Friday, July 13, 2018

जिस्मों पर बलखाते हम


बादल
ज़मीं आस्मां के बीच धूप से बतियाते
हम वहाँ भी बरसते हैं जहाँ हत्याएँ हो रही हैं। मिट्टी हिन्दू-मुसलमान नहीं होती। निहतों और हत्यारों के जिस्म से बहते पानी की उत्तेजना हम
राम-कृष्ण-बुद्ध और दीगर पैगंबरों पर बरसते
आपस में टकराते ग़र्म ज़मीं पर ठंडक लाते। समंदर की लहरों को प्यार से चूमते। नंगे जिस्मों पर बलखाते हम।
(वागर्थ - 2018)

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