हर सुबह
सुबह-सुबह शोर। आस्मां नींद में डूबा होता है, उसे झकझोर कर, धकेल कर, खड़ा किया जाता है। आस्मां उठ कर धरती को ढक लेता है और हम दिनभर सच देखने से बच जाते हैं।
पहले यह जिम्मेदारी मुर्गों की होती थी कि आस्मां को जगाने की कवायद में
लोगों को तैयार करें। आजकल मोर आगे आने लगे हैं। वक्त ने सचमुच जमाना
बदल दिया कि हमें सच से बचाने नए जानवर सामने आ गए।
मसलन एक और खुदकुशी। जो मरता है वह खबर बन जाता है। मीडिया चाहे
न चाहे, लोग हवाओं के लिए कान चौड़े कर लेते हैं। खबर किधर से किधर
बहती है, लोग सूँघकर जान लेते हैं। कोई आस्मां को देख मुतमइन हो जाता है
कि वह हमें सच से बचा लेगा। कोई सच सच सच सच रटने लगता है। थक
जाता है कोई और कोई सो जाता है।
क्या है कि दुष्यंत ने उछाल दिया था तबियत से पत्थर।
बोले तो आस्मां में सूराख बनते चले हैं। (बनास जन : जुलाई-सितंबर 2017)
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