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चुपचाप अट्टहास: 25 - मैं कुचलता हर कविता, हर फूल, हर प्यार को हूँ


अनगिनत बार खुद को संजोया

बिखरने को क्या कुछ नहीं दुनिया में

धरती का कोई कोना नहीं

जहाँ छिपा रह सकता है कोई झुरमुटों के बीच


तारों तक की पहुँच बस कविता में है

नायकों का कद तारों जैसा विशाल

आभा तारों जैसी प्रभामय

सच यह कि आँखें खुली न हों तो

महानायक भी ठोकर खा बैठते हैं


अनगिनत बार समझे हैं ब्रह्मांड के कानून

तड़प उबलती है अंदर की गलियों में

सँभाले हैं रंग बदरंग

कानून के रंग जाने हैं


आज मैं कानून हूँ

इतिहास हूँ भविष्य हूँ

हवा, पानी, ज़मीं, आस्माँ
 
मैं कुचलता हर कविता, हर फूल, हर प्यार को हूँ

मुझे कौन बाँधेगा आज?

मैं पहाड़, सीने में लिए हूँ चट्टानों की जड़ें हूँ

सूखी, बेजान चट्टानें

बढ़ती जा रहीं, समेटतीं मिट्टी का हर कण।


Forever-and-ever I took hold of myself

There is enough in the world to lose oneself

No part of Earth has bushes

For you to hide


Only poetry reaches the stars

With heroes as big as the stars

Their radiance like stars

The Truth is that with eyes closed

Even such supermen sprain their feet


Forever and ever I have learned the laws of the 

universe

My innards burn

As I manipulate the laws

The laws in all their colours


I am the law today

I am history and I am the future

I crush the air, the waters, the land and the sky

I demolish every poem, flower or love

Who catches me today?

I am the mountain, I carry the roots of rocks in my 
chest
The ever expanding, dry, lifeless rocks

Swallowing every atom of earth.

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