Friday, December 25, 2009

तीसरी किस्त

जितना भी मान लें, तिब्बत तो यह है नहीं। यह हैदराबाद है और कल यहाँ कुछ इलाकों में आगजनी मारपीट जम कर हुई है। ह य व र ल की तीसरी किस्त हाजिर हैः



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...कहीं से एक पुराना दर्जी की माप का फीता निकालकर वह मुझे नापने लगा और बोलने लगा, "खड़ी छब्बीस इंच, बाँह छब्बीस इंच, आस्तीन छब्बीस इंच, सीना छब्बीस इंच, गर्दन छब्बीस इंच।"



मैंने जोरों से विरोध करते हुए कहा, "यह हो ही नहीं सकता, सीने का नाप भी छब्बीस इंच, गर्दन भी छब्बीस इंच? मैं क्या कोई सूअर हूँ?"



बुड्ढे ने कहा, "यकीन नहीं होता तो देखो।"



मैंने देखा कि उस फीते पर लगे पैमाने के चिह्न गायब हो चुके थे, बस २६ जरा सा पढ़ा जा रहा है, इसलिए बुड्ढा जो भी नापे वह सब छब्बीस इंच हो जाता है।



इसके बाद बुड्ढे ने पूछा, "वजन कितना है?"



मैंने कहा, "नहीं जानती!"



बुड्ढे ने दो उँगलियों से मुझे जरा सा इधर उधर दबाया और कहा, "अढ़ाई सेर!"



मैं बोली, "अरे पटलू का ही वजन इक्कीस सेर है, वह मुझसे डेढ़ साल छोटा है।"



कौवे ने जल्दी से कहा, "अरे, तुमलोगों का हिसाब कुछ अलग है।"



बुड्ढा बोला, "तो लिख लो - वजन ढाई सेर, उम्र सैंतीस।"



मैं बोली, "धत् , मेरी उम्र है आठ साल तीन महीने, और यह कहता है सैंतीस।"



बुड्ढे ने थोड़ी देर जाने क्या सोचकर पूछा, "तो बढ़ती की है या घटती की?"



मैं बोली, "मतलब?"



बुड्ढा बोला, "मैंने कहा उम्र बढ़ रही है या कम हो रही है?"



मैं बोली, "उम्र कम कैसी होगी?"



बुड्ढा बोला, "तो क्या केवल बढ़ती ही रहेगी क्या? तब तो मेरी छुट्टी हो गई होती! किसी दिन पता चलेगा कि उम्र बढ़ते बढ़ते एक दिन साठ सत्तर अस्सी पार कर गई है। अंत में बुड्ढा होकर मैं मर ही जाऊँ!"



मैं बोली, "वह तो होगा ही। अस्सी साल की उम्र हो तो आदमी बूढ़ा नहीं होगा?"



बुड्ढा बोला, "तुम्हारी अक्ल! अस्सी साल उम्र होगी ही क्यों? चालीस साल पूरे होते हीहम उम्र का चक्का घुमा देते हैं। फिर इकतालीस, बयालीस नहीं - उनतालीस, अड़तीस, सैंतीस – इस तरह उम्र कम होती रहती है। मेरी उम्र कितनी बार चढ़ी और कितनी बार उतरी, अब मेरी उम्र है तेरह।" यह सुनकर मुझे जोर से हँसी आ गई।



कौवा बोला, "तुम लोग जरा धीरे बातें करो, मैं अपना हिसाब जल्दी से खत्म कर लेता हूँ।"



बुड्ढा झट से मेरे पास आकर टाँग लटकाए फिसफिसाते हुए बोला, "एक मजेदार कहानी सुनाऊँगा। ठहरो जरा सोच लूँ।" यह कहकर हुक्के से अपना गंजा सिर खुजलाते हुए आँखें मींचकर सोचने लगा। फिर अचानक बोल उठा, "हाँ, याद आई, सुनो- "



"तो क्या हुआ बड़े मंत्रीजी तो राजकुमारी के धागे का गोला निगल गए थे। किसी को कुछ नहीं मालूम। उधर दानव ने क्या किया, सोए सोए, हाऊँ माऊँ खाऊँ, मानुष गंध पाऊँ, कहकर हुड़ मुड़ करता खटिए से गिर पड़ा। तुरंत ढाक ढोल, शहनाई, लोग-लश्कर, सिपाही पलटन, हो हल्ला, रे रे, मार मार, काट काट – इसी बीच अचानक राजा बोल उठे, "पक्षीराज अगर हो, तो पूँछ क्यों नहीं है?" यह सुन दोस्त यार, डाक्टर बैद, मुवक्किल वक्किल सब बोल उठे, "सही बात है, पूँछ कहाँ?" किसी के पास जवाब न था, सर् रररर् सब भागने लगे।"



इसी वक्त कौवे ने मेरी ओर देखकर कहा, "तुम्हें विज्ञापन मिला है, हैंडबिल?"



मैं बोली, "नहीं तो, कैसा विज्ञापन?" ऐसा कहते ही कौवे ने एक कागज के बंडल से एक छपा हुआ कागज निकाल मेरे हाथों में दिया, मैंने पढ़ा उसमें लिखा है -



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श्री श्री भूशंडीकौवाय नमः



श्री कौव्वेश्वर कलूटा राम
४१, झाड़मबाजार, कौवापुर



हम हिसाबी व बेहिसाबी खुदरा व थोक हर प्रकार की गणना का काम वैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा संपन्न करते हैं। कीमत प्रति इंच एक रुपए पाँच आना। CHILDREN HALF PRICE यानी बच्चों के लिए शुल्क आधा। अपने जूतों की नाप, शरीर का रंग, कान कुरकुराता है या नहीं, ज़िंदा हैं या मृत इत्यादि आवश्यक विवरण भेजते ही वापसी डाक से कैटलाग भेज देंगे।



सावधान! सावधान! सावधान!



हम सनातन वायसवंशीय पूर्णकुलीन, यानी कि जंगली कौवा हैं। आजकल कई किस्म के लंडूकौवे, हब्बूकौवे, रामकौवे आदि निम्न स्तर के कौवे भी पैसों के लालच में कई प्रकार का व्यवसाय कर रहे हैं। सावधान! उनके विज्ञापन की चमक देखकर ठगे न रह जाएँ।
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कौवा बोला, "कैसा है?"



मैं बोली, "पूरा अच्छी तरह समझ नहीं आया।"



कौवे ने गंभीरता से कहा, "हाँ, बड़ा कठिन है। हर कोई नहीं समझ पाता। एक बार एक खरीददार आया, जिसका सिर था गंजा-"



जैसे ही उसने यह कहा, बुड्ढा हो-हो करता लपक कर आया, "देख! फिर यदि गंजा कहा तो हुक्के से एक चोट मार तेरी स्लेट तोड़ दूँगा।"



कौवा जरा हड़बड़ाकर थोड़ी देर जाने क्या सोचता रहा, उसके बाद बोला, "गंजा नहीं, मँझा सिर, जिस पर माँझा लग लग कर चमक आ गई हो।"



बुड्ढा फिर भी शांत न हुआ, बैठकर गुर्राता रहा। यह देखकर कौवा बोला, "हिसाब देखना है क्या?"



बुड्ढे ने नरम होकर कहा, "हो गया? दिखाओ जरा।"



कौवे ने तुरंत "यह देखो" कहकर स्लेट ठकास से बुड्ढे के सर पर गिरा दी। बुड्ढा झट सिर पर हाथ रखे बैठ गया और छोटे लड़कों की तरह, "ओ माँ, ओ बुआ, ओ शिबूदा," कहकर हाथ पैर उछालकर रोने लगा।



कौवे ने थोड़ी देर आश्चर्य से देखा और फिर बोला, "लग गई! ओफ्फो! जिओ साल हजार!"



बुड्ढे ने रोना रोककर कहा, "एक हजार एक, दो, तीन.........."



कौवा बोला, "चार।"



मुझे लगा कि ये फिर बोलियाँ लगाने वाले हैं, इसलिए जल्दी बोल उठी, "क्यों, हिसाब नहीं देखा तुमने?"



बुड्ढा बोला, "हाँ, हाँ, अरे भूल ही गया! कितना हिसाब हुआ जरा पढ़कर देखूँ।"



मैंने स्लेट उठा कर देखा, वहाँ छोटे छोटे अक्षरों में लिखा है -



"सार्वजनिक सूचनार्थ अत्र कौवालतनामा लिखतुम श्री कौव्वेश्वर कलूटाराम कार्यंचागे। इमारत खिसारत दलील दस्तावेज। तस्य वारिसानजन मालिक दखलीकार हेतु अत्र नायब सिरस्ता दस्त बदस्त कायम मुकर्ररी पत्तनीपट्टा यानी कौवला कबूलीयत। सच्चाई या बिन सच्चाई मूसिफी अदालत या दायरा सुपुर्द असामी फरियादी साक्षी साबूत किया जा रहा या सुलह मुकम्मल डिग्रीजारी नीलाम इश्तहार इत्यादि सर्वप्रकार कानूनी कर्त्तव्य........."



मैंने पूरा पढ़ा ही था कि बूढ़े ने कहा, "यह सब अंट संट क्या लिखा है?"



कौवा बोला, "यह लिखना पड़ता है। नहीं तो अदालत हिसाब मानेगी क्यों? अच्छी तरह ठीक से काम करना हो तो शुरु में यह सब कह देना पड़ता है।"



बुड्ढा बोला, "अचछी बात है, पर कुल हिसाब क्या हुआ, यह तो तुमने बतलाया ही नहीं।"



कौवा बोला, "हाँ, वह भी लिखा गया है। अरे ओ, अंतिम हिस्सा तो पढ़कर सुनाओ।"



मैंने देखा अंत में मोटे अक्षरों में लिखा हुआ है -



सात दूनी चौदह, उम्र २६ इंच, जन्म २½ सेर, खर्च ३७ वर्ष।


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