Monday, May 17, 2010

ये आम दिन हैं

ये आम दिन हैं। नहीं यह बात हिंदी में ठीक नहीं कही जा सकती। These are mango days. हालाँकि अभी बाज़ार में यहाँ का प्रसिद्ध बंगानापल्ली आम आया नहीं है। औसतन दिन में एक छोटा आम खा ही लेता हूँ। और बढ़िया यह कि मीठे ही निकल रहे हैं, हालाँकि कई अभी भी गैस के पकाए दिखते हैं। विकी में आम पर अच्छी जानकारी है। पर आम पर अच्छी कविता नेट पर नहीं मिली। धर्मवीर भारती की कनुप्रिया - आम्र-बौर का गीत कविताकोश में है, पर वह आम पर नहीं कनुप्रिया पर है।

मैंने जो कवितायेँ बचपन में पढ़ी हैं, वे पेट में हैं, पर दिमाग में नहीं आ रहीं। एक बच्चे की लिखी एक कविता यहाँ मिली। वैसे यह भी है कि यार आम पर भी कविताई कर के क्या कर लोगे।

इस बार के यानी मई के समकालीन जनमत में छत्तीसगढ़ पर मेरी एक कविता आयी है, इसी अंक में हिमांशु कुमार और सत्य प्रकाश के आलेख भी हैं। पता चला है कि आउटलुक में प्रकाशित आलेख की वजह से अरुंधती राय पर मुकदमा चलाने की बातें हो रही हैं। बस क्या कहें, ये आम दिन हैं।

2 comments:

Pratyaksha said...

"आम" दिनों की खास कहानी , मन का रेडियो ..

अफ़लातून said...

गुलाब-ख़ास एक आम है !