Skip to main content

मुझ में एक बाग़ है

सपना

1

महालक्ष्मी कमल पर बैठी थीं 
 
या था सदी का दर्दनाक बुरा सपना

रोशनी कम होती चली, हताशा बढ़ती चली

दिलासा बन कर आते शब्द – आदि सच जग-आदि सच

कर्त्ता-पुरख ब्रह्मा सामने या उनका बनाया पुतला मैं

आज़ाद कायनात को साथ लिए घूमता कायनात भर मैं

जादू कि

ईश्वर उग रहा फटेहाल पसलियों से बच्चों की 
 
कुछ भी स्पष्ट नहीं 
 
स्वर्ग धुँए से भरा भीड़ त्राहि-त्राहि चीखती

मुझे यहीं होना था 
 
प्यार के अकाल में खून से रँगे कमल-दल में डूबता

हाय अंबालिका, मैं नहीं कारण पीत भवितव्य का

कैसे आएगी स्वस्थ संतान

इतना जहर है हमारे चारों ओर।


2

कालिदास नहीं उसकी साँसों से बना मैं

समय बहता रहा मुझमें से नदी की तरह

जागा अपनी सदी में एक और सपने में

मेरे रोओं से वैसी ही बह रही हवा

गंध थी उसमें मृत्यु की

हालाँकि वह अहसास सपने में का था

हर देश हर काल में हर प्राणी बदलता जा रहा

भयावह उस सपने में पेड़-पौधे
 
बन रहे मेरी प्रतिकृति 
 
बिलखते सर पीटते, समूह गान में रो रहे 
 
सूरज उगा या कि छिप रहा 
 
अँधेरा भी रोशनी भी

सपने में जगा मैं बहते समय के साथ

कालिदास, यह कैसा अभिशाप।


यह ज़िद

सुबहो-शाम

'आह से उपजा होगा गान' गाते रहने की

यह घातक चाह


वह जल था या थल

आकाश या पाताल

ज़मीं हरी थी या कि स्याह

साथ कणाद भी थे

थे अल बरूनी 
 
सपने में हम उनकी कथाओं के चरित्र थे


मैं और तुम इकट्ठे रो रहे थे

पहला और आखिरी भी आँसू प्यार का था।


3

यह दंभ भी मुझे ही होना था

नगरपालिका अस्पताल में जन्मा

तय किया कि जीना है कवि सा

कौन देवी आ बैठी अंदर कि 
 
जैसे वैज्ञानिक सपने में देखते हैं कुदरत के रहस्य

अर्थशास्त्री खाताबही में राजनीति 
 
मुझे सपना आया कि बुनने हैं शब्द

रंग, राग, धिन-ता-धिन जैसे शब्द

गुलमोहर के पागल दिनों के शब्द

रोजाना की चीखों से गीले हुए शब्द

सपने में देखा कि सपनों का सागर हैं शब्द 
 
अगर देखता सपना कि मैं बदल रहा पारे को सोने में

या कि बहुत ऊँचा पुल बना रहा हूँ

सो लेता आराम की नींद

आँखें खुलने पर आँसुओं के खारेपन से बच जाता

यह कैसा दंभ बसा मुझमें कि

मेरे दुखों में अनंत का सरगम है


कि मुझे सुकरात के दर्शन से अचंभित होकर 
 
उससे जहर का प्याला छीन लेना है 
 
पीते हुए विष सँकरी गलियों में से गुजरना है

सारे नकाब फाड़ फेंकने हैं

कि ढूँढना है प्यार जो कभी स्थिर न हो

लिखने हैं अपने ही खिलाफ गीत बच्चों के लिए 
 

4

मैं शहर का रुदन गाता हूँ

मेरा आँगन सिकुड़ता चला है

वहाँ चाँदनी नहीं आती

मेरी सड़कों पर गाढ़ी काली धूल है

मेरे सामने पीछे हर पल छैनियाँ चल रही हैं

सुनो यह आवाज बहुत पहले कट चुके पेड़ों की साँस का आना-जाना है

इसमें कहीं न दिखती चिड़ियों की चीं-चीं सुनो


मैं कागा काँव-काँव कविता करता

सदियों से उड़ रहा

शहर में कोई रंग ऐसा दिखला दो

जो न हो थका


मैं कुछ देर छंद अलंकारों से निकलकर बैठना भर चाहता हूँ

अँधेरा होने पर एक बार वर्षों पहले देखे तारों को ढूँढना चाहता हूँ

वह कोना दिखला दो जहाँ न हो रोशनी भरा अँधेरा 

 
 
मेरे दंभ को दिल से न लगाना

मुझ में एक बाग़ भी है


वहाँ आबिदा बुल्ले शाह गाती हैं

और ग़ालिब अपनी पारी का इंतज़ार करते हैं

वहाँ कोई तख्त पर बैठा नहीं है

हरी नर्म घास है सबके लिए


मेरा दिल मयकदा है

नासेह भी झूमते दिखते हैं
 
सचमुच मेरे लफ्ज़ों में डींगें नहीं हैं

जो दिखता है वह देखता हूँ

यही जो तुम्हारा प्यार है, आराध्य है, यही साध्य है


स्तुति या सम्मान नहीं चाहता 
 
वह तो उन पत्थरों जैसे हैं 
 
जिन्हें चुन-चुन कर मैं अपने दिल से निकालता हूँ

जगह बनाता रहता कि तुम थोड़ा और बस जाओ

तुम्हीं से भरा हुआ होता हूँ 
 
जब मुझसे खेलते हैं शब्द ।

(वागर्थ - 2014)

Comments

Popular posts from this blog

फताड़ू के नबारुण

- 'अकार' के ताज़ा अंक में प्रकाशित 'अक्सर आलोचक उसमें अनुशासन की कमी की बात करते हैं। अरे सालो, वो फिल्म का ग्रामर बना रहा है। यह ग्रामर सीखो। ... घिनौनी तबाह हो चुकी किसी चीज़ को खूबसूरत नहीं बनाया जा सकता। ... इंसान के प्रति विश्वसनीय होना, ग़रीब के प्रति ईमानदार होना, यह कला की शर्त है। पैसे-वालों के साथ खुशमिज़ाजी से कला नहीं बनती। पोलिटिकली करेक्ट होना दलाली है। I stand with the left wing art, no further left than the heart – वामपंथी आर्ट के साथ हूँ, पर अपने हार्ट (दिल) से ज़्यादा वामी नहीं हूँ। इस सोच को क़ुबूल करना, क़ुबूल करते-करते एक दिन मर जाना - यही कला है। पोलिटिकली करेक्ट और कल्चरली करेक्ट बांगाली बर्बाद हों, उनकी आधुनिकता बर्बाद हो। हमारे पास खोने को कुछ नहीं है, सिवाय अपनी बेड़ियों और पोलिटिकली करेक्ट होने के।' यू-ट्यूब पर ऋत्विक घटक पर नबारुण भट्टाचार्य के व्याख्यान के कई वीडियो में से एक देखते हुए एकबारगी एक किशोर सा कह उठता हूँ - नबारुण! नबारुण! 1 व्याख्यान के अंत में ऋत्विक के साथ अपनी बहस याद करते हुए वह रो पड़ता है और अंजाने ही मैं साथ रोने लगता हू...

मृत्यु-नाद

('अकार' पत्रिका के ताज़ा अंक में आया आलेख) ' मौत का एक दिन मुअय्यन है / नींद क्यूँ रात भर नहीं आती ' - मिर्ज़ा ग़ालिब ' काल , तुझसे होड़ है मेरी ׃ अपराजित तू— / तुझमें अपराजित मैं वास करूँ। /  इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूँ ' - शमशेर बहादुर सिंह ; हिन्दी कवि ' मैं जा सकता हूं / जिस किसी सिम्त जा सकता हूं / लेकिन क्यों जाऊं ?’ - शक्ति चट्टोपाध्याय , बांग्ला कवि ' लगता है कि सब ख़त्म हो गया / लगता है कि सूरज छिप गया / दरअसल भोर  हुई है / जब कब्र में क़ैद हो गए  तभी रूह आज़ाद होती है - जलालुद्दीन रूमी हमारी हर सोच जीवन - केंद्रिक है , पर किसी जीव के जन्म लेने पर कवियों - कलाकारों ने जितना सृजन किया है , उससे कहीं ज्यादा काम जीवन के ख़त्म होने पर मिलता है। मृत्यु पर टिप्पणियाँ संस्कृति - सापेक्ष होती हैं , यानी मौत पर हर समाज में औरों से अलग खास नज़रिया होता है। फिर भी इस पर एक स्पष्ट सार्वभौमिक आख्यान है। जीवन की सभी अच्छी बातें तभी होती हैं जब हम जीवित होते हैं। हर जीव का एक दिन मरना तय है , देर - सबेर हम सब को मौत का सामना करना है , और मरने पर हम निष्क्रिय...

मुझे अरुंधती से ईर्ष्या है

मैं उन करोड़ों लोगों में से हूँ, जो इस वक़्त अरुंधती के साथ हैं. ये सभी लोग अरुंधती के साथ जेल जाने की हिम्मत नहीं रखते, मैं भी डरपोक हूँ. पर इस वक़्त मैं अरुंधती का साथ देने के लिए जेल जाने को भी तैयार हूँ. अरुंधती ने जो कहा है वह हम उन सब लोगों की तरफ से कहा है, जो निरंतर हो रहे अन्याय को सह नहीं सकते. देशभक्ति के नाम पर मुल्क के गरीबों के खून पसीने को कश्मीरियों के दमन के लिए बहा देना नाजायज है और यह कभी भी जायज नहीं हो सकता. कश्मीर पर सोचते हुए हम लोग राष्ट्रवाद के मुहावरों में फंसे रह जाते हैं. जब इसी बीच लोग मर रहे हैं, कश्मीरी मर रहे हैं, हिन्दुस्तानी मर रहे हैं. करोड़ों करोड़ों रुपए तबाह हो रहे हैं. किसलिए, सिर्फ एक नफरत का समंदर इकठ्ठा करने के लिए. यह सही है कि हमें इस बात की चिंता है की आज़ाद कश्मीर का स्वरुप कैसा होगा और हमारी और पकिस्तान की हुकूमतों जैसी ही सरकार आगे आजादी के बाद उनकी भी हो तो आज से कोई बेहतर स्थिति कश्मीरियों की तब होगी यह नहीं कहा जा सकता. पर अगर यह उनके लिए एक ऐतिहासिक गलती साबित होती है तो इस गलती को करने का अधिकार उनको है. जिनको यह द...