My Photo
Name:
Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, February 09, 2014

चेतन


पिछले साल मेरे कई चिट्ठे गुजर गई शख्सियतों पर स्मृतिलेख थे। एकबार तो मुझे लगने लगा था कि कुछ गड़बड़ है। क्या मैं इन स्मृतिलेखों के अलावा अब कुछ भी नहीं लिख सकता! बहरहाल जिनपर वे लेख थे, वे इस अर्थ में बड़े लोग थे कि समाज में बहुत सारे लोग उनको जानते थे। उनमें से जो परिचित भी थे, वे उस अर्थ में मेरे मित्र न थे जैसे कि नियमित मिलने, खाने-पीने वाले दोस्त होते हैं। पिछले साल जिस व्यक्ति की मौत पर मैंने कुछ खास लिखा नहीं है, पर जो मेरा बहुत करीब का मित्र था, जिसके साथ उसकी तमाम परेशान करने वाली खासियतों के बावजूद अटूट रिश्ता था, वह मेरा दोस्त चेतन था।

चेतन की मौत जब हुई, उसके थोड़ी देर पहले अफजल गुरू को दिल्ली में फाँसी दे दी गई थी। मैं उस दिन पंजाब विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में था। अमूल्य ने मुझे स्टेशन छोड़ने जाना था। मैं, अमूल्य और साथ में शायद सिद्धार्थ था, हमलोग 9 फरवरी की उस ठंडी सुबह को गेस्ट हाउस के डाइनिंग रूम में नाश्ता कर रहे थे। मैं शायद दही के साथ बिना तेल के आलू पराँठे और चाय ले रहा था। बाकी जने नियमित तले पराँठे, दही और चाय का नाश्ता कर रहे थे। तभी सामने टी वी पर खबर आई और जैसा होता है, बार बार एक ही दृश्य, अफजल गुरू, कुछ अधिकारियों से बातचीत वगैरह दिखाया जा रहा था। देखते ही मैं उदास हो गया क्योंकि मेरा मानना यह है कि अफजल गुरू निर्दोष था और जिन चीजों में वह शामिल था भी वह खुफिया विभाग के निर्देश पर था। अमूल्य और सिद्धार्थ भी चुप थे।

याद नहीं आ रहा कि नाश्ता के पहले या बाद में विजया का फोन आया था। उसने कहा था कि वह सुबह सुबह ग़लती से चेतन को फ़ोन कर बैठी थी। उसने किसी और चेतन से बात करनी थी, पर वह हमारे चेतन को नंबर मिला बैठी थी। चेतन मुंबई में था। अपनी दिल की बीमारी के चेकअप के लिए वह मुंबई गया हुआ था और अपने भाई के घर ठहरा हुआ था। आम दिनों की तरह देर रात में सोने गया होगा और सुबह फ़ोन की वजह से नींद टूट गई।

मैं सुबह की शताब्दी से दिल्ली आया और सीधे प्रगति मैदान में पुस्तक मेले में आया। शायद दोपहर के तीन या चार बजे थे। मुझे दलजीत अमी का फोन आया। मुझे समझ नहीं आया कि वह क्या कह रहा है। वह तीन चार बार कहता रहा कि चेतन इज़ नो मोर और मैं फिर फिर पूछता रहा कि वह क्या कह रहा है। फिर जिस भी हाल में मैं था, शायद हिंदी पुस्तकों वाला हाल था, वहाँ से बाहर खुले में निकल आया कि अच्छी तरह सुन सकूँ। आखिर बात समझ में आई कि चेतन की मौत हो गई है। भारी दिल का दौरा था और वह दाँत मंजन करते हुए गिर पड़ा और तुरंत कूच कर गया। मैंने दलजीत से कहा कि सभी दोस्तों से बात कर बीस फरवरी में स्मृति-सभा का आयोजन करो। उस दिन मुझे किसी काम से चंडीगढ़ वापस आना था।

बाद में देर तक मैं सोचता रहा कि कहीं अफजल गुरू की खबर उसने सुनी हो - और सचमुच उसने सुनी थी क्योंकि उसने परिवार के लोगों को टेक्स्ट मेसेज भेजे थे। उस रात मैं सी एस डी एस के गेस्ट हाउस में ठहरा था। शायद रात को शाना का फ़ोन आया था। बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उनकी अपनी ज़िंदगी होती है, फिर भी जितने साल शाना ने चंडीगढ़ में बिताए थे, चूँकि चेतन का हमारे घर नियमित आना-जाना रहता था, इसलिए अफसोस तो उसे भी होना था।

चेतन के बारे में मुझे लंबा संस्मरण लिखना होगा। सिर्फ इसलिए नहीं कि वह मेरा दोस्त था। सिर्फ इसलिए नहीं कि उसने मेरे साथ कई काम किए, तरह तरह के संघर्षों में हमें कंप्यूटर या अन्य तरह की तकनीकी मदद की। चेतन की तकलीफें हमारे समय की प्रतिनिधि तकलीफें हैं। आज के हिंदुस्तान में तरक्कीपसंद होना, नास्तिक होना, वाम चेतना लिए होना, वाम के बिखराव और बौद्धिक कसरतों को देखते हुए बड़े स्तर पर आंदोलनों से जुड़ न पाना, लघु-संप्रदाय की अस्मिता ढोना, ईमानदार होना, ये बातें तकलीफों का भंडार लाती हैं। चेतन हम सब के अंदर की इन्हीं कुछ तकलीफों का बाहरी चेहरा था। हम उसे लेकर परेशान भी होते और उसे अपने अंदर से निकाल भी न पाते।

कभी लिखेंगे। उस पर संस्मरण लिखना तो अपनी कहानी लिखना होगा। यह तो महज भूमिका है।





Labels:

3 Comments:

Blogger Daljit Ami said...

लिखना होगा।

5:18 PM, February 09, 2014  
Blogger Unknown said...

लिखें... ताकि हम पुन:श्च चेतन को गहरे से याद करें। ऐसा करने को जी चाहता है।
वो सारी अच्छी फ़िल्में जो उसने इतनी शिद्दत से हमें दिखाईं,जिन का रस हमारे भीतर फ़ैला हुआ है, वो उस स्मृति का स्पर्श चाहती हैं।

10:06 PM, February 09, 2014  
Blogger girlsguidetosurvival said...

My deep sympathies to you and all friends. My last memory of Chetan was when we all went out for dinner and a movie, in 2005.
I remember his and your kindness in hard times.
Please do write we'll read and keep him alive in our memory.
Peace,
DG

10:23 AM, January 23, 2015  

Post a Comment

<< Home