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संयम! कैसा संयम! क्या किसी गहरी आशंका से यह संयम उपजा
था— अंधविश्वास, अरुचि, धीरज या भय? भूख हर भय को खा जाती
है, हर धीरज भूख से हार मानता है, भूख के सामने कोई भी बात
अरुचिकर नहीं लगती; और जहाँ तक अंधविश्वास, आस्थाएँ और जिन्हें
आप सिद्धांत कहते हैं, वे हवा में तिनके की तरह उड़ जातेहैं। कौन नहीं
जानता कि लगातार भूख से तड़पने से कैसी हैवानियत पैदा होती है, जो
असहनीय उत्पीड़न होता है,जो भयंकर खयाल दिमाग में आते हैं, कैसी
गंभीर और भयानक सोच यह पैदा करती है? जी हाँ, मैं जानता हूँ।...
('हार्ट ऑफ डार्कनेस' – जोसेफ कोनराड; हिंदी अनुवाद 'पाखी' के ताज़ अंक में आया है। पुस्तक वाग्देवी प्रकाशन से आ रही है।)
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