Monday, December 01, 2014

तूने प्यार दिया - इसलिए मैं भी तुझे प्यार देता हूँ


समाजवादी चिंतक अशोक सक्सेरिया से मैं तीन बार मिला हूँ। उन जैसा स्नेह विरल ही मिलता है। अभी कुछ समय पहले समान शिक्षा पर मेरा लिखा आलेख पढ़कर उन्होंने लेख को बढ़ा कर 'सामयिक वार्त्ता' के लिए तैयार करने को कहा था। फ़ोन पर वह उनसे आखिरी बात थी। कल पता चला अब वह नहीं रहे। आज का पोस्ट मैं उनकी स्मृति को समर्पित करता हूँ। पिछले पोस्ट में लिखे मुताबिक 'सदानीरा' के ताज़ा अंक में प्रकाशित ह्विटमैन की  कविताओं के अनुवाद में एक और यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ। साथ में जो आलेख आया है, वह भी नीचे दे रहा हूँ।

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मैं देह का कवि हूँ और मैं आत्मा का कवि हूँ,

स्वर्ग के सुख मेरे पास हैं और नर्क की पीड़ाएँ मेरे साथ हैं,

सुखों को मैं बुनता हूँ और उन्हें बढ़ाता हूँ, दुःखों कों नई भाषा में बदल देता हूँ।

 मैं उतना ही स्त्री का कवि हूँ जितना कि पुरुष का,

और मैं कहता हूँ कि स्त्री होना पुरुष होने जैसा ही गरिमामय है,

और मैं कहता हूँ कि मानव की माँ से बड़ा कुछ नहीं होता।

 मैं संवृद्धि या गौरव के गीत गाता हूँ, 
बहुत हो चुका बचना बचाना,

मैं दिखलाता हूँ कि आकार महज परिवर्तन है।

 तुम क्या औरों से आगे बढ़ गए हो? राष्ट्रपति हो क्या?

यह छोटी बातें हैं, सब आते ही आते रहेंगे और गुज़र जाएँगे।

 मैं वह हूँ जो नाजुक और बढ़ती रातों के साथ चलता हूँ,

 रात के शिथिल आगोश में धरती और समंदर को मैं पुकारता हूँ।

और पास आ, ओ खुले सीने वाली रात – और पास आ

जिजीविषा बढ़ाती चुंबकीय रात!

दख्खिनी हवाओं वाली रात – थोड़े से बड़े तारों वाली रात!

अब तक जगी रात – ऐ नंगी पागल गर्मियों की रात।

 ऐ ठंडी साँसों वाली विशाल धरती, मुस्करा!

ऊँघते और पिघलते पेड़ों वाली धरती!

बीते सूर्यास्त वाली धरती - धुंध भरे पर्वत शिखरों वाली धरती!

काँच सी चमकती हल्की नीली पूर्णिमा की चाँदनी वाली धरती!

नदी के ज्वार की चमक और छाया वाली धरती!

मेरे लिए साफ चमक उठते धूमिल बादलों वाली धरती!

सुदूर को आगोश में लेने वाली धरती - खिलते सेवों की गाढ़ी सुगंध वाली 

धरती!

मुस्करा कि तेरा आशिक आया है।

 ऐ अखूट दानी, तूने मुझे प्यार दिया है - इसलिए मैं भी तुझे प्यार देता हूँ!
 ओ अवाच्य अगाध प्रेम!
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 वाल्ट ह्विटमैन (31 मई 1819 – 26 मार्च 1892)
अमेरिकन बार्ड" कहे जाने वाले उन्नीसवीं सदी के अमेरिकी कवि वाल्ट ह्विटमैन को मुक्त छंद की कविता का जनक माना जाता है। 1819 से 1892 तक के अपने जीवन में उन्होंने युगांतरकारी घटनाएँ देखीं। मैं वाल्ट ह्विटमैन को अपना गुरू मानता हूँ। संकट के क्षणों में रवींद्र, जीवनानंद और नज़रुल की तरह ही ह्विटमैन को ढूँढता हूँ। ह्विटमैन में मुझे ऐसी गूँज दिखती है जो कुमार गंधर्व के सुर या आबिदा परवीन की आवाज़ मे सुनाई पड़ती है, जो बाब मारली की पीड़ा में सुनाई पड़ती है।
आधुनिक सोच के वे पुजारी थे और और लोकतांत्रिक सोच में जो कुछ भी अच्छा दिखा, उसका गान उन्होंने गाया। अपने एकमात्र संग्रह "Leaves of  Grass (घास की पत्तियाँ)पर वे आजीवन काम करते रहे। उनकी 52 हिस्सों वाली कविता "Song of Myself” की पहली पंक्ति उनके मूलमंत्र को उद्घोषित करती है: I CELEBRATE myself and I sing myself (मैं उत्सव हूँ, और खुद को गाता हूँ)। यह खुदी संकीर्ण या सीमित नहीं है, अगली ही पंक्ति में वे कहते हैं - And what I assume you shall assume, For every atom belonging to me as good belongs to you (और चूँकि मेरा हर कण तुम्हारे भी अंदर है, जो मेरे मन में है, तुम भी उसे अपने मन में समा लो)। उनकी इन पंक्तियों को मैंने कई कई बार पढ़ा है। इनमें एक ऐसी गूँज है, जो हमें मुक्ति की ओर ले जाती है।
पूरी तरह से आधुनिक होते हुए भी आधुनिकताओं की सीमाओं से ह्विटमैन काफी हद तक मुक्त थे। - 'मतों और मान्यताओं को अपनी जगह रख, पर हमेशा उन्हें ध्यान में रखते हुए, उनसे ज़रा दूर हटकर जो कुछ भी अच्छा या बुरा है, मैं  उसे करीब लाता हूँ, हर खतरा मोलते हुए, आदिम ऊर्जा के साथ प्रकृति पर बेरोक कहने की अनुमति खुद को देता हूँ।' उनके लिए मतों और मान्यताओं से दूर हटना उन्हें नकारना नहीं, बल्कि महज कुंठाओं से मुक्त होना है। मन, शरीर, आत्मा, स्त्री, पुरुष, गोरा, काला – उनकी कविताओं में यह बात बार बार आती है कि हर कुछ, हर कोई श्रेष्ठ है। यह उदार सेक्यूलरवाद आधुनिकता का सुंदरतम और सबसे अराजक वैशिष्ट्य बनकर उनकी कविताओं में आता है। -'तुम क्या औरों से आगे बढ़ गए हो? राष्ट्रपति हो क्या? / यह छोटी बातें हैं,  सब आते ही आते रहेंगे और गुज़र जाएँगे।'

प्रेम का ऐसा पार्थिव स्वरूप और कहाँ है। प्रेम जो शरीर से है, आत्मा से है, मन से है, खुद से है, औरों से है, जगत से है, सब कुछ से है। एक ही शब्द है - अद्भुत, जिसका इस्तेमाल इसे बखानने के लिए किया जा सकता है। ह्विटमैन इस लिए प्रिय है कि वह हमें कुंठाओं से मुक्त करता है। उसे पढ़ते हुए हम अपनी  खूबसूरती पहचानने लगते हैं। ह्विटमैन पढ़ते हुए हम जानते हैं कि मानव शरीर  सृष्टि के अनंत रहस्यों में से एक सामान्य और साथ ही गौर-तलब बात है। कभी वह भी पहाड़, नदी, ज़मीं जैसा खूबसूरत हो जाता है और शब्दों, ध्वनियों में हम उसे ढूँढते रहते हैं, उसके साथ खेलते रहते हैं। वह शरीर स्त्री का हो सकता  है, वह पुरूष का हो सकता है।
आधुनिक विश्व-साहित्य में शायद ही कोई कवि हो, जिसने ह्विटमैन को कई बार  न पढ़ा हो और उससे प्रभावित न हुआ हो। इसलिए किसी भी भाषा में ह्विटमैन  के एकाधिक अनुवाद मिलते हैं। हिंदी में भी केदारनाथ अग्रवाल से लेकर हाल के कई कवियों ने उनकी कृतियों का अनुवाद किया है। पिछली सदी में हिंदी  कविता की भाषा बदलती रही है। ह्विटमैन के सहज, उन्मुक्त प्रवाह को देखते हुए तत्सम शब्दावली में उनकी कविता का अनुवाद पुराना सा लगता है। उसे नए ढंग से पढ़े जाने और अनुवाद किए जाने की ज़रूरत है। 



2 comments:

Anonymous said...

Ek behad zaroori aur achchhi kavita ke sath Walt Whitman se parichay karaane ke liye bahut bahut shukriya.
- Santosh, patna.

Anonymous said...

Effortless translation. Nice to meet you. Hope the dialogue continues. Sudeep