ईश्वर
यही है
नौकर
हो या मालिक हो
मछली
हो या चिड़िया हो
तारा
हो कि सपना हो
दस
आयामी कायनात में
अणु-परमाणु-जीवाणु-बीजाणुओं
की
तीन
आयामी,
चौथे
आयाम में फिसलती हुई तस्वीर
हो
यह
कैसे हुआ कि हम एक दूसरे को
देख मुस्कुराते नहीं
परस्पर
शक्ल देखकर अंदाज़ लगाते हैं
कि
कौन हो
जिस्मों
में सारे सेंसर और ऐंटीना
तैयार हैं
जरा
सी ग़फलत पर उछल सकते हैं एक
दूसरे पर
इल्ज़ाम
लगा सकते हैं
कि
दुश्मन हो
चलते
हुए बड़ी सावधानी से परस्पर
टकराने से बचते हैं
या
कि टकरा कर परस्पर एहसासों
में जानते हैं
कि
मुस्कुराने की वजह बची है
जिसके
लिए जिस्मानी टकराव ज़रूरी
नहीं
बस
इतना कि वक्त की हवाओं को
पल
भर के लिए अंदर आने से रोक रखें
जानें
कि दोस्त या दुश्मन
हम
शून्य ही हैं
नाज़ुक
धरती पर चल रहे
कायनात
का लंबा सफर तय करते हुए
संयोग
है कि हम दोनों टकरा सकते हैं
धरती
पर एक वक्त एक जगह पर
यह
जानने के लिए किसी ईश्वर की
ज़रूरत नहीं है
ईश्वर
यही है
हमारे
जिस्म और हमारी करीबी। (वागर्थ - 2019)
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