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हाल में फेसबुक पर पोस्ट की कुछ कविताएँ

7 नवंबर

हिटलर के बारे में

हिटलर के बारे में हजार किताबें लिखी गई हैं

कला, प्रेम आदि खित्तों में हिटलर की घुसपैठ थी

हिटलर ने क्या ग़लत कहा,  ग़लत किया,

उसके झूठ, फरेब आदि की अनगिनत व्याख्याएँ हैं

कोई था जिसने 

जिस दिन हिटलर पहली बार दिखा

चौक पर खड़े होकर सबको कहा 

जान लो, यह हिटलर है। 

ऐसा नहीं कि उसे नज़रअंदाज़ किया गया,

ज्यादातर लोग पहले से हिटलर का इंतज़ार कर रहे थे

कुछ को मर्सीडीज़-बेज पसंद थी, इसलिए उन्हें  हिटलर पसंद था

कुछ को लगता था कि हिटलर के बिना भी हिटलरी राज चल सकता है

वे बहस करने लगे कि हिटलर देर तक नहीं दिख सकता

किताबें पढ़ते बोर होकर वे पंजे लड़ाते और खुश होते कि उनके पंजे हैं

फिर वे हिटलर के विरोध में लेख और किताबें लिखने लगे 

कभी हिटलर से कहते कि झूठ मत बोलो

सफेद पहना हूँ कहकर गुलाबी पहनते हो

ग़लत, बहुत ग़लत बात - अच्छे बच्चे ऐसा नहीं करते

कभी कहते कि देखो उधर आग लगी है

अरे, झूठा सच कुछ तो बोलो

लपटों के रंगों पर कोई श्लोक पढ़ दो

इस तरह हिटलर पूरब पच्छिम उत्तर दक्खिन हर दिक् दिखा

ऊँची ज़बानों में बहस का सिलसिला चलता चला 

हिटलर चला भी गया तो हिटलरी राज चलेगा

इस खुशी में यूरोपी ज़बान में दिखते सपनों में 

वे यदा-कदा हिटलर को मात देने की सोचते हैं 

चौक पर खड़ा आदमी अब बैठ चुका है

और कह रहा है कि यार, मैंने कहा था कि 

जान लो, यह हिटलर है। 

खबर यह है कि वह आदमी फिर उठ खड़ा हो रहा है

हिटलरी नाच की लपटें और धुआँ-धुआँ के बीच

वह चीख रहा है कि यार, जुड़ो, अब तो जुड़ो

और ऑन-लाइन तालीम की महारत में मसरूफ लोग 

बहुत संजीदगी से कह रहे हैं कि हाँ यार, हिटलर है।

हिटलर पर बनी वह फिल्म देखी आपने

अभी नेट पर मिली। बढ़िया फिल्म है, 

ईफा ब्राउन के साथ खुदकुशी तक की कहानी है। 

चेंज डॉट ऑर्ग पर पेटीशन डाल दो।


11 नवंबर

वही

साँय-साँय

कतरों में ताप

धुँआ-धुँआ-सा

पिघलता है कौन किस कारण

धरती अँगड़ाई लेती लखती है

हर ओर रेंगता फैल रहा है

हेमंत

वही।

14 नवंबर

पल

पल पल किंवदंती या कि किंवदंती के पल – सूक्ष्म सवालों में घिरा है पल। 

शरद के बादलों का सफेद पल, बारिश के सपनों का बैंगनी पल।

क्या एक पल दूसरे पल से जुड़ा है? 

हर पल पिछले पल से अलग होने की कशिश में लुढ़कता है।  नई किंवदंती की तलाश में पल खुद को छोड़ भागता है। कहाँ  है हरी घास, बहता पानी, कहाँ है बसंत, सावन की टिप-टिप, ...

सुबह दस्तक होती है  

दावानल से घिरा पूछता हूँ कि हूँ न? 

दूर कहीं से आवाज़ आती है कि रंग दिखेगा, आग की लपटों में हर रंग दिखेगा। जल्लाद को रंगों की बौछार से पकड़ लेंगे। यह कहानी नहीं है, पतझड़ के रंग देखो, बैंगनी, ज़र्द, सुर्ख, ... 

किंवदंती की ज़मीं फैलती जा रही है, इंसान आँखें फाड़ देखता है कि हुक्काम ने हर सिम्त जल्लाद भेजे हैं। पल अड़ता है, भिड़ता है, लड़ता है, अड़-भिड़-लड़ता है।

16 नवंबर

 फासीवाद 

यह वह फासीवाद नहीं है

वो जर्मन वाला इटली वाला

यह वह फासीवाद नहीं है

यह है ज़रा ढीला-ढाला

हिटलर ने डेढ़ साल में साठ लाख यहूदी मारे थे 

इतने मुसलमान हमारे यहाँ भुखमरी से मर जाते हैं

हिन्दू तो वैसे भी तादाद में ज्यादा हैं तो मरते भी ज्यादा हैं

यह वह फासीवाद नहीं है

वो जो था गोएबल्स वाला

यह वह फासीवाद नहीं है

यह है ज़रा ढीला-ढाला

यह तो वह हो ही नहीं सकता

देखो आज के ज़माने में हिटलर और ईफा ब्राउन की मेल पब्लिक हो जाती

या वो खुद ही इसे  पब्लिक कर देते और इसी बात पर लोग फिर एक बार अडानी-अंबानी को संविधान बदलने का जिम्मा दे देते

आई टी सेल में कोका कोला कोक शोक की आमद बढ़ती जाती

और हाँफते हुए ह्वाट्स-ऐप पर लोग जुटे रहते 

चौंधियाती रोशनी में जब ऐसी हस्ती है अँधेरे की

तो आउशवित्ज़ की ज़रूरत ही क्या रहती

यह वह फासीवाद नहीं है

वो मुसोलिनी का गड़बड़झाला

यह वह फासीवाद नहीं है

इसमें है ढेर सारा उदारीकरण डला

उदारीकरण में कुछ उदार नहीं यह चिरैया कह गई है

तो क्या अब तो अंतरिक्ष पर विजय शुरू हो गई है

कैप्टन स्पॉक की सोचो यार

जो मर रहे उनको छोड़ो यार

यह वह फासीवाद नहीं है

यह वह फासीवाद नहीं है

यह वह फासीवाद नहीं है

यह वह फासीवाद नहीं है

यह वह फासीवाद नहीं है

यह वह फासीवाद नहीं है (निरंतर)


21 नवंबर

जीत 

इस वक्त मैं हवाओं से कहता हूँ कि मैं इस गाथा का हिस्सा हूँ। दूर दूर से नौजवान दोस्त कह रहे हैं कि तुम हो, इस जीत में तुम हो। 

मिट्टी में रेंगता जीत के टुकड़ों को मुट्ठियाँ भर-भर कर इकट्ठा कर अबीर-गुलाल सा उछालता मैं इस धर्मयुद्ध में हूँ, इस जागते देश में हूूँ , प्यार के इस भँवर में मैं हूँ।

मैं अनगिनत आँसुओं में बहती चीखें हूँ, उल्लास का प्रलय हूँ, मैं यह गाथा हूँ।  

पूछोगे कि कहाँ - किस लफ्ज़, किस हर्फ में हो, तो भँगड़ा नाच कर कहूँगा कि मैं हूँ।

कोई कहे कि क्या सारे ज़ुल्म अब धरती से मिट गए, क्या अब कोई सिद्धार्थ यशोधरा को छोड़ ग़म ग़लत करने सुजाता की खीर खाने न आएगा

तो 'मसाइल-ए-तसव्वुफ' से बचता 'बादाख़्वार' की 'ख़लिश' लिए कहता हूँ कि मैं हूँ

मुझमें पीढ़ियों की थकान पिघल रही है, मुझे नाच लेने दो। इस वक्त मुल्क की हवाएँ मेरी मज्जाओं में सहस्र नगाड़ों की चोट करती कह रही हैं - जीत, जीत, जीत।

26 नवंबर

किंवदंती

किंवदंती में ऐसे दौर की बात है जब हर कुछ उदास रंग में रंगा है

ऐसे किस्से हैं कि मौसम की पहली बारिश नींद में खो गई है

किंवदंती में 

आत्म-मुग्धता की जड़ है

अवसाद के पीलेपन को बासंती स्वाद में बदलने का दावा है 

नफ़रत की पौध का अंकुरण है 

बैंगनी हो चुकी सूखी चमड़ी में ब्रह्मांड के बिगड़े छंद हैं

किंवदंती में बहार आती है जब हर ओर ख़ून का रंग खिलता है

और तपती लू में कोई प्रेमगीत गाता है

अरसे से कोई ढूँढ रहा है

क्या ढूँढता है इस सवाल का जवाब उसमें शामिल है जो वह ढूँढ रहा है

वह किंवदंती ढूँढ रहा है।


22 दिसंबर 

मुख़ालफ़त

उसने पूछा कि मैं अंग्रेज़ी के खिलाफ़ क्यों हूँ

मैंने कहा कि चूँकि अंग्रेज़ी मेरे ख़िलाफ़ है

उसने कहा कि पर आपको तो अंगेरज़ी आती है

मैं हँसा

हँसकर ही उसे समझा सकता था कि 

अंगेरज़ी बोलता मैं दरअसल अपने ही ख़िलाफ़ हूँ। 

उसने कहा कि आप राजा जी के भी  ख़िलाफ़ हो

यह आसान बात थी 

गोकि खुद को बचाने का तरीका हो सकता था

मैं उसे कहूँ कि अबे, भाग

पर मैंने निहायत शराफ़त से उसे कहा कि

आप बड़े सुंदर आदमी हैं।

तंग आकर वह बोला

आप तो हर बात की मुख़ालफ़त करते हो

खैर आप तो कवि हो। 

Opposition

They asked me why I oppose English

I said because English is in my opposition

They said that but you speak English well

I smiled

Only with a smile I could explain that

While speaking English I stand against myself

They said that you are also against the Noble king

The simple thing could be

That I save myself by telling them

Get lost, You fool

But I behaved and told them

You are a nice personality

They were exasperated and said -

You oppose everything

But then you are a poet.


24 दिसंबर

प्रेज़


मैंने कहा कि बच्चे अपनी ज़बान में बेहतर सीख पाते हैं


आप हिन्दी की प्रेज़ कैसे कर सकते हो वह बोला


मैं उसे देखता रहा


सामंती समाज की ज़ुबान के बारे में कोई क्या कह सकता है


मुझे चुप ताकता देखकर उसने कहा


या फिर आप हिन्दी को गरियाते हो


मैं प्रेज़ और गरियाना के भार से दबा जा रहा था



उस पर यह जानने का भार था


कि बच्चे अपनी ज़बान में बेहतर सीख पाते हैं


मैं सोच रहा था कि सुंदर और सुन्दर हिज्जे में से


कौन सा सही बैठेगा


मादरी ज़बान सुनते ही जो अंग्रेज़ी में पढ़ता है हिन्दी का आतंक


ख़िलाफ़ दिखता वह दरअसल राजा जी के साथ होता है



'हमारी हिन्दी' को तो रघुवीर सहाय तक गरिया गए।






Praise’


I said that children learn better in their mother tongue


How can you ‘praise’ Hindi, they said


I kept looking at them


Indeed there isn’t much to say about the language of a feudal 


people


Noticing that I was quietly staring they said -


Or you just denigrate Hindi


I felt the words praise and denigrate crushing me




They had to bear with knowing that Children learn better in 


their mother tongue


I wondered which of the valid ways of spelling 'nice' is appropriate  


for one reading in English the terror that Hindi is when told of    


mother tongue 


While appearing to be against, they actually side with the ruler



As for Hindi of our times, even great poets from decades ago 


have howled on it.

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