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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, April 04, 2010

हमें खुद से लड़ना है

हाल में लिखी मेरी एक कविता, जो एक ज़िद्दी धुन ब्लाग पर पोस्ट हुई है, पर कुछ टिप्पणियाँ इस तरह से आई हैं कि इसमें एक बड़े कवि को निशाने पर लेने की कोशिश है। यह सच है कि कविता लिखते हुए जनसत्ता में हाल में प्रकाशित विष्णु खरे के हुसैन पर लिखे आलेख से मैं परेशान था, पर मेरा मकसद विष्णु जी पर छींटाकशी करने से नहीं था। मैं समझता हूँ हमलोगों में सांप्रदायिक सोच व्यापक पैमाने में मौजूद है। विष्णु जी के लेख से परशानी होती है क्योंकि वे हमारे आदर्श कवियों में से हैं। पर यह सोचना कि बाकी हम लोग संकीर्ण पूर्वाग्रहों से मुक्त हैं, बचकानी बात है। हमें खुद से लड़ना है - दूसरों को दिखलाते रहने से काम नहीं चलेगा। बहरहाल मैंने निम्न टिप्पणी उसी ब्लाग पर पोस्ट की है।

'मैंने तो सिर्फ अपनी मनस्थिति का बयान किया है। सवाल यह नहीं कि कौन अपराधी है, सवाल यह है कि बहुसंख्यक लोगों की संस्कृति(यों) और परंपराओं के वर्चस्व में जीते हुए हममें से कोई भी मुख्यधारा से अलग मुद्दों पर किस हद तक खुला दिमाग रख सकता है। कहने को हम किसी एक कवि या लेखक को निशाना बना सकते हैं, पर मेरा मकसद यह नहीं है, मैं एक तरह से खुद को निशाना बना रहा हूँ। किसी भी बड़े और सजग कवि से तो मैं सीख ही सकता हूँ। अगर एक सचेत कवि की किसी बात में हमें किसी प्रकार की संकीर्णता दिखती है, तो मैं या कोई और भी उस संकीर्णता से मुक्त हों, ऐसा नहीं हो सकता है। मैं चाहता हूँ कि हममें से हर कोई इस बात को सोचे कि हम कितनी ईमानदारी से जो कहते हैं उसको वाकई अपने जीवन में जीते हैं। मुझे लगता है कि हमें आपस की खींचातानी या किसी एक कवि या लेखक का नाम लेकर बहस करने से बचना चाहिए। मैं अक्सर देखता हूँ कि इस तरह की बहस से मूल बात हाशिए पर चली जाती है। अपनी कमजोरियों और पूर्वाग्रहों को समझते हुए और उन्हें स्वीकार करते हुए ही हम बेहतरी की ओर बढ़ सकते हैं।'

4 Comments:

Blogger Dr. C S Changeriya said...

nice

acha laga

http://kavyawani.blogspot.com/


shekhar kumawat

2:07 PM, April 04, 2010  
Blogger कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

अच्छी प्रस्तुति.....विचारणीय पोस्ट....
http://laddoospeaks.blogspot.com/

5:52 PM, April 04, 2010  
Blogger Ashok Kumar pandey said...

लाल्टू जी
मुझे नहीं लगता कि उस कविता पर आपको किसी भी स्पष्टीकरण की ज़रूरत है। कोई कितना भी वरिष्ठ हो वह सवालों के दायरे से बाहर नहीं होता। आपने बिल्कुल जायज़ चिन्ता व्यक्त की है…

8:13 PM, April 09, 2010  
Blogger Ashok Kumar pandey said...

इस ब्लाग का लिंक जनपक्षधर चेतना के सामूहिक ब्लाग जनपक्ष http://jantakapaksh.blogspot.com
पर भी दे रहा हूं। इस सामूहिक प्रयास में आपके योगदान का स्वागत है।

ashokk34@gmail.com

8:16 PM, April 09, 2010  

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