पता चला कि शिबू सोरेन ने कुछ नक्सलपंथी उम्मीदवारों की सफलता के सिर पर 18 सीटें जीत लीं। अब भाजपा की मदद से सरकार बनेगी। उधर झाड़खंड राज्य की सीमा की दूसरी ओर माओवादियों और तृणमूल कांग्रेस का साथ है। यह भी सुना कि सी पी एम के गुंडे अब लाल रंग छोड़ कर ममता के प्रेम में बमबाजी कर रहे हैं। हमलोग जो वनवासियों के खिलाफ सरकार की अन्यायपूर्ण जंग के खिलाफ हैं, हमें कई लोग माओवादियों का समर्थक ही मानते हैं। हम माओ द्ज़े दोंग को बीसवीं सदी के महानतम व्यक्तित्वों में से एक मानते भी हैं। पर इस वक्त समझना मुश्किल होता जा रहा है कौन किस तरफ है और कौन किस तरफ नहीं; सब कुछ ह य व र ल ही है। इस बीच सरकार की और समझौतापरस्तों की मार से पिट मर रहे हैं लोग।
तो पिछली किस्त से आगेः
...उस पशु ने कहा, "क्यों हँस रहा था सुनोगी? मान लो धरती अगर चपटी होती और सारा पानी फैल कर ज़मीं पर आ जाता और ज़मीन की मिट्टी सब घुल कर चप चप कीचड़ हो जाती और लोग सभी उसमें धपा धप फिसल फिसल गिरते रहते तो....., हो, हो, हा, हा - "
इतना कह कर फिर हँसते हँसते गिर पड़ा।
मैं बोली, "अजीब बात है! इसी बात पर तुम ऐसी भयंकर हँसी हँस रहे हो?"
उसने फिर हँसी रोक कर कहा, "नहीं, नहीं, केवल इसी बात पर नहीं। मान लो एक आदमी आ रहा है, उसके हाथ में कुल्फी बर्फ है और एक हाथ में मिट्टी। और वह आदमी कुल्फी की जगह मिट्टी खा बैठा - हो, हो, हा, हा, हो, हो, हा, हा -" फिर हँसी शुरु।
मैं बोली, "तुम ऐसी असंभव बातें सोचकर क्यों ख़ामख़ाह हँस हँस कर तड़प रहे हो?"
वह बोला, "नहीं, नहीं, हर बात असंभव थोड़े ही है? मान लो एक आदमी छिपकलियाँ पालता है, रोज उन्हें नहा खिला कर सुखाता है, एक दिन एक दढ़ियल बकरा आ कर सभी छिपकलियों को खा गया - हो, हो, हो, हो - "
इस जानवर की आदतें देख कर मुझे बड़ा अचंभा हुआ। मैंने पूछा, "तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है?"
उसने थोड़ी देर सोच कर कहा, "मेरा नाम है अंट संट वंट। मेरा नाम अंट संट वंट, मेरे भाई का नाम अंट संट वंट, मेरे पिता का नाम अंट संट वंट, मेरे फूफे का नाम अंट संट वंट - "
मैं बोली, "इससे तो सीधे ही कह दो कि तुम्हारे वंश में सभी का नाम अंट संट वंट है।"
फिर उसने थोड़ा सोच कर कहा, "ऐसा तो नहीं है, मेरा नाम तकाई है, मेरे मामा का नाम तकाई है, मेरे मौसे का नाम तकाई है, मेरे ससुर का नाम तकाई है.........."
मैंने डाँटकर कहा, "सच कहते हो? या बना रहे हो?"
वह जानवर जरा हड़बड़ा कर बोला, "न, न! मेरे ससुर का नाम बिस्कुट है।"
मुझे बड़ा गुस्सा आया, चीख कर बोली, "मुझे एक भी बात पर यकीन नहीं।"
तभी न कोई बात न तुक, झाड़ी के पीछे से एक बहुत बड़ा दढ़ियल बकरा झाँकते हुए पूछ उठा, "मेरी बात हो रही है क्या?"
मैं कहने ही वाली थी, "नहीं," पर कुछ कहने के पहले ही वह तड़ातड़ बोलने लगा, "तुम लोग जितना भी झगड़ो, ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो बकरे नहीं खाते। इसलिए मैं एक भाषण देना चाहता हूँ, जिसका विषय है - छागल क्या न खाए।"
यह कह कर वह अचानक मेरे सामने आकर भाषण देने लगा -
"प्यारे बच्चों और मित्र अंट संट वंट, मेरे गले से लटके सर्टीफिकेट से तुम समझ ही सकते हो कि मेरा नाम श्री श्री व्याकरण सिंह बी. ए. भोजनविशारद् है। मैं बहुत बढ़िया व्या व्या की आवाज करता हूँ। उसलिए मेरा नाम व्याकरण है और सींग लगे तो देख ही रहे हो। अंग्रेज़ी में लिखता हूँ B.A. यानी ब्यै। कौन कौन सी चीजें खाई जाती हैं, और कौन कौन सी खाई नहीं जातीं; यह सब मैंने खुद परीक्षण कर देखा है, इसलिए मुझे खाद्य विशारद की उपाधि मिली है। तुम लोग कहते हो - पागल क्या न बोले और छागल क्या न खाए – यह बहुत ही गलत बात है। अरे अभी थोड़ी देर पहले इस फिटे मुँह ने कहा था कि दढ़ियल बकरा छिपकली खाता है। यह पूरी तरह से बिल्कुल झूठी बात है। मैंने कई प्रकार की छिपकलियाँ चाटी हैं, उनमें खाने लायक कुछ नहीं है। हाँ, यह ज़रुर है कि कभी कभी हम ऐसी कई चीजें खाते हैं, जो तुम लोग नहीं खाते, जैसे, खाने की चीजों का लिफाफा या खोपरे के रेशे, या अखबार या "चकमक" जैसी बढ़िया पत्रिका। पर इसका मतलब यह नहीं कि कोई दुरुस्त बाइंड की हुई किताब हम खाएँ। भूले-भटके कभी हम कोई रजाई-कंबल या गद्दा-तकिया जैसी चीज थोड़ा बहुत खा लेते हैं, पर जो लोग कहते हैं कि हम खटिया, पलंग या टेबल चेयर भी खाते हैं, वे बड़े झूठ बोलने वाले हैं। जब हमारे मन में खूब उमंग आती है, तब कई प्रकार की चीजें हम शौक से चबाकर या चख कर देखते हैं, जैसे पेंसिल, रबर या बोतल के ढक्कन या सूखे जूते या मोटे कपड़े का थैला। सुना है कि मेरे दादाजी ने एक बार उत्साह में भरपूर हो कर एक अंग्रेज़ के तंबू का कोई आधा हिस्सा खाकर खत्म कर दिया था। पर भई, छुरी कैंची या शीशी बोतल, ऐसी चीजें हम कभी नहीं खाते। कोई कोई साबुन खाना पसंद करता है, पर वे तो बिल्कुल छोटी मोटी साबुनें हैं। मेरे छोटे भाई ने एकबार एक पूरी बार सोप खा ली थी - " कहकर व्याकरण सिंह आस्मान की ओर आँखें किए व्या व्या की आवाज में ज़बर्दस्त रोने लगा। इससे मैं समझ गई कि साबुन खाकर उस भाई की समय से पहले ही मौत हो गई होगी।
अंट संट वंट अब तक लेटा लेटा सोया हुआ था, अचानक बकरे की विकट रोने की आवाज सुन वह हाँऊ माँऊ कहता धड़धड़ाकर उठ पड़ा और बुरी तरह हाँफने लगा। मैंने समझा कि इस बेवकूफ की तो अब मौत ही हो गई! पर थोड़ी देर बाद वह उसी तरह हाथ पैर उछालता खिक् खिक् कर हँस रहा है।
मैं बोली, "इसमें हँसने की क्या बात हुई?"
वह बोला, "अरे, एक आदमी जो था, वह कभी कभी ऐसे भयंकर खुर्राटे मारता कि सभी उस पर बिगड़े रहते! एक दिन उसके घर बिजली गिरी और सब जाकर उसे धमाधम पीटने लगे - हो हो हो हो - " मैं बोली, "क्या फालतू बातें करते हो?" यह कह कर जैसे ही लौटने लगी, झाँक कर देखा कि एक सिरमुँड़ा नौटंकी के किसी चरित्र सा शेरवानी और पाजामा पहने हँसती हुई शक्ल बनाए मेरी ओर देख रहा है। उसे देखते ही मेरे बदन में आग सी लग गई। मुझे वहाँ से आँखें हटाते देख कर उसने बड़े प्यार दुलार से गर्दन टेढ़ी कर दोनों हाथों को हिलाकर कहना शुरु किया, "नहीं भाई, नईं भई, अभी मुझे गाने को मत कहना। सच कहता हूँ, आज मेरा गला इतना साफ नहीं है।"
मैं बोली, "अच्छी मुसीबत है! तुम्हें गाने को कहा ही किसने है?"
वह आदमी ऐसा बेहया निकला, मेरे कानों के सामने भुनभुनाने लगा, "गुस्सा आ गया, हाँ भई, गुस्सा क्यों करती हो? अच्छा कोई बात नहीं, कुछ गीत सुना ही देता हूँ, गुस्से की क्या ज़रुरत है भई?"
मेरे कुछ कहने के पहले ही वह बकरा और अंट संट वंट एक साथ चिला उठे, "हाँ, हाँ, गाना हो, गाना हो," तुरमत उस सिरमुँड़े ने जेब से लंबे गानों की दो पट्टियाँ निकालीं, उन्हें आँखों के पास रखा और गुनगुनाते हुए अचानक पतली आवाज में चीखकर गाना शुरु किया - "लाल गीत में नीला सुर, मीठी मीठी गंध"
इसी एक पंक्ति को उसने एकबार गाया, दो बार गाया, पाँच बार गाया। दस बार गाया।
मैं बोली, "अरे, यह तो बड़ा बवेला मचा दिया, गीत में क्या और कोई पंक्ति नहीं है?"
मुंड़े सिर ने कहा, "हाँ, है, पर वह एक और गीत है। वह है - "अली गली चले राम, फुटपाथ पे धूमधाम, स्याही से चूने का काम।" यह गीत मैं आजकल नहीं गाता। एक और गाना है - नैनीताल के नए आलू - वह बहुत ही महीन आवाज में गाया जाता है। वह भी मैं आजकल नहीं गा सकता। आजकल मैं जो गीत गाता हूँ, वह है शिखिपाँख का गीत। इतना कहकर वह गाने लगा।
मिशिपाँख शिखिपाँख आस्माँ के कानों में
ढक्कन लगी शीशी बोतल पतले से गानों में
शमा भूले टेढ़ी लौ दो दो कदम कित्ती दूर
मोटा पतला सादा काला छलछलक छाया सूर
मैं बोली, "यह भी कोई गीत हुआ?" इसका तो सिर पैर कुछ नहीं है।"
अंट संट वंट बोला, "हाँ, यह गीत बड़ा कठिन है।"
बकरा बोला, "कठिन क्या है? बस जो शीशी बोतल वाली बात थी, वह सख्त लगी, इसके अलावा तो कुछ कठिन नहीं था।"
सिरमुँड़े ने मुँह फैलाकर कहा, "अगर तुमलोग आसान गीत सुनना चाहते थे, तो ऐसा कह ही सकते थे। इतनी बातें सुनाने की क्या ज़रुरत है? मैं क्या सहज गीत नहीं गा सकता क्या?" यह कह कर उसने गाना शुरु किया।
कहे चमगादड़, अरे ओ भाई साही
आज रात को देखोगे एक मजाही
मैं बोली, "मजाही कोई शब्द नहीं होता।"
मुँड़ासिर बोला, "क्यों नहीं होगा - ज़रुर होता है। साही, सिपाही, कड़ाही सब हो सकते हैं, मजाही क्यों नहीं हो सकता?"
बकरा बोला, "अरे तुम गाना तो चालू रखो - क्या होता है या नहीं होता है, यह सब बाद में देखा जाएगा।"
बस वह गीत शुरु हो गया -
कहे चमगादड़, अरे ओ भाई साही
आज रात को देखोगे एक मजाही
आज यहाँ चमगादड़ उल्लू सारे
सब मिल आएँगे, चूहे मरेंगे बेचारे
मेंढक और बेंगची काँपेंगे डर से
फूटेंगी उनकी घुमौड़ियाँ पसीने भर से
दौड़ेगा छुछुंदर, लग जाएगी दंतकड़ी
फिर देखना छिंबो छिंगा चपलड़ी
मैं फिर रोकने जा रही थी, पर सँभल गई। गीत चलता रहा,
साही बोला, अरे झाड़ी में अभी
मेरी बीबी सोने गई, देखो तो सभी
सुन लो अरे ओ उल्लू - उल्लूआनी
शोर से 'गर टूटी उसकी नींद सुहानी
चूर मचूर कर दूँगा मैं खुरच खुरचा कर
यह बात तुम्हीं उन्हें कहना समझाकर
कहे चमगादड़, उल्लू के घर परिवार
कोई क्यों माने तुम्हारी दादा हुँकार
है कोई सोता जब रात हो अँधेरी?
बीबी है तुम्हारी पगली और नशेड़ी
भैया तुम भी हो चले आजकल झक्की
चाट चाट चिमनी, शक्ल काली चक्की
गाना अभी और भी चलता या नहीं मालूम, पर इतना पूरा होते ही शोरगुल सा मच गया। देखती क्या हूँ कि आसपास चारों ओर भीड़ जमा हो गई है। एक साही आगे बैठकर फूँ फूँ कर रो रहा है और नकली बालों की टोपी सी पहने एक मगरमच्छ बहुत बड़ी एक किताब से धीरे धीरे उसकी पीठ पर थपथपी दे रहा है और फिसफिसा कर कह रहा है, "रोना मत, रोना मत, सब ठीक कर दे रहा हूँ। " अचानक तमगा लगाए, पगड़ी पहना, हाथ में एक स्केल लिए एक भेक मेढक बोल उठा, "मानहानि का मुकदमा होगा।"
तभी कहीं से काला चोगा पहना एक हूट हूट उल्लू आकर सबके सामने एक ऊँचे पत्थर पर बैठकर आँखें मींच झूमने लगा और एक बड़ा भारी छुछुंदर एक भद्दे गंदे पंखे से उसे हवा करने लगा।
उल्लू ने खोई खोई आँखों से एक बार चारों ओर देखा, फिर तुरंत आँखें मींचकर कहा, "शिकायत पेश करो।"
उसके इतना कहते ही मगर ने बड़ी तकलीफ से रुआँसा चेहरा बनाकर आँखों में नाखून डालकर खरोंच के पाँच छः बूँद पानी निकाला। उसके बाद जुखाम वाली मोटी आवाज में कहने लगा, "धर्मावतार हुजूर! यह मानहानि का मुकदमा है। इसलिए पहले यह समझना होगा कि मान किसे कहते हैं। अरबी जाति की जड़ वाली सब्जियों को मान कहते हैं। अरबी बड़ी पौष्टिक चीज है। कई प्रकार की अरबी होती है, देशी अरबी, विदेशी अरबी, जंगली अरबी, पानी की अरबी इत्यादि। अरबी के पौधे की जड़ ही तो अरबी है, इसलिए हमें इस विषय की जड़ तक जाना चाहिए।"
(आगे अगली किस्तों में)
तो पिछली किस्त से आगेः
...उस पशु ने कहा, "क्यों हँस रहा था सुनोगी? मान लो धरती अगर चपटी होती और सारा पानी फैल कर ज़मीं पर आ जाता और ज़मीन की मिट्टी सब घुल कर चप चप कीचड़ हो जाती और लोग सभी उसमें धपा धप फिसल फिसल गिरते रहते तो....., हो, हो, हा, हा - "
इतना कह कर फिर हँसते हँसते गिर पड़ा।
मैं बोली, "अजीब बात है! इसी बात पर तुम ऐसी भयंकर हँसी हँस रहे हो?"
उसने फिर हँसी रोक कर कहा, "नहीं, नहीं, केवल इसी बात पर नहीं। मान लो एक आदमी आ रहा है, उसके हाथ में कुल्फी बर्फ है और एक हाथ में मिट्टी। और वह आदमी कुल्फी की जगह मिट्टी खा बैठा - हो, हो, हा, हा, हो, हो, हा, हा -" फिर हँसी शुरु।
मैं बोली, "तुम ऐसी असंभव बातें सोचकर क्यों ख़ामख़ाह हँस हँस कर तड़प रहे हो?"
वह बोला, "नहीं, नहीं, हर बात असंभव थोड़े ही है? मान लो एक आदमी छिपकलियाँ पालता है, रोज उन्हें नहा खिला कर सुखाता है, एक दिन एक दढ़ियल बकरा आ कर सभी छिपकलियों को खा गया - हो, हो, हो, हो - "
इस जानवर की आदतें देख कर मुझे बड़ा अचंभा हुआ। मैंने पूछा, "तुम कौन हो? तुम्हारा नाम क्या है?"
उसने थोड़ी देर सोच कर कहा, "मेरा नाम है अंट संट वंट। मेरा नाम अंट संट वंट, मेरे भाई का नाम अंट संट वंट, मेरे पिता का नाम अंट संट वंट, मेरे फूफे का नाम अंट संट वंट - "
मैं बोली, "इससे तो सीधे ही कह दो कि तुम्हारे वंश में सभी का नाम अंट संट वंट है।"
फिर उसने थोड़ा सोच कर कहा, "ऐसा तो नहीं है, मेरा नाम तकाई है, मेरे मामा का नाम तकाई है, मेरे मौसे का नाम तकाई है, मेरे ससुर का नाम तकाई है.........."
मैंने डाँटकर कहा, "सच कहते हो? या बना रहे हो?"
वह जानवर जरा हड़बड़ा कर बोला, "न, न! मेरे ससुर का नाम बिस्कुट है।"
मुझे बड़ा गुस्सा आया, चीख कर बोली, "मुझे एक भी बात पर यकीन नहीं।"
तभी न कोई बात न तुक, झाड़ी के पीछे से एक बहुत बड़ा दढ़ियल बकरा झाँकते हुए पूछ उठा, "मेरी बात हो रही है क्या?"
मैं कहने ही वाली थी, "नहीं," पर कुछ कहने के पहले ही वह तड़ातड़ बोलने लगा, "तुम लोग जितना भी झगड़ो, ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जो बकरे नहीं खाते। इसलिए मैं एक भाषण देना चाहता हूँ, जिसका विषय है - छागल क्या न खाए।"
यह कह कर वह अचानक मेरे सामने आकर भाषण देने लगा -
"प्यारे बच्चों और मित्र अंट संट वंट, मेरे गले से लटके सर्टीफिकेट से तुम समझ ही सकते हो कि मेरा नाम श्री श्री व्याकरण सिंह बी. ए. भोजनविशारद् है। मैं बहुत बढ़िया व्या व्या की आवाज करता हूँ। उसलिए मेरा नाम व्याकरण है और सींग लगे तो देख ही रहे हो। अंग्रेज़ी में लिखता हूँ B.A. यानी ब्यै। कौन कौन सी चीजें खाई जाती हैं, और कौन कौन सी खाई नहीं जातीं; यह सब मैंने खुद परीक्षण कर देखा है, इसलिए मुझे खाद्य विशारद की उपाधि मिली है। तुम लोग कहते हो - पागल क्या न बोले और छागल क्या न खाए – यह बहुत ही गलत बात है। अरे अभी थोड़ी देर पहले इस फिटे मुँह ने कहा था कि दढ़ियल बकरा छिपकली खाता है। यह पूरी तरह से बिल्कुल झूठी बात है। मैंने कई प्रकार की छिपकलियाँ चाटी हैं, उनमें खाने लायक कुछ नहीं है। हाँ, यह ज़रुर है कि कभी कभी हम ऐसी कई चीजें खाते हैं, जो तुम लोग नहीं खाते, जैसे, खाने की चीजों का लिफाफा या खोपरे के रेशे, या अखबार या "चकमक" जैसी बढ़िया पत्रिका। पर इसका मतलब यह नहीं कि कोई दुरुस्त बाइंड की हुई किताब हम खाएँ। भूले-भटके कभी हम कोई रजाई-कंबल या गद्दा-तकिया जैसी चीज थोड़ा बहुत खा लेते हैं, पर जो लोग कहते हैं कि हम खटिया, पलंग या टेबल चेयर भी खाते हैं, वे बड़े झूठ बोलने वाले हैं। जब हमारे मन में खूब उमंग आती है, तब कई प्रकार की चीजें हम शौक से चबाकर या चख कर देखते हैं, जैसे पेंसिल, रबर या बोतल के ढक्कन या सूखे जूते या मोटे कपड़े का थैला। सुना है कि मेरे दादाजी ने एक बार उत्साह में भरपूर हो कर एक अंग्रेज़ के तंबू का कोई आधा हिस्सा खाकर खत्म कर दिया था। पर भई, छुरी कैंची या शीशी बोतल, ऐसी चीजें हम कभी नहीं खाते। कोई कोई साबुन खाना पसंद करता है, पर वे तो बिल्कुल छोटी मोटी साबुनें हैं। मेरे छोटे भाई ने एकबार एक पूरी बार सोप खा ली थी - " कहकर व्याकरण सिंह आस्मान की ओर आँखें किए व्या व्या की आवाज में ज़बर्दस्त रोने लगा। इससे मैं समझ गई कि साबुन खाकर उस भाई की समय से पहले ही मौत हो गई होगी।
अंट संट वंट अब तक लेटा लेटा सोया हुआ था, अचानक बकरे की विकट रोने की आवाज सुन वह हाँऊ माँऊ कहता धड़धड़ाकर उठ पड़ा और बुरी तरह हाँफने लगा। मैंने समझा कि इस बेवकूफ की तो अब मौत ही हो गई! पर थोड़ी देर बाद वह उसी तरह हाथ पैर उछालता खिक् खिक् कर हँस रहा है।
मैं बोली, "इसमें हँसने की क्या बात हुई?"
वह बोला, "अरे, एक आदमी जो था, वह कभी कभी ऐसे भयंकर खुर्राटे मारता कि सभी उस पर बिगड़े रहते! एक दिन उसके घर बिजली गिरी और सब जाकर उसे धमाधम पीटने लगे - हो हो हो हो - " मैं बोली, "क्या फालतू बातें करते हो?" यह कह कर जैसे ही लौटने लगी, झाँक कर देखा कि एक सिरमुँड़ा नौटंकी के किसी चरित्र सा शेरवानी और पाजामा पहने हँसती हुई शक्ल बनाए मेरी ओर देख रहा है। उसे देखते ही मेरे बदन में आग सी लग गई। मुझे वहाँ से आँखें हटाते देख कर उसने बड़े प्यार दुलार से गर्दन टेढ़ी कर दोनों हाथों को हिलाकर कहना शुरु किया, "नहीं भाई, नईं भई, अभी मुझे गाने को मत कहना। सच कहता हूँ, आज मेरा गला इतना साफ नहीं है।"
मैं बोली, "अच्छी मुसीबत है! तुम्हें गाने को कहा ही किसने है?"
वह आदमी ऐसा बेहया निकला, मेरे कानों के सामने भुनभुनाने लगा, "गुस्सा आ गया, हाँ भई, गुस्सा क्यों करती हो? अच्छा कोई बात नहीं, कुछ गीत सुना ही देता हूँ, गुस्से की क्या ज़रुरत है भई?"
मेरे कुछ कहने के पहले ही वह बकरा और अंट संट वंट एक साथ चिला उठे, "हाँ, हाँ, गाना हो, गाना हो," तुरमत उस सिरमुँड़े ने जेब से लंबे गानों की दो पट्टियाँ निकालीं, उन्हें आँखों के पास रखा और गुनगुनाते हुए अचानक पतली आवाज में चीखकर गाना शुरु किया - "लाल गीत में नीला सुर, मीठी मीठी गंध"
इसी एक पंक्ति को उसने एकबार गाया, दो बार गाया, पाँच बार गाया। दस बार गाया।
मैं बोली, "अरे, यह तो बड़ा बवेला मचा दिया, गीत में क्या और कोई पंक्ति नहीं है?"
मुंड़े सिर ने कहा, "हाँ, है, पर वह एक और गीत है। वह है - "अली गली चले राम, फुटपाथ पे धूमधाम, स्याही से चूने का काम।" यह गीत मैं आजकल नहीं गाता। एक और गाना है - नैनीताल के नए आलू - वह बहुत ही महीन आवाज में गाया जाता है। वह भी मैं आजकल नहीं गा सकता। आजकल मैं जो गीत गाता हूँ, वह है शिखिपाँख का गीत। इतना कहकर वह गाने लगा।
मिशिपाँख शिखिपाँख आस्माँ के कानों में
ढक्कन लगी शीशी बोतल पतले से गानों में
शमा भूले टेढ़ी लौ दो दो कदम कित्ती दूर
मोटा पतला सादा काला छलछलक छाया सूर
मैं बोली, "यह भी कोई गीत हुआ?" इसका तो सिर पैर कुछ नहीं है।"
अंट संट वंट बोला, "हाँ, यह गीत बड़ा कठिन है।"
बकरा बोला, "कठिन क्या है? बस जो शीशी बोतल वाली बात थी, वह सख्त लगी, इसके अलावा तो कुछ कठिन नहीं था।"
सिरमुँड़े ने मुँह फैलाकर कहा, "अगर तुमलोग आसान गीत सुनना चाहते थे, तो ऐसा कह ही सकते थे। इतनी बातें सुनाने की क्या ज़रुरत है? मैं क्या सहज गीत नहीं गा सकता क्या?" यह कह कर उसने गाना शुरु किया।
कहे चमगादड़, अरे ओ भाई साही
आज रात को देखोगे एक मजाही
मैं बोली, "मजाही कोई शब्द नहीं होता।"
मुँड़ासिर बोला, "क्यों नहीं होगा - ज़रुर होता है। साही, सिपाही, कड़ाही सब हो सकते हैं, मजाही क्यों नहीं हो सकता?"
बकरा बोला, "अरे तुम गाना तो चालू रखो - क्या होता है या नहीं होता है, यह सब बाद में देखा जाएगा।"
बस वह गीत शुरु हो गया -
कहे चमगादड़, अरे ओ भाई साही
आज रात को देखोगे एक मजाही
आज यहाँ चमगादड़ उल्लू सारे
सब मिल आएँगे, चूहे मरेंगे बेचारे
मेंढक और बेंगची काँपेंगे डर से
फूटेंगी उनकी घुमौड़ियाँ पसीने भर से
दौड़ेगा छुछुंदर, लग जाएगी दंतकड़ी
फिर देखना छिंबो छिंगा चपलड़ी
मैं फिर रोकने जा रही थी, पर सँभल गई। गीत चलता रहा,
साही बोला, अरे झाड़ी में अभी
मेरी बीबी सोने गई, देखो तो सभी
सुन लो अरे ओ उल्लू - उल्लूआनी
शोर से 'गर टूटी उसकी नींद सुहानी
चूर मचूर कर दूँगा मैं खुरच खुरचा कर
यह बात तुम्हीं उन्हें कहना समझाकर
कहे चमगादड़, उल्लू के घर परिवार
कोई क्यों माने तुम्हारी दादा हुँकार
है कोई सोता जब रात हो अँधेरी?
बीबी है तुम्हारी पगली और नशेड़ी
भैया तुम भी हो चले आजकल झक्की
चाट चाट चिमनी, शक्ल काली चक्की
गाना अभी और भी चलता या नहीं मालूम, पर इतना पूरा होते ही शोरगुल सा मच गया। देखती क्या हूँ कि आसपास चारों ओर भीड़ जमा हो गई है। एक साही आगे बैठकर फूँ फूँ कर रो रहा है और नकली बालों की टोपी सी पहने एक मगरमच्छ बहुत बड़ी एक किताब से धीरे धीरे उसकी पीठ पर थपथपी दे रहा है और फिसफिसा कर कह रहा है, "रोना मत, रोना मत, सब ठीक कर दे रहा हूँ। " अचानक तमगा लगाए, पगड़ी पहना, हाथ में एक स्केल लिए एक भेक मेढक बोल उठा, "मानहानि का मुकदमा होगा।"
तभी कहीं से काला चोगा पहना एक हूट हूट उल्लू आकर सबके सामने एक ऊँचे पत्थर पर बैठकर आँखें मींच झूमने लगा और एक बड़ा भारी छुछुंदर एक भद्दे गंदे पंखे से उसे हवा करने लगा।
उल्लू ने खोई खोई आँखों से एक बार चारों ओर देखा, फिर तुरंत आँखें मींचकर कहा, "शिकायत पेश करो।"
उसके इतना कहते ही मगर ने बड़ी तकलीफ से रुआँसा चेहरा बनाकर आँखों में नाखून डालकर खरोंच के पाँच छः बूँद पानी निकाला। उसके बाद जुखाम वाली मोटी आवाज में कहने लगा, "धर्मावतार हुजूर! यह मानहानि का मुकदमा है। इसलिए पहले यह समझना होगा कि मान किसे कहते हैं। अरबी जाति की जड़ वाली सब्जियों को मान कहते हैं। अरबी बड़ी पौष्टिक चीज है। कई प्रकार की अरबी होती है, देशी अरबी, विदेशी अरबी, जंगली अरबी, पानी की अरबी इत्यादि। अरबी के पौधे की जड़ ही तो अरबी है, इसलिए हमें इस विषय की जड़ तक जाना चाहिए।"
(आगे अगली किस्तों में)
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