चमक
चौंधियाती
चमक
है
ज़मीं के ऊपर।
हीरे
खदानों में दबे पड़े हैं।
ज़मीं
पर खुद को धोखा देते हम खुश
हैं।
पानी
की चमक से मुहावरा बना कि जल
जीवन है।
प्याले
से लेकर आँखों की तराई तक आत्मा
की चमक दिखी।
त्सुनामी
ने अश्कों और प्यार में डूबे
गीत कुचल डाले।
पानी
को पारदर्शी रहना है।
रेगिस्तानों,
बीहड़ों,
दलदलों
से बचते चमक बनाए रखनी है।
कभी-कभार
खयाल आता है कि पानी बह गया
है।
छलती
चौंध में जिजीविषा उठती है
चमक वापस लाने।
पानी
वापस लाने।
(वागर्थ
-
2018)
2 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जगदीशचन्द्र माथुर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
Bahut sundar kavita hai sir...
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