Tuesday, September 10, 2019

बुने गए इंकलाब और कभी पहने नहीं गए


लक्षणा व्यंजना का जुनून

लफ्ज़ लिखे गए
बूढ़े हो जाते हैं
सफल कवियों की संगत में पलते हैं सफल कवि
अकेला कहीं कोई मुगालते में लिखता रहता है

घुन हुक्काम-सी लफ्ज़ों को कुतर डालती है
जैसे बुने गए इंकलाब और कभी पहने नहीं गए
एक दिन सड़क पर फटेहाल घूमता है असफल कवि
एक फिल्म बनाकर सब को भेज देता है
कि इंकलाबी लफ्ज़ चौक पर
बुढ़ापे में काँपते थरथराते सुने गए

बरसों बाद कभी इन लफ्ज़ों को
एक सफल कवि माला सा सजाता है
और कुछ देर लक्षणा व्यंजना का जुनून
दूर तक फैल जाता है।             (वागर्थ - 2019)

No comments: