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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Thursday, November 25, 2010

दोस्तों के साथ गीत

११ तारीख को कोलकाता से जयपुर होते हुए उदयपुर पहुंचा. विज्ञान समाज और मुक्ति पर तीन दिनों का सेमिनार था. उसके बाद दिल्ली होकर लखनऊ फिर १५ की आधी रात के बाद वापस. आते ही काम का अम्बार. सेमेस्टर के आख़िरी दिनों की मार. इसलिए लम्बे समय से ब्लॉग से छुट्टी ली हुई है.
उदयपुर की सभा एक प्राप्ति थी. मैं हमेशा ही भले लोगों से मिलने और दोस्ती और प्यार के प्रति भावुक रहा हूँ. इसलिए काम की बात से ज्यादा प्यार की बातें ही दिमाग में घूमती हैं. दिन तीन क्या बीते जैसे लम्बे समय के बाद ज़िंदगी लौट आई. लगा जैसे तीस साल वापस युवा दिनों में वापस लौट गया. यहाँ तक कि बेसुरा ही सही पर मैंने दोस्तों के साथ गीत भी गाए.
काम की बात यह कि यह देख कर आश्वस्त हुआ कि विज्ञान विरोधी नवउदारवादियों से अलग चिंतकों की एक पूरी जमात है जो विज्ञान की आलोचना के निर्माण में गंभीरता से जुटी है. इन लोगों की मूल चिंता मानववादी है. मेरे अपने पर्चे पर सब की प्रतिक्रिया से यह ताकत भी मिली कि अब इसे लिख डालना चाहिए.
वहाँ आए चिंतकों में रवि सिन्हा को पहले पढ़ा था. और जैसा पढ़ा था वैसे ही गंभीर उनका भाषण था. तारिक़ इस्लाम को पहली बार जाना. कुछ मेरे पुराने युवा मित्र आए थे जो अलग अलग विश्वविद्यालयों में दर्शन पर शोध और अध्यापन का काम कर रहे हैं.
हिमांशु पांड्या और प्रज्ञा जोशी से दुबारा मिलना एक खूबसूरत अनुभव था. दोनों ने मिलकर कहानी तैयार की थी जिसे पर्चे की जगह हरीश ने पढ़ा. यह कहानी अनुराग वत्स ने सबद में पोस्ट की है.
और बाकी कुछ माहौल में था, झील पर शाम - वगैरह. इसी को सुधा और शंकरलाल ने और रंग चढ़ाया और मैं लम्बे समय तक बनी रहने वाली ऊर्जा लेकर लौटा.

1 Comments:

Blogger Ham-Kalam said...

Nice and refreshing one.



Lallan

6:08 PM, November 25, 2010  

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