आधुनिकता = विज्ञान और उत्तरआधुनिक आलोचना
आम तौर पर विज्ञान और आधुनिकता को एक दूसरे का पर्याय मान लिया जाता है। कई मायने में यह ठीक भी है। हमारे लिए आधुनिकता पश्चिम की देन है। जिसे हम विज्ञान कहते हैं, वह भी पश्चिम से ही आया है। हाल की सदियों में दोनों का विकास एक साथ हुआ है। पर साहित्य, कला और दर्शन में आधुनिकता का एक विशेष अर्थ है। साहित्य में आधुनिकता का अर्थ साहित्य में विज्ञान नहीं है। इसलिए आधुनिकता को उसके स्वतंत्र अर्थ में समझना जरुरी है।
मध्यकालीन यूरोप में नवजागरण के साथ साहित्य, कला और दर्शन में जो उथलपुथल हुई, उसके साथ जो नया मूल्यबोध समाज में आया, उसे आधुनिकता कहते हैं। इसके अनुसार एक व्यक्ति-केंद्रिक मूल्य बोध बना, जिसमें प्रकृति को समझने के लिए व्यक्ति ने प्रकृति से अलग अपनी सत्ता बनाई। मैं जो सोचता हूँ, वह मेरी निजी सोच तो है, पर अपने अवलोकनों से मैं निरपेक्ष धारणाएं भी बना सकता हूँ। ये निरपेक्ष धारणाएं सार्वभौमिक सत्यों को सामने लाएंगी। इन सत्यों के जरिए हम प्रकृति के रहस्यों को समझ सकते हैं। आधुनिकता से पहले ईश्वर सर्वशक्तिमान था, उसके नाम पर कोई भी धूर्त्त दूसरों का शोषण कर सकता था। आधुनिकता ने ईश्वर की सर्वशक्तिमान सत्ता को बनाए रखा, पर अब ईश्वर तक पहुँचने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं रही। बाद में निरीश्वरवाद या नास्तिक मत भी तर्क के आधार पर आधुनिक सोच का हिस्सा बने। यानी वाद-विवाद की संस्कृति का जन्म हुआ, जिसमें मत (थीसिस), विमत (ऐंटी-थीसिस) दोनों के लिए जगह थी और एक अंतर्निहित विरोध का तत्व आवाँ-गार्द (avant-garde) के रुप में मौजूद था।
आधुनिकता की सोच ने मानव मन में यह आशा जगाई कि प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति संभव है और प्रकृति पर विजय पाकर मानव सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है। बीसवीं सदी की शुरुआत में इस सोच की ताकत से चिंतकों ने उत्पीड़ितों की मुक्ति का सपनों को सच्चाई में बदल रहे जन-आंदोलनों को व्यापक समर्थन दिया। रुस के इन्कलाब और तीसरी दुनिया के अन्य मुल्कों में आज़ादी की लहर ने दुनिया बदल डाली। पर पचास के दशक तक आधुनिकता और विज्ञान पर गंभीर सवाल उठने खड़े हो गए। स्टालिन का रुस और हिरोशिमा नागासाकी पर अमरीका के नाभिकीय बम - इतना ही काफी था। फिर नारीवादी और पर्यावरण आंदोलनों ने नए और बहुत ज़रुरी सवाल खड़े किए। सामाजिक विज्ञान में पिछले साठ सालों में जितना सैद्धांतिक काम हुआ है, वह आधुनिकता और विज्ञान की आलोचना पर आधारित है। उत्तरआधुनिक आलोचना का प्रमुख अंग यही है।
मैं न केवल पेशेवर वैज्ञानिक हूँ, विज्ञान में मेरी गहरी आस्था है। इसलिए इस विषय पर पढ़ता रहा हूँ। अगले चिट्ठे में थोड़ा उत्तरआधुनिक आलोचना पर और फिर विज्ञान की ओर से कुछ लिखूँगा। हाल के दशकों में हिंदुस्तान में जो बड़ी उथलपुथल हुई है, उसको समझने के लिए इन विषयों पर सोचना जरुरी है।
आम तौर पर विज्ञान और आधुनिकता को एक दूसरे का पर्याय मान लिया जाता है। कई मायने में यह ठीक भी है। हमारे लिए आधुनिकता पश्चिम की देन है। जिसे हम विज्ञान कहते हैं, वह भी पश्चिम से ही आया है। हाल की सदियों में दोनों का विकास एक साथ हुआ है। पर साहित्य, कला और दर्शन में आधुनिकता का एक विशेष अर्थ है। साहित्य में आधुनिकता का अर्थ साहित्य में विज्ञान नहीं है। इसलिए आधुनिकता को उसके स्वतंत्र अर्थ में समझना जरुरी है।
मध्यकालीन यूरोप में नवजागरण के साथ साहित्य, कला और दर्शन में जो उथलपुथल हुई, उसके साथ जो नया मूल्यबोध समाज में आया, उसे आधुनिकता कहते हैं। इसके अनुसार एक व्यक्ति-केंद्रिक मूल्य बोध बना, जिसमें प्रकृति को समझने के लिए व्यक्ति ने प्रकृति से अलग अपनी सत्ता बनाई। मैं जो सोचता हूँ, वह मेरी निजी सोच तो है, पर अपने अवलोकनों से मैं निरपेक्ष धारणाएं भी बना सकता हूँ। ये निरपेक्ष धारणाएं सार्वभौमिक सत्यों को सामने लाएंगी। इन सत्यों के जरिए हम प्रकृति के रहस्यों को समझ सकते हैं। आधुनिकता से पहले ईश्वर सर्वशक्तिमान था, उसके नाम पर कोई भी धूर्त्त दूसरों का शोषण कर सकता था। आधुनिकता ने ईश्वर की सर्वशक्तिमान सत्ता को बनाए रखा, पर अब ईश्वर तक पहुँचने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं रही। बाद में निरीश्वरवाद या नास्तिक मत भी तर्क के आधार पर आधुनिक सोच का हिस्सा बने। यानी वाद-विवाद की संस्कृति का जन्म हुआ, जिसमें मत (थीसिस), विमत (ऐंटी-थीसिस) दोनों के लिए जगह थी और एक अंतर्निहित विरोध का तत्व आवाँ-गार्द (avant-garde) के रुप में मौजूद था।
आधुनिकता की सोच ने मानव मन में यह आशा जगाई कि प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति संभव है और प्रकृति पर विजय पाकर मानव सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है। बीसवीं सदी की शुरुआत में इस सोच की ताकत से चिंतकों ने उत्पीड़ितों की मुक्ति का सपनों को सच्चाई में बदल रहे जन-आंदोलनों को व्यापक समर्थन दिया। रुस के इन्कलाब और तीसरी दुनिया के अन्य मुल्कों में आज़ादी की लहर ने दुनिया बदल डाली। पर पचास के दशक तक आधुनिकता और विज्ञान पर गंभीर सवाल उठने खड़े हो गए। स्टालिन का रुस और हिरोशिमा नागासाकी पर अमरीका के नाभिकीय बम - इतना ही काफी था। फिर नारीवादी और पर्यावरण आंदोलनों ने नए और बहुत ज़रुरी सवाल खड़े किए। सामाजिक विज्ञान में पिछले साठ सालों में जितना सैद्धांतिक काम हुआ है, वह आधुनिकता और विज्ञान की आलोचना पर आधारित है। उत्तरआधुनिक आलोचना का प्रमुख अंग यही है।
मैं न केवल पेशेवर वैज्ञानिक हूँ, विज्ञान में मेरी गहरी आस्था है। इसलिए इस विषय पर पढ़ता रहा हूँ। अगले चिट्ठे में थोड़ा उत्तरआधुनिक आलोचना पर और फिर विज्ञान की ओर से कुछ लिखूँगा। हाल के दशकों में हिंदुस्तान में जो बड़ी उथलपुथल हुई है, उसको समझने के लिए इन विषयों पर सोचना जरुरी है।
1 comment:
लाल्टू जी , आपका हिन्दी-चिट्ठा-जगत में हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन !
आप जैसे जुझारू व्यक्तित्व को पाकर हिन्दी चिट्ठाकारी को नया आयाम मिलेगा ।
आपके विचार बहुत सशक्त हैं, और भाषा भी ।
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