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मीरा नंदा का एक आलेख

मेरी मित्र मीरा नंदा का एक आलेख पिछले रविवार 'हिंदू' अखबार में आया। वैसे तो देश का एकमात्र अखबार कहाने लायक अंग्रेज़ी अखबार होने के नाते सब ने पढ़ा ही होगा, फिर भी अगर किसी ने न पढ़ा हो तो ज़रुर पढ़ो। हमारे समय का एक ज़रुरी आलेख जो हमें सोचने को मज़बूर करता है।

Comments

Manjit Thakur said…
बहुत पहले हमने आजकल में, आरोह (एक छोटी साहित्यिक पत्रिका) और हंस वगैरह में लाल्टू की रचनाएं पढी थीं। उस वक्त हम स्कूल में पढ़ा करते थे, और बाद में खेती-बारी पढ़ने के बावजूद शहंशाह आलम, लाल्टू और संजीव, ग्यान चतुर्वेदी जैसों की वजह से हम हिंदी की रचनाएं पढ़ते रहे। चूंकि पूरा माहौल अंग्रेजी की किताबों और साहित्य का भी था, तो जेड़ श्रेणी से लेकर चेतन भगत तक हम पढ़ते रहे। इतना महज इसलिए पूछ रहा हूं कि क्या आप वही लाल्टू हैं? अगर हां, तो आरोह में आपकी पढ़ी रचनाएं ताजा हो गईं हैं। बल्ॉग जगत में आपको पाकर असीम आनंद की अनुभूति हो रही है।
Anonymous said…
मीरा नंदा का लेख पढ़ा. एक बार और मरण में से गुजरा.

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