बच्ची के बदन पर
शब्द कुछ सही बिछाएँ

अभी समय है
कुछ नहीं मिलता कविता बेचकर
कविता में कुछ कहना पाखंड है
फिर भी करें एक कोशिश और
दुनिया को ज़रा और बेहतर बनाएँ।
(दैनिक भास्कर – चंडीगढ़ २०००)

6 comments:

Asha Joglekar said...

कुछ नहीं मिलता कविता बेचकर
कविता में कुछ कहना पाखंड है
फिर भी करें एक कोशिश और
दुनिया को ज़रा और बेहतर बनाएँ।
सटीक ।

GopalJoshi said...

bhaut khub !!!

anurag vats said...

haan kyonki duniya roz banti hai...

प्रदीप कांत said...

अभी समय है
कुछ नहीं मिलता कविता बेचकर
कविता में कुछ कहना पाखंड है
फिर भी करें एक कोशिश और
दुनिया को ज़रा और बेहतर बनाएँ।

बेहतरीन पँक्तियाँ.

GopalJoshi said...

हरि ॐ पवार शाहब की एक कविता की कुछ पंग्तेयाँ आप की लिए " उत्तर कहीं नहीं मिलता है शर्म सार हो जाता हूँ तो मेंं मेरे कविता को हतियार बना कर गाता हूँ !!! "

vasudha said...

yehi samay hai. samay chook puni ka pachhtane.