भीत
से ईंट दर ईंट बढ़ती दीवार
पलता
बच्चा और बढ़ता वयस्क कद तक
मैंने
पाली बढ़ाई नफ़रत अपने अंदर अरसे
से
कह
नहीं सकता कि कहाँ शुरुआत हुई
थी
माँ
बाप तो मेरे आम ही थे
कोई
मुहल्ले का दादा याद नहीं आता
जिसने
बिगाड़ी हो दिमागी सेहत
बस
यही कि जितनी जोर से चीखता हूँ
चौड़ा
सीना दिखलाता
उतना
ही तीखा डर है बसा अंदर
नींद
से उठ बैठता हूँ रातों को जाने
कैसे सपने देखकर
कोई
फूलों का गुलदस्ता बढ़ाता है
मैं
खुश होना चाहता हूँ
पर
फूल सड़ गए हैं
उनकी
बदबू से मेरे अनुचरों के सिवा
हर कोई मुरझाने लगता है
चीख
उठता हूँ फर्स्ट फर्स्ट
याद
नहीं आता कि किसके लिए कह रहा
हूँ
प्रहरी
कह जाते हैं जी सर डंबूद्वीप
फर्स्ट
फिर
सो जाता हूँ
होंठ
बुदबुदाते ही रह जाते हैं
सपने
में घंटियाँ बजती हैं
बजती
ही रहती हैं।
From
its foundations rises a wall
A
child grows into an adult
I
nourished hatred in me for ages
I
cannot say when it started
My
parents were ordinary folks
I
do not remember if any neighbourhood lumpen
Damaged
my mental health
All
I know is that as loud I scream
Showing
my broad chest
Equally
intense is the fear in me
Bizarre
nightmares wake me up in the middle of the
night
Someone
offers me a bouquet of flowers
I
wish to be happy
But
the flowers are rotting
The
stink disgusts all but my followers
I
scream ‘first first’
I
cannot remember who is it for that I scream
The guards come and tell me that I mean it for the
dumbo-land
And
then I go back to sleep
With
my lips muttering
Bells
ringing in my dreams
They
ring and ring.
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