Friday, August 29, 2014

फिर वही


इसराइल अपने सभी पड़ोसी मुल्कों पर एकाधिक बार हमला कर चुका है। एक जमाने में लेबनन का बेरुत शहर 

मध्य-पूर्व का स्वर्ग कहलाता था। 1978 और 1982 के इसराइली हमलों से बेरुत तबाह हो गया। 1982 में मैं

 अमेरिका में था। हमारे विश्वविद्यालय में एक इंटरनैशनल सेंटर था जहाँ विदेशी छात्र इकट्ठे होते थे और सांस्कृतिक 

गतिविधियों में भाग लेते थे। सेंटर से पत्रिका निकालने की बात सोची गई। उन दिनों मैं ज्यादातर अंग्रेज़ी में ही लिखता
 
 था। 1983 में 'Thoughts' नाम से छपी पत्रिका में मेरी कई सारी कविताओं में पंजाबी, हिंदी और बांग्ला में लिखी

 एक-एक रचना भी थी। हिंदी में लिखी कविता लेबनन पर इसराइली हमले की खबर सुनकर लिखी थी। इन दिनों

 फिलस्तीन पर हो रहे ज़ुल्म की खबरें पढ़ते हुए वह कविता याद आई तो ढूँढ के निकाला।


आज की शाम फिर वही
 
थकी-सी बदली
 
यादों से लदी

कीचड़ घुली

परेशान-सी बदली

आज चाँद-तारों पर

सैंकड़ों गुनाहों का बोझ

गंदी दीवारों में घिरी कैद

आज की शाम फिर वही

तड़पती 
 
पेड़ों पर अटकी

उदास-सी भटकी

मीनारों पर लटकी बदली

आज हवा में जलते खून की

तीखी बदबू; हर चेहरे

पर चिंताएँ

आज की शाम फिर वही 
 
बेजान-सी बदली

वही बदनाम

वही मूक, अनाम

अँधेरी बेईमान बदली।

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