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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Thursday, October 02, 2014

किसका नाम लूँ


नदी अब तुम्हारे लिए


नदी अब तुम्हारे लिए कविता न लिखूँगा
तुम किनारे तोड़ कर आती हो तो
नदी नहीं रहती
तुम मेरे प्राण पर चाबुक की मार मारती हो
मैं भागता हूँ तो तुम अंतरिक्ष के
डरावने प्राणी की तरह लंबी बाँहों से
घेर लेती हो मुझे

नदी तुम्हारे लिए कविता न लिखूँगा
मैं इंतज़ार करुँगा
सौ साल कि तुम फिर धो जाओ मेरा बदन
और मैं लौटूँ कदंब के फूल इकट्ठे करता हुआ
कि तुम मुझे डराने मेरे साथ मेरे पीछे या
मेरे आगे न आओ
अब मेरी माँ बूढ़ी हो गई है
मैं किसका नाम लेकर चिल्लाऊँ।
(2008; 'नहा कर नहीं लौटा है बुद्ध' में संकलित)



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2 Comments:

Blogger Unknown said...

amazing. tweeted this

8:14 PM, October 02, 2014  
Blogger कविता रावत said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति

6:11 PM, October 04, 2014  

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