कलाकार
की बात
(अपने
उपन्यास 'द
निगर ऑफ "द
नारसिसस"'
की
भूमिका में कोनराड नें यह आलेख
लिखा है। साहित्य में कला के
बारे में यह महत्त्वपूर्ण
टिप्पणी है।)कला होने की आकांक्षी किसी भी कृति को हर पंक्ति में अपने औचित्य को प्रमाणित करना पड़ता है। स्वयं कला को भी सत्य के, एक हो या अनेक, हर पहलू पर प्रकाश डालते हुए दृश्य‑जगत के प्रति पूरी तरह न्याय करने का एकनिष्ठ प्रयास कहकर परिभाषित किया जा सकता है। अपने हर रूप‑रंग में, प्रकाश में और छाया में, पदार्थ के पहलुओं और जीवन के तथ्यों में से जो भी बुनियादी है और जो भी सार है, अस्तित्व के ऐसे सत्य को — उस एक प्रकाश स्रोत को और प्रभावी गुण को ही — ढूँढने की कोशिश कला है। इस तरह वैज्ञानिक और चिंतक की तरह कलाकार भी सत्य ढूँढता है और अपनी बात रखता है। दुनिया की रंगतों का अवलोकन कर चिंतक विचारों और वैज्ञानिक तथ्यों में डूब जाते हैं और आखिर में डूब से निकल कर वे हमें अस्तित्व की उन विशेषताओं के बारे में बतलाते हैं जो हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के काबिल बनाते हैं। वे प्रामाणिकता के साथ हमारी सामान्य चेतना, हमारी बुद्धि, चैन या बेचैनी की चाह, अक्सर हमारे पूर्वग्रहों, कभी‑कभार हमारे भय और अक्सर हमारे अहं के साथ और निरंतर हमारी सरलता के साथ संवाद करते हैं। उनकी बातों को हम ध्यान से सुनते हैं क्योंकि वे हमारे मन‑मस्तिष्क को परिष्कृत और शरीर को दुरुस्त रखने, हमारी आकांक्षाओं की पूर्ति, सटीक उपायों, और अपने बड़े उद्देश्यों की स्तुति जैसे गंभीर मुद्दों पर विचार कर रहे होते हैं।
कलाकार की बात कुछ और है।
उन्हीं पहेलियों का सामना करते हुए एक कलाकार अपने मन के तहखानों में उतरता है और अगर उसमें इतनी प्रतिभा हो और उसकी किस्मत अच्छी हो तो अपनी बात कहने के गुर तनाव और संघर्ष की उस ज़मीं पर उसे मिल ही जाते हैं। अस्तित्व के जंगी माहौल की वजह से इस्पात के कवच में रखे किसी कमजोर ढाँचे की तरह जानबूझकर कठोर और प्रतिरोधक दिखावे के पीछे स्वभाव की जिन कम पहचानी गई दक्षताओं को ओझल रखा जाता है, कलाकार हमारी उन प्रवृत्तियों के साथ संवाद करता है। फिर भी, उसका प्रभाव चिरस्थायी होता है। बाद की पीढ़ियाँ अपनी बदलती जाती समझ से पुराने खयालों को छोड़ देती हैं, तथ्यों पर सवाल उठाती हैं, सिद्धांतों को उखाड़ फेंकती हैं। लेकिन, कलाकार हमारे जीवन के उस पहलू से संवाद करता है जो बुद्धि पर निर्भर नहीं करता; जिसे हमने सीखा नहीं, बल्कि तोहफे की तरह पाया होता है — और इस वजह से वह अधिक स्थायी और टिकाऊ होता
है।
हमारी उल्लास और अचंभे की
क्षमता, जीवन
में चारों ओर रहस्य के आभास,
करुणा
और सौंदर्य और पीड़ा के हमारे
अहसासों,
तमाम
कायनात से साथ एकात्म होने
की निहित अनुभूति,
अनगिनत
दिलों के अकेलेपन को बाँधनेवाली
सूक्ष्म पर अटूट एकजुटता,
सपनों
में, सुख‑दुख
में, आकांक्षाओं,
भ्रम,
उम्मीद
और डर में लोगों को,
सारी
मानवता को एक साथ,
मृतकों
को जीवितों के साथ और जीवितों
को अजन्मे प्राणों से बाँधने
वाली एकजुटता,
के साथ
वह संवाद करता है।
सोच या कहिए अहसास की कुछ ऐसी शृंखला ही कुछ हद तक इसके बाद आने वाली कथा में सरल, बेआवाज़, बौखलाए लोगों की भीड़ में से कुछ व्यक्तियों के अज्ञात जीवन के बेचैन क्षणों के बखानने की कोशिश के मकसद को समझा सकती है। अगर ऊपर कही बातों में जरा भी सच हो तो जाहिर है कि धरती पर संपन्न या विपन्न कोई भी ऐसा कोना नहीं जिस पर विस्मय या करुणा की निगाह पड़नी, सरसरी सही, लाजिम न हो। कृति में शामिल सामग्री का औचित्य इसी प्रेरणा में है; पर यह भूमिका हमारी कोशिश की घोषणा मात्र है और इसका अंत यहाँ नहीं हो सकता, क्योंकि घोषणा अभी पूरी नहीं हुई है।
कथा‑लेखन को अगर कला होना है तो उसे पाठक के स्वभाव को निवेदित होना होगा। सचमुच यह चित्रकला, संगीत और दीगर सभी कलाओं की तरह एक स्वभाव का उन अनगिनत स्वभावों के साथ संवाद है, जिनकी सूक्ष्म और तरल शक्ति प्रासंगिक घटनाओं को उनके असली अर्थ से सजाती है और देश‑काल का नैतिक और भावनात्मक परिवेश बनाती है। अनुभव ऐसे संवाद के प्रभावी होने की शर्त है। सचमुच यह किसी और तरीके से हो ही नहीं सकता क्योंकि, चाहे व्यक्ति का हो या समुदाय का, स्वभाव समझाने से नहीं बदलता। इसलिए हर किस्म की कला अहसासों के जरिए संवाद करती है और लिखने के माध्यम से की गई कलात्मक अभिव्यक्ति को भी अहसासों के जरिए ही अपनी पहुँच बनानी होगी, अगर उसका मकसद यह है कि पढ़कर पाठक के मन में भावनात्मक सोते फूट पड़ें। उसे कलाओं के शिखर — स्थापत्य की नम्यता, चित्रकला के रंग, और संगीत की जादुई पकड़ तक पहुँचना होगा। रूप और कथ्य के सटीक और पूर्ण समन्वय के प्रति अटूट वफादारी, वाक्यों के आकार और गोलाई के प्रति बेहिचक समर्पण के जरिए ही आम, पुराने और अरसे से इस्तेमाल होते घिसे‑पिटे, लफ्ज़ों के सतहीपन से हटकर एक गुजरते एक क्षण में नम्यता, रंग और जादुई खनक तक पहुँचा जा सकता है।
सृजनात्मक कार्य को पूरा करने की ईमानदार कोशिश और इस राह पर चलते रहने की पुरजोर लगन के साथ थकान या आलोचना की परवाह किए बिना संशय‑मुक्त होकर लगे रहना ही गद्य लिखने वाले का एकमात्र सही
औचित्य
है। अगर उसके विवेक में खोट
नहीं है, तो
तुरत फायदा उठाने में अपनी
समझदारी लगाने वालों,
उपदेश,
आश्वासन
और चटोरी बातें सुनना चाहने
वालों, झटपट
सीखने, उत्साह
पाने, या
डरने या झटके खाने या मज़ा
लेने की माँग करने वालों के
लिए उसका जवाब कुछ ऐसा होगाः—
लिखित शब्द की ताकत से आप
लोगों को कुछ सुनाते और अहसास
कराते हुए मैं जिस कोशिश को
कामयाब करने में लगा हूँ वह
यह है कि सबसे पहले तो आप लोग
देख सकें। बस यही मेरा मकसद
है और इससे ज्यादा और कुछ नहीं
है। अगर मुझे सफलता मिलती है
तो आपको वहाँ सब कुछ अपनी कामना
के अनुसार मिल जाएगाः प्रोत्साहन,
आश्वस्ति,
भय,
मज़ा
— जो भी आपकी
माँग है — और,
शायद
ऐसा सत्य भी जिसके बारे में
आपने सोचा भी न होगा।
बिना किसी पछतावे के तेज़ी से बीतते जा रहे वक्त में से, ज़िंदगी के मौजूदा दौर में से, हिम्मत का एक पल छीन लेना इस काम की महज शुरूआत है। नाज़ुक कदमों से आस्था के साथ इस काम में बिना डर या वैकल्पिक भटकाव के ईमानदारी से जीवन के बचा लिए गए टुकड़े को सबके सामने ला खड़ा करना है। इसके स्पंदन, रंग‑रूप को दिखलाना; और उसकी गति, रंग‑रूप से उसके सत्य के सार को सामने लाना, उसके प्रेरक रहस्यः— हर निश्चित पल के सत्त्व में तनाव और भावनात्मक लगाव को उजागर करना — यही यह काम है। अगर कोई इसके काबिल है और किस्मत साथ हो, तो ऐसी एकनिष्ठ कोशिश में कोई ऐसी ईमानदारी की निर्मलता पा भी सकता है कि पेश की गई करुणा, संताप, आतंक या जन्म की छवि देखनेवालों के दिलों में अपरिहार्य एकजुटता की भावना जाग उठे; रहस्यात्मक मूल, मेहनत, उल्लास, उम्मीद, अनिश्चित नियति में उपजी एकजुटता, जो इंसानों को एक‑दूसरे से और इंसानियत को दृश्यजगत से जोड़ती है।
जाहिर है कि सही या ग़लत, जो भी ऊपर लिखे विचारों में आस्था रखता है, अपनी कला के किसी भी तरह के सामयिक निरुपण में विश्वास नहीं रख सकता। ऐसे हर सामयिक सूत्र में सत्य अधकचरे ढंग से छिपाया गया होता है। अपने निरुपण में जो स्थायी अंश है, उसका साथ निभाना उसकी मूल्यवान संपदा होगी। लेकिन ये सभी — यथार्थवाद, रोमांटिकता, प्रकृतिवाद, यहाँ तक कि अनौपचारिक भाववाद (जो ग़रीबों की तरह मिटाए नहीं मिटता)— कुछ समय तक साथ निभाने के बाद इन सभी देवताओं को, मंदिर की चौखट पर खड़े होकर भी, उसके अंतःकरण की हकलाहट और काम की कठिनाइयों की मुखर चेतना के पास छोड़ देना पड़ेगा। उस बेचैन सन्नाटे में कला के लिए कला की तीखी चीख अपनी जाहिर अनैतिकता की उत्तेजक आवाज़ खो बैठती है। वह दूर की बात लगती है। वह चीख नहीं रह जाती और अक्सर समझ न आने वाली महज एक फिसफिसाहट बनकर सुनाई पड़ती है, पर कभी‑कभार ही और कमजोर‑से प्रोत्साहन के साथ।
कभी‑कभार,
सड़क
किनारे किसी पेड़ की छाया में
आराम से पसरे हम दूर किसी कामगार
की हलचल को देखते हैं,
और कुछ
समय के बाद और धीरे‑धीरे
सोचने लगते हैं कि आखिर वह
बंदा कर क्या रहा है। हम उसके
शरीर की हलचल,
उसकी
बाँहों का उठना,
उसका
झुकना, खड़ा
होना, हिचकना,
फिर से
शुरू करना देखते हैं। आराम
का वक्त बिताते हुए उसकी कसरत
की जानकारी पाना मज़ेदार हो
सकता है। जब हमें यह पता चलता
है कि वह कोई पत्थर उठा रहा
है, कोई
खाई खोद रहा है,
कोई
ठूँठ उखाड़ रहा है,
तो हम
अधिक रुचि के साथ उसकी कोशिशें
देखते हैं;
धरती
के विस्तार की प्रशांति में
उसके श्रम से आ रहे झटकों को
हम स्वीकार करने लगते हैं;
यहाँ
तक कि भाईचारे की भावना से हम
उसकी असफलता को नज़रअंदाज़
भी कर सकते हैं। हम उसके मकसद
को समझ गए,
और आखिर
उसने कोशिश की,
शायद
इतनी ताकत उसमें नहीं थी या
कि उसमें इतनी समझ नहीं थी।
हम उसे क्षमा करते अपनी राह
चल पड़ते हैं —
और भूल जाते हैं।
कला की खोज में लगे आदमी की दुनिया ऐसी ही होती है। कला की उम्र लंबी और इंसान की छोटी होती है। सफलता के लिए दूर तक चलना पड़ता है — और क्योंकि लंबे सफर के बारे में शक रहता है, इसलिए हम मकसद के बारे में कुछ बातें करते हैं — जीवन की तरह ही कला का मकसद भी प्रेरणादायक, कठिन और तथ्यों की धुंध में छिपा होता है। यह जीत के नतीज़े में नहीं मिलता। कुदरत के नियम कहलाए जाने वाले हृदयहीन रहस्यों में यह नहीं मिलता। इसकी महानता कमतर नहीं है, बल्कि यह और ज्यादा कठिन है।
धरती पर काम के लिए जुटे हाथों को साँस भर के लिए रोकना, दूरगामी उद्देश्यों के मोह में बँधे लोगों को पल भर के लिए चारों ओर फैले रूप‑रंग, धूप‑छाँव की झलक देखने को मजबूर करना, उन्हें एक नज़र भर उठाने को, लंबी साँस खींचने को, एक मुस्कान के लिए रुकने को मजबूर करना — यही कठिन और क्षणिक मकसद कला का है और इसे कुछ ही लोग पूरा कर सकते हैं। लेकिन, कभी‑कभार प्रतिभाशाली और खुशकिस्मत लोग ऐसे काम को भी पूरा कर लेते हैं — और जब वह पूरा हो जाता है! — क्या बात! जीवन की सारी सच्चाइयाँ वहाँ होती हैंः पल भर की झलक, लंबी साँस, मुस्कान — और चिरस्थायी शांति तक वापस पहुँचना।
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