Sunday, September 08, 2019

पल भर में मैं मैं न था


गोया हम ग़फलत में थे

समंंदर को जाना
जब तेरे जिस्म का खारापन लहरों सा मुझे समेट गया
मैं साँस ले रहा था
या दाँतों तले जीभ ढूँढ रहा था

समंदर कब टुकड़ों में बँटा
कब मैं किस नौका पर बैठा
मुझमें कौन से बच्चे रो रहे थे
मैं बहा जा रहा था
सारी कायनात में तू और मैं 

पल भर में मैं मैं न था
ग्रहों के दरमियान हमारी नौका थी
मैं खेता जा रहा था सूरज की ओर
जो तेरे अंदर धधक रहा था
मैं पिघल रहा था अविरल
दूर से आती थी सदियों पहले चली आवाज़
कि इस दिन तुझमें विलीन होना मेरा तय था

वह बाँसुरी की धुन थी
किस जन्म में किस नीहारिका के गर्भ से निकली
किस बाँस की नली के छेदों पर
किन उँगलियों के फिसलने से पैदा हुई
सपनों में यह सब जान रहा
तेरे सीने पर सिर टिकाए गहरी नींद में सोया मैं था

न तूने कुछ कहा
न मैंने कुछ कहा
गोया हम ग़फलत में थे कि मैं कौन और तू कौन
कौन सी आँख किसकी और कौन सी साँस किसकी
मुझमें खोया तू था और तुझमें खोया मैं था।
(वागर्थ - 2019)

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