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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Monday, December 28, 2009

तीन महीने की जेल और सात दिनों की फाँसी

मैं चाहता था कि साथ साथ सुकुमार राय के बनाए स्केच भी पोस्ट करता जाऊँ। पहली किस्त में बिल्ले का स्केच उन्हीं का बनाया है। चलो, स्केच के साथ फिर कभी।

पिछली किस्त से आगेः


... "धर्मावतार हुजूर! यह मानहानि का मुकदमा है। इसलिए पहले यह समझना होगा कि मान किसे कहते हैं। अरबी जाति की जड़ वाली सब्जियों को मान कहते हैं। अरबी बड़ी पौष्टिक चीज है। कई प्रकार की अरबी होती है, देशी अरबी, विदेशी अरबी, जंगली अरबी, पानी की अरबी इत्यादि।
अरबी के पौधे की जड़ ही तो अरबी है, इसलिए हमें इस विषय की जड़ तक जाना चाहिए।"

इतना कहते ही एक सियार जिसके सिर पर नकली वालों की एक टोपी सी थी, झट से कूद कर बोला, "हुजूर, अरबी बड़ी बेकार चीज है। अरबी खाकर गले में खुजली होती है। "जा, जली अरबी खा" कहने पर लोग बिगड़ जाते
हैं। अरबी खाते कौन हैं? अरबी खाते हैं सूअर और साही। आऽ.. थूः" साही फिर फूँफूँत फूँत कर रोने ही वाला था, पर मगर ने उस बड़ी किताब से उसके सिर पर मारा और पूछा, "कागज़ात दलील, साक्षी सबूत कुछ हैं?" साही ने सिरमुँड़े की ओर देखकर कहा, "उसके हाथ में सभी कागज़ात हैं न।" कहते ही मगर ने सिरमुँड़े से बहुत से कागज़ छीनकर अचानक बीच से पढ़ना शुरू किया -

एक के ऊपर दूई
चंपा गुलाब जूही
सन से बुनी भुँई

खटिए पे सोई
हिल्सा रोहू गिरई
गोबर पानी धोई

बाँध पोटली थोथी
पालक सरसो मेथी
रोता क्यों रे तू भी।

साही बोला, "अरे यह क्यों पढ़ रहे हो? यह थोड़े ही है।" मगर बोला, "अच्छा? ठहरो।" यह कह कर वह फिर एक कागज लेकर पढ़ने लगा।

चाँदनी रात को भूतनी बुआ सहिजन तले ढूँढ न रे -
तोड़ खोपड़ी भुक्खड़ चौकड़ी हड्डी चकाचक भोज चखे।
आँवले पे टँगी, माहवर से रँगी, नाक लटकाई पिशाचिनी
बालियाँ लहराती, बोले हड़काती, मुँझे क्यों न न्यौंतां नीं!
मुंड माला, गले में डाले, बाल फैलाए, उल्टी झूले बुढ़िया
कहे दोलती, सब सालों का मांस खाऊँगी, स्वाद बड़ा है बढ़िया।

साही बोला, "धत् तेरे की! पता नहीं क्या पढ़ते जा रहा है!"

मगर बोला, "तो फिर क्या पढूँ - यह वाला? दही का दंगल, खट्टा-मीठा मंगल, चादर कंबल, ले इतना बल, बुद्धू भोंदल – यह भी नहीं?"

अच्छा तो ठहरो देखता हूँ - घनी अँधेरी राती में, जा सोई बरसाती में, बार बार भूख क्यों लागे रे? - क्या कहा? यह सब नहीं? कविता तुम्हारी बीबी के नाम है? - तो यह बा ततो पहले ही बतला सकते थे। अरे मिल गई – रामभजन की बीबी, पक्की शेर की दीदी! बर्त्तन रखे झनार् झन, कपड़े धोए धमाधम! - यह भी ठीक नहीं? तो फिर ज़रुर यह वाली है -
खः खः खाँसी, उफ् उफ् ताप, फुस्स फुस्स छेद, बुढ़वा जा खेत। दाढ़ों में दर्द, पसलियों का मर्ज, बुढ़ऊ आज रात, जा रहा स्वर्ग। साही जोर जोर से रोने लगा, "हाय, हाय! मेरे सारे पैसे लुट गए! कहाँ से आया यह अहमक वकील, कागज़ात दिए भी तो खोज नहीं पाता।"

सिरमुँड़ा अब तक सिमटा सा बैठा था, अचानक वह बोल उठा, "क्या सुनन चाहते हो? वह जो - चमगादड़ कहे - सुन भई साही - वह वाला?"

साही ने तुरंत परेशान सा होकर कहा, "चमगादड़ क्या कहता है? हुजूर, ऐसा है तो चमगादड़कृष्ण को गवाह मानने का आदेश करें।"

भेक मेढक ने गालों को फुलाकर गला फाड़ कर आवाज दी - "चमगादड़कृष्ण हाजिर?"

सबने इधर उधर झाँककर देखा। चमागादड़ कहीं न था। तब सियार ने कहा, "तो फिर हुजूर, इन सब को फाँसी का दंड दें।"

मगर ने कहा, "ऐसा क्यों? अभी तो हम अपील कर सकते हैं।"

उल्लू ने आँखें मींचे कहा, "अपील पेश हो। गवाह लाओ।"

मगर ने इधर उधर झाँक कर अंट संट वंट से पूछा, "गवाही देगा? चार आने मिलेंगे।" पैसों का नाम लेते ही अंट संट वंट झट से गवाही देने के लिए उठा और फिर खी खी कर हँस उठा।

सियार बोला, "हँस क्यों रहे हो?"

अंट संट वंट बोला, एक आदमी को सिखाया गया था कि गवाही में कहना, पुस्तक पर हरे रंग की जिल्द है, कान के पास चमड़ा नीले रंग का और सिर के ऊपर लाल स्याही की छाप है। वकील ने जैसे ही उससे पूछा, "तुम असामी को जानते हो?" तुरंत वह बोल उठा, "अरे हाँ हाँ, हरे रंग की जिल्द, कान के पास नीला चमड़ा, सिर पर लाल स्याही की छाप" – हो हो हो हो ---।"

सियार ने पूछा, "तुम साही को पहचानते हो?"

अंट संट वंट बोला, "हाँ, साही पहचानता हूँ, मगर पहचानता हूँ, सब पहचानता हूँ। साही गड्ढे में रहता है, उसके शरीर पर लंबे लंबे काँटे हैं और मगर के शरीर पर टीले जैसे धब्बे हैं, वे बकरी वकरी पकड़ के खाते हैं।" ऐसा कहते ही व्याकरण सिंह व्या व्या चीखते हुए जोरों से रो पड़ा।

मैं बोली, "अब क्या हो गया?"

बकरा बोला, "मेरे मँझले मामा का आधा एक मगर खा गया था, उसलिए बाकी आधा मर गया।"

मैं बोली, "गया तो गया, बला टली। तुम अब चुप रहो।"

सियार ने पूछा, "तुम मुकदमे के बारे में कुछ जानते हो।"

अंट संट वंट बोला, "मालूम कैसे नहीं? कोई एक शिकायत करता है, तो उसका एक वकील होता है और एक आदमी को आसाम से लाया जाता है, उसे कहते हैं असामी। उसका भी एक वकील होता है। हर दिन दस गवाह बुलाए जाते हैं। और एक जज होता है, जो बैठे बैठे सोता है।"

उल्लू बोला, "मैं बिल्कुल सो नहीं रहा, मेरी आँखें ठीक नहीं हैं, उसलिए आँखें भींचे हुए हूँ।"

अंट संट वंट बोला, "और भी कई जज देखे हैं, उन सब की आँखों में खराबी होती थी।" कह कर वह खी खी कर जोर से हँसने लगा।

सियार बोला, "अब क्या हो गया?"

अंट संट वंट बोला, "एक आदमी के दिमाग में गड़बड़ी थी। वह हर चीज के लिए एक नाम ढूँढता रहता। एसके जूते का नाम था अविमृष्यकारिता, उसकी छतरी का नाम था प्रत्युत्पन्नमतित्व, उसके लोटे का नाम था परमकल्याणवरषु - पर जैसे ही उसने अपने घर का नाम रखा किंकर्त्तव्यविमूढ़ - बस एक भूकंप आया और घर वर सब गिर पड़ा। हो हो हो हो - ।"

सियार बोला, "अच्छा? क्या नाम है तुम्हारा?"

वह बोला, "अभी मेरा नाम है अंट संट वंट। "

सियार बोला, "नाम के अभी तक का क्या मतलब?"

अंट संट वंट बोला, "यह भी नहीं जानते? सुबह मेरा नाम होता है आलूखोपरा। और जरा सी शाम हो जाए तो मेरा नाम हो जाएगा रामताडू।"

सियार बोला, "रिहाइश कहाँ की है?"

अंट संट वंट बोला, "किसकी बात पूछी? रईस की? रईस गाँव चला गया है।" तुरंत भीड़ में से उधवा व बुधवा एक साथ चिल्ला उठे, "ओ, तब तो रईस ज़रुर मर गया होगा।"

उधवा बोला, "गाँव जाते ही लोग हुस हुस कर मर जाते हैं।"

बुधवा बोला, "हाबूल का चाचा जैसे ही गाँव गया, पता चला कि वह मर गया।"

सियार बोला, "आः, सब एक साथ मत बोलो, बड़ा शोर मचता है।"

यह सुनकर उधवा ने से कहा, "फिर सब एक साथ बोलेगा तो तुझे मार मार कर खत्म कर दूँगा।" बुधवा बोला, "फिर शोर मचाया तो तुझे पकड़ कर पोटली-पिटा बना दूँगा।"

सियार बोला, "हुजूर, ये सब पागल और अहमक हैं, इनकी गवाही की कोई कीमत नहीं है।"

यह सुनकर मगर ने गुस्से से पूँछ का थपेड़ा मारा और कहा, "किसने कहा कि कीमत नहीं है। बाकायदा चार आने खर्च कर गवाही दिलवाई जा रही है।" ऐसा कहते ही उसने ठक ठक कर सोलहा पैसे गिनकर अंट संट वंट के हाथ थमाए।

तुरंत किसी ने ऊपर से कहा, "गवाही नंबर १, नकद हिसाब, कीमत चार आने।"

सियार ने पूछा, "तुम इस विषय पर कुछ और जानते हो?"

अंट संट वंट ने जरा सोचकर कहा, "सियार के बारे में एक गाना है, वह जानता हूँ।"

सियार बोला, "कौन सा गाना, सुनाओ जरा?

अंट संट वंट सुर में गाने लगा, "आ जा, आ जा, सियार बैगन खा जा, नमक तेल कहाँ बता जा।"

इतना कहते ही सियार ने परेशान होकर कहा, "बस, बस, वह किसी और सियार की बात थी, तुम्हारी गवाही खत्म हो गई है।"

इसी बीच जब लोगों ने देखा कि गवाही के लिए पैसे मिल रहे हैं तो गवाही देने के लिए धक्कम धुक्कम मच गई। सब एक दूसरे को धकेल रहे हैं, तभी मैंने देखा कि कौव्वेश्वर ने धम् से पेड़ से उतरकर गवाही के मंच पर बैठ गवाही देनी शुरु कर दी। कोई कुछ कहे - इसके पहले ही उसने कहना शुरु किया, "श्री श्री भूशंडिकौवाय नमः, श्री कौव्वेश्वर कलूटाराम, ४१, झाड़मबाजार, कौवापट्टी। हम हिसाबी बेहिसाबी खुदरा थोक हर प्रकार की गणना का काम -।"

सियार बोला, "बेकार बकवास मत करो। जो पूछूँ उसका जवाब दो। क्या नाम है तुम्हारा?"

कौवा बोला, "अरे क्या परेशानी है! वही तो बतला रहा था मैं - श्री कौव्वेश्वर कलूटाराम।"

सियार बोला, "रिहायश कहाँ की है?"

कौवा बोला, "बतलाया कौवापट्टी।"

सियार बोला, "यहाँ से कितनी दूर है?"

कौवा बोला, "यह बतलाना बड़ा मुश्किल है। प्रति घंटे चार आने, प्रति मील दस पैसे, नकद दो तो दो पैसे कम। जोड़ोगे तो दस आने, घटाओ तो तीन आने, भाग लगाओ तो सात पैसे, गुणा करो तो इक्कीस रुपए।"

सियार बोला, "बस, बस, हमें अपना ज्ञान मत दिखलाओ। मैं पूछता हूँ, घर जाने की राह पहचान सकते हो?”

कौवा बोला, "बिल्कुल पहचानता हूँ जी! यही तो सीधी राह जाती है।"

सियार बोला, "यह राह कितनी दूर जाती है?"

कौवा बोला, "राह कहाँ जाएगी? जहाँ की राह, वहीं जाएगी। राह क्या इधर उधर चरने जाएगी? या हवा खाने दार्जिलिंग जाएगी?"

सियार बोला, "तुम तो बड़े बेअदब हो! अजी, गवाही देने आए हो, इस मुकदमे के बारे में कुछ जानते भी हो?"

कौवा बोला, "वाह, भई वाह! अब तक बैठ कर हिसाब किसने निकाला? जो कुछ जानना चाहो मुझ से जान लो। जैसे किसी भी राशि के मान का क्या मतलब है? मान मतलब कचौड़ी, कचौड़ी चार तरह की होती है - हींग, कचौड़ी, खस्ता कचौड़ी, कचौड़ी नमकीन व जीभकुरकुरी। खाने पर क्या होता है? खाने पर सियारों के गले में खुजली होती है, पर कौवों को नहीं होती। फिर एक गवाह था, नकद कीमत चार आने, वह आसाम में रहता था, उसके कान का चमड़ा नीला हो गया - उसे कहते थे कालाजार। उसके बाद एक आदमी था, हर किसी का नाम ढूँढता रहता - सियार को कहता तेलचोर, मगर को अष्टावक्र, उल्लू को विभीषण - " इतना कहते ही सभा में बड़ा शोर मच गया। मगर ने गुस्से में आकर भेक मेढक को खा लिया - यह देख छुछुंदर किच किच करता जोर से चिल्लाने लगा, सियार एक छतरी लेकर हुस हुस की आवाज में कौव्वेश्वर को भगाने लगा।

उल्लू ने गंभीरता से कहा, "सब चुप रहो, मुझे इस मुकदमे की राय देनी है।" यह कह कर उसने कान पर कलम लटकाए खरगोश को हुल्म दिया, "जो कह रहा हूँ लिख लो। मानहानि का मुकदमा, चौबीस नंबर, फरियादी -साही। असामी - ठहरो। असामी कहाँ है?" तब सबने कहा, "रे मारा, असामी तो कोई है ही नहीं।" जल्दी से समझा बुझा कर किसी तरह सिरमुँड़े को असामी बनाया गया। सिरमुँड़ा था मूर्ख, उसने समझा असामी को भी शायद पैसे मिलें, इसलिए उसने कोई विरोध नहीं किया।

हुक्म हुआ – सिरमुँड़े को तीन महीने की जेल और सात दिनों की फाँसी। मैं सोच रही थी कि ऐसे अन्यायपूर्ण निर्णय का विरोध करना चाहिए, इसी बीच अचानक बकरे ने "व्या-करण सिंह" कह कर पीछे से दौड़कर आकर मुझे सींग मारा, उसके बाद मेरा कान काट लिया। तभी लगा चारों ओर सब कुछ धुँधला सा हो गया। तब जरा ध्यान से देखा, मँझले मामा कान पकड़ कर कह रहे हैं, " व्याकरण सीखने का कह कर लेटे लेटे सो पड़ी?"

मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ! पहले सोचा कि अब तक शायद सपना देख रही थी। पर तुम यकीन न करोगे, अपना रुमाल ढूँढने लगी तो पाया कि रुमाल कहीं भी नहीं था और एक बिल्ला बाड़े पर बैठा मूँछों पर ताव दे रहा था। अचानक मुझे देखते ही खच खच आवाज करता भागा। और बिल्कुल तभी बगीचे के पीछे से एक बकरा व्या स्वर में चिल्ला उठा।

मैंने बड़े मामा को यह सब बतलाया। पर बड़े मामा ने कहा, "जा भाग, बेकार सब सपने देखकर यहाँ गप मारने आई है।" इंसान की उम्र होने पर वह ऐसा हठी हो जाता है कि किसी भी बात पर यकीन नहीं करना चाहता। तुम्हारी तो अभी इतनी उम्र नहीं हुई – इसलिए तुम पर भरोसा है - तभी तुम्हें ये बातें सुनाईं।
(समाप्त)

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2 Comments:

Blogger L.Goswami said...

अच्छा लगा इसे पढ़ना.

10:49 PM, December 28, 2009  
Blogger vasudha said...

there are few who consider the child as a reader to be groomed. you are the one and the important one.

10:02 PM, December 30, 2009  

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