लक्षणा
व्यंजना का जुनून
लफ्ज़
लिखे गए
बूढ़े
हो जाते हैं
सफल
कवियों की संगत में पलते हैं
सफल कवि
अकेला
कहीं कोई मुगालते में लिखता
रहता है
घुन
हुक्काम-सी
लफ्ज़ों को कुतर डालती है
जैसे
बुने गए इंकलाब और कभी पहने
नहीं गए
एक
दिन सड़क पर फटेहाल घूमता है
असफल कवि
एक
फिल्म बनाकर सब को भेज देता
है
कि
इंकलाबी लफ्ज़ चौक पर
बुढ़ापे
में काँपते थरथराते सुने गए
बरसों
बाद कभी इन लफ्ज़ों को
एक
सफल कवि माला सा सजाता है
और
कुछ देर लक्षणा व्यंजना का
जुनून
दूर
तक फैल जाता है। (वागर्थ - 2019)
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