जीभ
थक गई है
आग
की लपटें बैंगनी पंखुड़ियाँ
बन मेरे सपनों में आती हैं
जिन
सितारों को मैंने भस्म करना
चाहा,
वे
टिमटिमाते मुझे चिढ़ाते हैं
मिटाए
नहीं मिट रहा राग बसंत बहार
हर
दिन चीखता है एक नया पौधा
अरे!
तुम
जो इतनी जल्दी में हो
भूलो
मत कि यह दौर मेरा है
इतिहास
का चक्का मेरे हाथों घूम रहा
है
इस
बात से अंजान कि
अंत
होता है हर अंधकार का
उद्दंडता
की हदें पार कर रहे हैं मेरे
अनुचर
होता
होगा अंत हर अंधकार का
अंधे
युग के इस सिंहासन पर बैठा
दुर्योधन
आज मैं हूँ।
My
tongue cannot take it any more
Fire
rises in my dreams as violet petals
The
stars that I desired to burn down
They
twinkle and tease me
And
the Spring melody continues
Every
day a new plant germinates
And
you who are in such hurry
Forget
not that these are my times
I
wheel the history
My
followers do not know that
All
shades of dark end some day
And
they are crossing limits of lumpen lust
Who
cares if all darkness ends
I
am Duryodhana
I
sit on the throne in these dark times.
Comments