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रामगरुड़ का छौना

अफलातून ने देखा कि अच्छा मौका है, ये लाल्टू रोता रहता है, इसकी खिंचाई कर ली जाए। तो कह दिया कि 'रामगरुड़ेर छाना' का अनुवाद भी लाइए। तो लो भई, पढ़ो और खूब खींचो मेरी टाँग:- पर हँसना मना है!

रामगरुड़ का छौना

रामगरुड़ का छौना, हँसना उसको म-अ-ना
हँसने कहो तो कहता
"हँसूँगा न-ना, ना-ना,"

परेशान हमेशा, कोई कहीं क्या हँसा!
एक आँख से छिपा-छिपा
यही देखता फँसा

नींद नहीं आँखों में, खुद ही बातों-बातों में
कहता खुद से, "गर हँसे
पीटूँगा मैं आ तुम्हें!"

कभी न जाता जंगल न कूदे बरगद पीपल
दखिनी हवा की गुदगुदी
कहीं लाए न हँसी अमंगल

शांति नहीं मन में मेघों के कण-कण में
हँसी की भाप उफन रही
सुनता वह हर क्षण में!

झाड़ियों के किनार रात अंधकार
जुगनू चमके रोशनी दमके
हँसी की आए पुकार

हँस हँस के जो खत्म हो गए सो
रामगरुड़ को होती पीड़
समझते क्यों नहीं वो?

रामगरुड़ का घर धमकियों से तर
हँसी की हवा न घुसे वहाँ
हँसते जाना मना वहाँ।

(अगड़म-बगड़म; सुकुमार राय के 'आबोल-ताबोल' की कविताओं का अनुवाद; १९८९)

मेरे अनूदित संग्रह में सुकुमार राय द्वारा अंकित रामगरुड़ की तस्वीर है, पर मुझे स्कैन करने के लिए दो मंज़िल नीचे उतरना पड़ेगा। एक बार गया भी तो कोई और लोग इस्तेमाल कर रहे थे। नेट पर तस्वीर मिल नहीं रही है। चलो बाद में लगा देंगे। वैसे अफलातून शायद मेरी तस्वीर को ही रामगरुड़ मनवाना चाहे....
जिनको पता न हो, वे जान लें कि सुकुमार राय प्रसिद्ध फिल्म निर्माता/निर्देशक सत्यजित राय के पिता थे। बांग्ला संस्कृति और मानस पर उनकी अमिट छाप है। उनके बारे में यहाँ देखें।

Comments

Anonymous said…
क्या बात है लाल्टू भाई !वैसे चित्र भी बहुत जरूरी हैं .अब कुम्ड़ो पोटाश ? उसकी हँसी में क्या खतरे थे ?'खबरदार!खबरदार!जेओ न केओ आस्ताबलेर काछे !'

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