चिट्ठा जगत में जिसकी जो मर्जी है लिख सकता है. मैंने हमेशा इसे एक डायरी की तरह लिया है पर अक्सर लोगों के हस्तक्षेप से मेरा पोस्ट वाद विवाद संवाद जैसा भी बन गया है. मुझे अपरिपक्व बहस से चिढ है, संभवतः जैसा प्रशिक्षण मुझे मिला है उसमें हल्की फुल्की बहस से चिढ़ होने की बुनियाद है. इसलिए मैं जल्दी आलोचनात्मक लेख नहीं लिखता. कहने को ई पी डब्ल्यू में भी कभी कुछ लिखा है, पर आम तौर से मैं इससे बचता हूँ.राजनैतिक विचारों पर जो बहस होती है, उसमें शामिल होते हुए मुझे अपनी अज्ञता का ख़याल रहता है. मुझे लगता है कितना कुछ है जिसके बारे में मुझे अधकचरा ज्ञान है, कितना कुछ है जो अभी मुझे पढ़ना है इसके बावजूद कि देश विदेश के सबसे बेहतरीन अध्यापकों और शोध कर्ताओं से सीखने और विमर्श करने का मौक़ा मिला है. संकोच से ही बात करने का संस्कार अपनाया है. देखता हूँ अधिकतर लोगों को ऐसा कोई आत्म-चैतन्य नहीं, जो मर्जी लिखते रहते हैं. अच्छा है, आखिर ज्ञान की बपौती किसके हाथ!
मैंने सोचा कि कुछ सवालों पर सोचूँ. जैसे: वाम या दक्षिण- इन शब्दों की उत्पत्ति कहाँ से हुई?हिन्दुस्तान में हम आम तौर से वामपंथी का अर्थ कम्युनिस्ट मान लेते हैं. लोहिआवादी वामपंथी हैं या नहीं?वैसे ऐसे फालतू के लोग बहुत हैं, जो गांधीवादियों से लेकर तालिबानियों तक सबको वामपंथी मानते हैं, बस जो उनके साथ नहीं हैं वे सभी वामपंथी हैं. और वामपंथी होने का अर्थ है, माओवादी होना, और माओवादी होने का अर्थ है चीन के सरकार का समर्थक होना, आदि आदि. मैं अक्सर सोचता हूँ कि अगर मैं लिखूं कि अरुंधती अराजकतावादी है तो इसका अर्थ अधिकतर लोगों के लिए क्या होगा? खुश हो जाएँगे, क्योंकि वे जानते नहीं कि अराजकतावाद वह नहीं जो वे सोचते हैं. कुछ लोगों को जनांदोलनों से ही चिढ़ है. अभी कहीं पढ़ा, कोई पूछ रहा है ईसा की करूणा जनांदोलनों से आयी क्या - तो मैंने सोचा कि जो यह लिख रहा क्या वह जानता है कि यूडाइक मूल के धर्म यानी यहूदी, ईसाई या इस्लाम धर्मों को डायलेक्टिक यानी द्वंद्वात्मक क्यों कहा जाता है. हीगेल का दर्शन इन्हीं धर्मों के दर्शन की परिणति है. आखिर ईसा के साथ जन न होते तो उन्हें शूली पर चढाने की ज़रुरत क्यों पड़ती. मुझे इन चीज़ों के बारे में बहुत कम पता है - इसलिए मैं अक्सर विज्ञ लोगों से इन सब बातों के बारे में जानना चाहता हूँ. संभवतः चिट्ठेबाजों की सलाह आयेगी कि भई तुम्हारी समस्या ही यही है कि तुम हीगेल जैसों के चक्कर में पड़े हो, कुछ महान भारतीय परंपरा से भी सीख लेते तो इतनी उलझन न होती. फिर मैं सोचता हूँ कि भारतीय परम्परा में कणाद, चार्वाक आदि कि भूमिका क्या है, तो भी मुझ पर कोई नया आरोप लग सकता है.
मैंने सोचा कि कुछ सवालों पर सोचूँ. जैसे: वाम या दक्षिण- इन शब्दों की उत्पत्ति कहाँ से हुई?हिन्दुस्तान में हम आम तौर से वामपंथी का अर्थ कम्युनिस्ट मान लेते हैं. लोहिआवादी वामपंथी हैं या नहीं?वैसे ऐसे फालतू के लोग बहुत हैं, जो गांधीवादियों से लेकर तालिबानियों तक सबको वामपंथी मानते हैं, बस जो उनके साथ नहीं हैं वे सभी वामपंथी हैं. और वामपंथी होने का अर्थ है, माओवादी होना, और माओवादी होने का अर्थ है चीन के सरकार का समर्थक होना, आदि आदि. मैं अक्सर सोचता हूँ कि अगर मैं लिखूं कि अरुंधती अराजकतावादी है तो इसका अर्थ अधिकतर लोगों के लिए क्या होगा? खुश हो जाएँगे, क्योंकि वे जानते नहीं कि अराजकतावाद वह नहीं जो वे सोचते हैं. कुछ लोगों को जनांदोलनों से ही चिढ़ है. अभी कहीं पढ़ा, कोई पूछ रहा है ईसा की करूणा जनांदोलनों से आयी क्या - तो मैंने सोचा कि जो यह लिख रहा क्या वह जानता है कि यूडाइक मूल के धर्म यानी यहूदी, ईसाई या इस्लाम धर्मों को डायलेक्टिक यानी द्वंद्वात्मक क्यों कहा जाता है. हीगेल का दर्शन इन्हीं धर्मों के दर्शन की परिणति है. आखिर ईसा के साथ जन न होते तो उन्हें शूली पर चढाने की ज़रुरत क्यों पड़ती. मुझे इन चीज़ों के बारे में बहुत कम पता है - इसलिए मैं अक्सर विज्ञ लोगों से इन सब बातों के बारे में जानना चाहता हूँ. संभवतः चिट्ठेबाजों की सलाह आयेगी कि भई तुम्हारी समस्या ही यही है कि तुम हीगेल जैसों के चक्कर में पड़े हो, कुछ महान भारतीय परंपरा से भी सीख लेते तो इतनी उलझन न होती. फिर मैं सोचता हूँ कि भारतीय परम्परा में कणाद, चार्वाक आदि कि भूमिका क्या है, तो भी मुझ पर कोई नया आरोप लग सकता है.
आखिर थक जाता हूँ और ध्यान आता है कि बहुत काम बाकी पड़े हैं. फिर भी हारने के पहले एकबार मुक्तिबोध को याद करता हूँ
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है,हर एक छाती में आत्मा अधीरा है
प्रत्येक सस्मित में विमल सदानीरा है,मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीडा है,पलभर में मैं सबमें से गुजरना चाहता हूँ,इस तरह खुद को ही दिए-दिए फिरता हूँ,अजीब है जिंदगी!बेवकूफ बनने की खातिर ही
सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ,और यह देख-देख बडा मजा आता है
कि मैं ठगा जाता हूँ...हृदय में मेरे ही,प्रसन्नचित्त एक मूर्ख बैठा है
हंस-हंसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है,कि जगत.... स्वायत्त हुआ जाता है।
मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में
चमकता हीरा है,हर एक छाती में आत्मा अधीरा है
प्रत्येक सस्मित में विमल सदानीरा है,मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीडा है,पलभर में मैं सबमें से गुजरना चाहता हूँ,इस तरह खुद को ही दिए-दिए फिरता हूँ,अजीब है जिंदगी!बेवकूफ बनने की खातिर ही
सब तरफ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ,और यह देख-देख बडा मजा आता है
कि मैं ठगा जाता हूँ...हृदय में मेरे ही,प्रसन्नचित्त एक मूर्ख बैठा है
हंस-हंसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है,कि जगत.... स्वायत्त हुआ जाता है।
अब दीवाली की शुभकामनाएं देते हुए भी डर रहा हूँ - कोई न कोई महान देशभक्त टिप्पणी तैयार रखे बैठा होगा- अच्छा अब आपको दीवाली याद आ गयी. चीन में भी दीवाली मनाते हैं क्या. क्या करें चिट्ठा जगत है ही ऐसा कि महान आत्माओं को दर्शन दिए बिना चैन ही नहीं मिलता.
वैसे बंधुओं को बतला दें कि चार्वाक माओवादी थे. तो फिर हम माओ को चार्वाकवादी भी कह सकते हैं. संभवतः इस बात से देशभक्त आत्माएं संतुष्ट हो जाएँगी। पर उन्हें यह पता है कि चार्वाक कौन थे! अरे भाई उनको क्या नहीं पता। यह फासीवाद की सबसे पहली पहचान है। उनको सब कुछ पता होता है।
चलो माओ को गांधीवादी कह देते हैं।
Comments
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चिट्ठा डायरी नहीं है। उसे आप डायरी बना सकते हैं बस आपको संवाद का रास्ता बंद करना है। उसके वाद वामपंथ ही वामपंथ होगा। कोई अपनी अधकचरी और अपरिपक्व राय ले कर आप के सम्मुख नही आयेगा।
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वामपंथ बहुत अलग सोच है और जिस तरह का वाम चलन में है वह तालिबानियत ही है। जैसे हिन्दू कट्टरपंथी वैसे मुस्लिम कट्टरपंथी वैसे वाम कट्टरपंथी और सबके सोच के शटर बंद।
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नहीं आप अरुन्धति के बारे में कुछ भी लिखेंगे तो खुशी जैसी कोई बात नहीं होगी। यह महिला किसी तरह के भी प्रचार की हकदार नहीं है। वाम-कट्टरपंथियों की देवी है अत: आप पूजा, इबादत या लाल सलाम के लिये इस लोकतंत्र में आजाद हैं ही।
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क्या जो अरुन्धति जैसे लोग कर रहे हैं वो जन आन्दोलन है? अरे जाने दीजिये...
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हमे चर्वाक पता हो या न पता हो यह पता है कि माओ के ठेकेदार दो स्तरों पर अपनी लडाई लड रहे हैं एक बंदूख ले कर आदिवासियों के खिलाफ जंगलों में और दूसरी अपनी कलम से चारण गिरी। अब मुझे यह तो पता नहीं कि आपको चारण पता है या नहीं?
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दीपावली की शुभकामनाओं के साथ।
आपका नितेश नंदा
भागलपुर
nitesh jI, aapne hindoo kattarpanthi n to dekhe hain aur n hi kattanpanth ke baare me kuchh pata hi hai... aap sareaam ek hindoo ko uske dharm ke naam par gariya sakte hain aur maje se laut sakte hain, lekin !
आखिर क्यों ना हो, अक्सर वामपंथी खुद को बुद्धिजीवी जो बताते हैं.. :)