व्याख्यान
तो
फिर एक बार
भीड़
भरे हॉल में बोले साईनाथ
बाहर
मौसम अच्छा था
मीठी
धूप और बयार का मिजाज भूल
जितने
बैठे उतने खड़े
सुना
एक बार फिर गैरबराबरी पर बोलते
साईनाथ
बंद
हॉल में थोड़ा सा आस्माँ भारी
था
भूखे-प्यासे
लोगों की चर्चा का वजन भारी
था
फर्श
पर कुर्सियों पर जमे रहे लोग
गुरुत्वाकर्षण
का बल अचानक भारी था
विट
और ह्यूमर पर हँसे कुछ लोग
कुछ
निरंतर गंभीर रह गए
रोया
कोई नहीं पर रुआँसी थीं कुछ
आँखें
माहौल
वाकई भारी था
ध्यान
से सुनते हुए
कुछ
युवा लड़के-लड़कियाँ
देखते
दिखाते रहे
स्मार्ट
फोन पर
अपने
और दोस्तों के फोटोग्राफ,
नरेंद्र
मोदी और केजरीवाल पर एफ बी
कमेंट
ज़रूरी
था कि पूरे व्याख्यान को सुनें
बाकी
जीवन में सुना सकें घर-परिवार-दोस्तों
को
सुना
है कभी साईनाथ को
कमाल
वक्ता कमाल बातें
एक
बार फिर दर्ज़ हुआ
विमर्श
सवाल जवाब का सिलसिला
थके
नहीं लंबे जवाब दिए
बस
एक बार खिड़की से बाहर देखा
क्षण
भर के लिए रुक सा गया समय
सोच
रहे थे साल के दो सौ बहत्तर
दिनों को
जब
ऊबड़-खाबड़
ज़मीन सरीखी ज़िंदगी जीते
लोगों का साथ होता है
जिनके
लिए बहाने को अब आँसू भी नहीं
बचे हैं
वह
एक रुका क्षण ले गया उनको वहीं
विदर्भ अनंतपुर
कुछ
लोग इसी मौके में हॉल से बाहर
निकल आए
इस
साल इस हॉल में
यूँ
बीत गया एक और व्याख्यान।
- (जनसत्ता - 2014)
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