My Photo
Name:
Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, August 23, 2014

कमल जीत चौधरी की कविताएँ

मैंने इस ब्लॉग में अब तक अपने चिट्ठे ही पोस्ट किए हैं। युवा कवि कमल जीत चौधरी ने आग्रह किया है कि इसमें एक खुले मंच की तरह दूसरों के लिए भी जगह रखूँ। ठीक है। इस बार उनकी कुछ कविताएँ हैं - 

मेरे दो परिचित

वे दोनों जब मिले थे
उस वक्त सुबह थी
एक दूसरे के नंगे पाँव देख
वे खुश होते थे
उनके दरमियाँ वे दोनों तक न थे ...

अचानक एक दिन
उनके बीच कन्डी की जेठी दोपहर आ गई
वे धूप से बचना चाहते थे
सूखे गरने के बिसले कांटे उनकी छाया कैसे बनते
वे एक दूसरे को ओढ़ना चाहते थे
पर वे अब आसमान न रहे थे
वे एक ऐसी चादर बन चुके थे
जिससे एक साथ सिर और पैर नहीं ढके जा सकते थे ...

अब जब शाम का किवाड़ खुल रहा है
उनके प्रेमघर के आँगन में
वे नया होकर निकलने की आस लिए
सूरज के साथ डूबना चाहते हैं ...
  ****


हार

चायकाल में
अपने कड़वे कसैले
हृदयों को
शूगरलेस टी से करते हैं सिंचित
करते हैं चिंतन होते हैं चिंतित
बातें करते हैं इधर उधर की
कुछ इधर से उधर
कुछ उधर से इधर
ठीक यही से निश्चित होती है
काले धारीले अंगूठों
मजबूत सिरों की माप
कटार
तलवार
धार -

एकलव्य
बार्बरीक की हार ...
  ****



जहां वहां


उन्हें
होना चाहिए था जहां
वे नहीं हैं वहां
वहां जो हैं
उन्हें
नहीं होना चाहिए था वहां
उन्हें तो
वहां होना चाहिए था
जहां उन्हें
होना चाहिए था -

सोचने की बात है
जहां है वहां के घर
वहां है जहां के घर
फिर मेजबानी कौन कर रहा है।
  ****



विश्वास


कवि ने कहा
बची रहे घास
एक आस

घास ने कहा
बची रहे कविता
सब बचा रहेगा।
  ****


प्याज की तरह


वो मुझे खोलता गया
परत - दर - परत प्याज की तरह
...
फिर
आँख में आँसू
हाथ में लिए शून्य  
वह तलाशता फिरा   घना जंगल...
****



लेखन -१


दीवार फांदकर
घुस जाना
किले में
घोड़ों को खोल
कैदियों को भगा देना
राजा के तख़्त को लात मार
फांसी के तख्तों को चूम लेना ...

फूलों से प्रेम करके
छलनी काँटों से होना
कैक्टस को गले लगाना
जूट की चारपाई को कसकर
पावे का सिरहाना लेकर
तारों पर विश्वास करना ...


लेखन -२

किले से सटती
गली से होकर गुजरना
बंद दरवाज़े देख उँगलियां बेजान हो जाना
गुम्बदों के एक संकेत पर
गन्दी मोरियों से होकर
घोड़ों की लगामें कसना
राजा की चरनपादुका की रज में लोटना ...

कवि गोष्ठी में
खिड़कियों की सलाखों से
कलियों को फूलों
फूलों को गुलदानों में बदल देना
महंगे बार रेस्तरां में घड़े शराब के बाद
दो बुरकियाँ रोटी खाकर
अपने फलैट की ऊँची बालकनी से
हवाई अड्डे पर टंगे चाँद देख
रुई पर पसर जाना ....
  ****



खेत


याद आते हैं
मुझे वे दिन
जब धान काटते हुए
थक जाने पर
शर्त लगा लेता था अपने आप से
कि पूरा खेत काटने पर ही उठूँगा
नहीं तो खो दूंगा
अपनी कोई प्यारी चीज
मैंने भयवश दम साधकर
बचायी कितनी ही चीजें ...

डर आज भी है
कुछ चीजें खो देने का
मन आज भी है
कुछ पा लेने का
दम आज भी है
शर्त खेलने का
कुछ नहीं है तो वे खेत ...
  ****


मुलाकात

चली गई
एक पत्ता खामोशी
चला गया
एक पत्ता समय -
नीचे छूट गया
दरख्त के
एक पत्ता रंग .
  ****



दांत और ब्लेड - १


दांत सिर्फ शेर और भेड़िए के ही नहीं होते
चूहे और गिलहरी के भी होते हैं
ब्लेड सिर्फ तुम्हारे पास ही नहीं हैं
मिस्त्री और नाई के पास भी हैं |


दांत और ब्लेड - २


तुम्हारे रक्तसने दांतों को देख
मैंने नमक खाना छोड़ दिया है
मैं दांतों का मुकाबला दांतों से करूँगा
तुम्हारे हाथों में ब्लेड देख
मेरे खून का लोहा खुरदरापन छोड़ चुका
मैं धार का मुकाबला धार से करूँगा |


दांत और ब्लेड - ३


बोलो तो सही
तुम्हारी दहाड़ ममिया जाएगी
मैं दांत के साथ दांत बनकर
तुम्हारे मुंह में निकल चुका हूँ
डालो तो सही
अपनी जेब में हाथ
मैं अन्दर बैठा ब्लेड बन चुका हूँ |

Labels:

7 Comments:

Blogger कमल जीत चौधरी said...

Meri kavitaon ko sthaan dene ke liye aapka haardik dhanyavaad agraj!

1:35 PM, August 24, 2014  
Blogger Kumar Krishan Sharma said...

BHAI KAMALJEET...BHAT SHANDAAR KAVITAIEN....BDAHI

8:10 PM, August 24, 2014  
Blogger Unknown said...

Mere do prichit........wonderful....he sir ....isko English me bi padne aur sunne ka apna hi maja hoga....John keat jesi poem he je ....sir je aapki best poetry me se ek he....

8:55 PM, June 12, 2019  
Blogger kulwindermeet said...

कमलजीत की कविताएँ एक ऐसा मुहावरा लेके आती हैं जहाँ खेत में फ़सल ,समुन्दर में नमक और पहाड़ पे बर्फ़ का एक साथ एहसास किया जा सकता है

9:04 PM, June 12, 2019  
Anonymous Anonymous said...

कुलविंदर मीत जी, आपकी टिप्पणी मायने रखती है। इससे आगे की कविताई आप पढ़ चुके हैं। यात्रा जारी है। आगे भी ईमानदार रहा तो कुछ बहुत अच्छी कविताएँ मुझे चुन ही लेंगी। धन्यवाद।।

7:12 PM, June 13, 2019  
Anonymous Anonymous said...

अज्ञात पाठक जी, इस पाठ और सुन्दर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जिन थोड़ी सी कविताओं का बांग्ला, उड़िया और मराठी में अनुवाद हुआ था, पसन्द किया गया। अंग्रेज़ी में हो तो पता चले कि इसके पाठक इसे कैसे लेते हैं। ��☺
आपको शुभकामनाएँ...��
- कमल जीत चौधरी

7:30 PM, June 13, 2019  
Anonymous Anonymous said...

भाई, लेखन-1 को बीच में रखकर सारी कविताएँ पढ़ी जानी चाहिए। यहाँ एक धड़कता हुआ दिल है। प्रतिरोध रचते रहें, हम भी हाथ उठाए रखेंगे। आपको और आदरणीय लालटू जी को शुभकामनाएं।
- रजनीश कुमार चौधरी

5:23 PM, June 14, 2019  

Post a Comment

<< Home