जुड़ो
1
कायनात
में क्यूबिट कलाम लिख रहे हैं।
परस्पर प्यार में उलझे हैं
सूक्ष्मतम
कण। हर पल ध्वनि
गूँजती है,
प्यार
तरंगित होता है नीहारिकाओं
के पार। हम
सब इसी गूँज में
गूँजते हैं। धरती और आकाश
हमारे साथ गूँजते हैं। हम
गूँजते हैं
साम्य के नाद में;
कायनात
में गूँजती है आज़ादी। यह गूँज
हमारी प्रार्थना है,
सजदा
है,
क्यूबिट
कणों में टेलीपोर्ट होकर
कायनात के चक्कर लगा आती है
गूँज। हमारा प्यार हमारा रब
है। हमने मीरा से प्यार किया,
परवीन
शाकिर से प्यार किया। हीर और
रांझा हम,
हम
हादिया,
इशरत
हम।
हम प्यार,
हम
प्रेमी। हम आज़ाद,
हम
आज़ादी। हम समंदर का नील,
हम
प्रतिरोध का लाल। हम खुली हवा
की मिठास,
हम
पंछी लामकां।
2
पढ़ना
है,
पढ़ाना
है। खोखे पर बैठ चाय पीनी है,
पर
दिमाग को कुंद नहीं होने
देना
है। उदासीन होना है,
उदास
नहीं होना है। सुर साधना है।
कुदरत को
सुनना है,
कुदरत
को साधना है। चाँद-सूरज
के साथ इस धरती को खूबसूरत
रहने देना है। सूरज को गिरने
नहीं देना,
चाँद
को भागने नहीं देना है,
तारों
को
खगोली चक्कर लगाते रहना
है, हर
किसी ने प्यार जीना है।
आनंदधाराएं
अनंत हैं – परंपरा के कई छोर
हैं। सगुन,
निरगुन,
धम्म,
हर
दीन
परंपरा है। गीता पढ़ लो या
ग्रंथ साहब;
या
कोई बाइबिल या कुरान पढ़े। या
कि
चारवाक जिए। कार्बोनेट
अणु में समरूपता को पढ़ना जैसे
शफाकत अमानत
अली को सुनना। अ
के साथ ब को पढ़ना है। कुछ-कुछ
अलग सब।
सूरज के
रहते बादल दिख गए;
जैसे
संकट में मेरी हिन्दी कमज़ोर
पड़ जाए तो
थोड़ी पंजाबी बोल
लूँ!
मान
लो जिसे बेहतर मानते हो,
पर
यह वजह नहीं कि
अलग-थलग
रहा जाए।
डर
है कि सूरज बिखर रहा है खरबों
टुकड़ों में,
ज़मीं
पर आग धधक रही है हर
ओर। शैतान
के लंबरदार शिश्न पकड़े हर हर
घर घर का नारा उछाल रहे हैं कि
हम डर जाएँ। हम नहीं डरेंगे;
हम
साथ हैं तो हरी-भरी
ज़मीं हमारे साथ है।
बिना दूरबीन भी दिख जाएँगी किसी
और ग्रह की सतह पर हरी सब्जियाँ।
या
कि अंतरिक्ष में किसी धूमकेतु
पर राहुल राम नई केमिस्ट्री
का सैक्सोफ़ोन बजा
रहा होगा ।
जुड़ो,
लाल
के पहरेदारो,
लाल
पहरेदारो,
तरह-तरह
की लालिमा से
जुड़ो। कार्बोनेट
अणु,
शफाकत
अमानत अली,
सगुन,
निरगुन,
धम्म,
चारवाक,
भूगोल,
इतिहास,
कोई
माफ नहीं करेगा 'गर
सूरज गिर पड़े,
‘गर
चाँद खफा हो जाए।
(समकालीन जनमत; 2018)
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