अनगिनत
बार खुद को संजोया
बिखरने
को क्या कुछ नहीं दुनिया में
धरती
का कोई कोना नहीं
जहाँ
छिपा रह सकता है कोई झुरमुटों
के बीच
तारों
तक की पहुँच बस कविता में है
नायकों
का कद तारों जैसा विशाल
आभा
तारों जैसी प्रभामय
सच
यह कि आँखें खुली न हों तो
महानायक
भी ठोकर खा बैठते हैं
अनगिनत
बार समझे हैं ब्रह्मांड के
कानून
तड़प
उबलती है अंदर की गलियों में
सँभाले
हैं रंग बदरंग
कानून
के रंग जाने हैं
आज
मैं कानून हूँ
इतिहास
हूँ भविष्य हूँ
हवा,
पानी,
ज़मीं,
आस्माँ
मैं
कुचलता हर कविता,
हर
फूल,
हर
प्यार को हूँ
मुझे
कौन बाँधेगा आज?
मैं
पहाड़,
सीने
में लिए हूँ चट्टानों की जड़ें
हूँ
सूखी,
बेजान
चट्टानें
बढ़ती
जा रहीं,
समेटतीं
मिट्टी का हर कण।
Forever-and-ever
I took hold of myself
There
is enough in the world to lose oneself
No
part of Earth has bushes
For
you to hide
Only
poetry reaches the stars
With
heroes as big as the stars
Their
radiance like stars
The
Truth is that with eyes closed
Even
such supermen sprain their feet
Forever
and ever I have learned the laws of the
universe
My
innards burn
As
I manipulate the laws
The
laws in all their colours
I
am the law today
I
am history and I am the future
I
crush the air, the waters, the land and the sky
I
demolish every poem, flower or love
Who
catches me today?
I
am the mountain, I carry the roots of rocks in my
chest
The
ever expanding, dry,
lifeless rocks
Swallowing every atom of earth.
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