Friday, December 29, 2017

नया साल मुबारक

कुछ तो शरारत का हक मुझे भी :-)

आसान कविता


यह कविता आसान कविता है
फूल को फूल और चिड़िया को चिड़िया कहती है
मोदी को मोदी और हिटलर को हिटलर कहती है
बात तुम तक ले जाती है
प्रगति-प्रयोग-छायावाद नहीं
यहाँ तक कि रेटोरिक भी नहीं है
गद्यात्मक है, पर पद्य है
आदर्श कविता है
दिमाग के तालों को खोलने की कोशिश इसमें नहीं है
पढ़कर कवि को दरकिनार करने वाले खेमेबाज लोग
इसे तात्कालिक नहीं कहेंगे
इस पर जल्द ही किसी मुहल्ले से कोई सम्मान घोषित होगा
बिल्कुल आसान है कविता
जैसे सुबह का नित्य-कर्म
इसे साँचा मानकर चल सकते हैं
इसके आधार पर छपने लायक कविताएँ लिख सकते हैं
गौर करें कि इसमें कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं है
दलित आदिवासी स्त्री तो क्या पंजाबी बंगाली नहीं है


कुछ नहीं कहती सिर्फ इसके कि
बात आप तक ले जाती है
बात कोई बात है ही नहीं तो मैं क्या करूँ।          (बनास जन - 2017)

मुश्किल कविता

ज़ुबान मुश्किल
बातां मुश्किल
कविता हे कि क्या हे रे
हल्लू हल्लू असर डालते
हौला कर दिया रे
भगाओ इसको
अरे मुश्किल अपने ग़ालिब क्या थोड़ा थे
होनाइच हे तो वैसा होवो
ख़लिश बोले तो ख़लिश बोलो
मुश्किल नीं करने का रे
हल्लू हल्लू नईं आने का रे
साफ-साफ बोलो कविता का खटिया मत खड़ा करो रे
क्याऽऽ मतलब कि पोस्ट-लेंग्वेज़
अपुन को इंगलिश में एम ए नहीं करना रे
बाप रे, क्या कविता बोले रे
तुम एक आदमी रे कि बोत सारे रे
कोन मुलुक का तुम एक मुलुक का कि बोत सारे
जो हो वहींच रहने का ना रे
कायकू बदलता रहता हम पकड़ीच नहीं पाता रे
तुम पॉलिटिक्स बोले तो पॉलिटिक्स करो
इश्क करो तो इश्कइच करो
दोनों साथ साथ नहीं होने का रे
अपना बारे में बोलो तो दूसरे को मत लाना
लोगां का बोलना तो अपने को छिपाना
हमूँ किधर शुरु करते रे
समझते तो समझ नहींच आते
पकड़ते तो पकड़ नहींच पाते

कुछ तो रास्ता बतलाना रे। 


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