Thursday, August 06, 2015

वे मुझसे लेश भर भी कम नहीं हैं


जसम के लिए सम्मेलन के लिए दिल्ली गया तो रोहतक से धीरेश ने कहा कि वहाँ जाना होगा। 31 की रात को नीर, सुमन, धीरेश और धर्मवीर भाई के साथ रोहतक पहुँचा। अगले दिन सुबह कोई पचास दोस्तों ने बड़े धीरज और प्यार से कविताएँ सुनीं। इसके पहले सुबह-सुबह शुभा और मनमोहन के साथ चाय-नाश्ता पर बातचीत की। कई सालों के बाद मिल रहा था, और उनके प्यार से बड़ी ताकत मिली। कविताएँ सुनकर कई सवाल आए। लंबी बातचीत चली। पुराने दोस्त तो मिले ही, नए दोस्त बनाए।
 

इधर अभी अश्लील साइट्स को प्रतिबंधित करने पर जो बहस चली है, उसमें दलेल बेनबबाली की यह टिप्पणी बड़ी रोचक लगी -

I am against imposing the burqa, because it degrades women, but I am against its ban by the French government.
I am against the porn industry, because it degrades women, but I am against its ban by the Indian government.
And no, it's not contradictory.
(मैं बुरखा को लाजिम करने के खिलाफ हूँ, पर मैं फ्रांस की सरकार द्वारा इसके प्रतिबंध के खिलाफ हूँ। मैं अश्लीलता के उद्योग के खिलाफ हूँ, क्योंकि इससे स्त्रियों का अपमान होता है, पर मैं भारत सरकार द्वारा इसके प्रतिबंध के खिलाफ हूँ।
और हां, इसमें कोई विरोधाभास नहीं है।)

दलेल अल्जीरियन मूल की फ्राँसीसी हैं और इन दिनों भारत में हैं। बहरहाल, 'सदानीरा' के ताज़ा अंक में अमेरिकी कवि वाल्ट ह्विटमैन की दो कविताओं का अनुवाद आया है, उनमें से एक यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ। उनकी कविताओं का अनुवाद मैं पहले भी कर चुका हूँ, जिनमें से कुछ आप यहाँ (1, 2, 3) पढ़ सकते हैं। 
 

स्त्री मेरे इंतज़ार में



वह स्त्री मेरा इंतज़ार कर रही है, वह भरपूर है, उसमें कुछ भी नहीं छूटा

पर कुछ भी क्या होता जो काम न होता, या कि सही मर्द का द्रव न होता

काम में सब है, बदन, रूहें,

अर्थ, प्रमाण, शुद्धताएँ, नज़ाकत, नतीज़े, प्रचार,

गीत, आदेश, स्वास्थ्य, गर्व, मातृत्व का रहस्य, वीर्य-रस

सभी आशाएँ, खैरात, सम्मान, सभी ख़्वाहिशें, प्रेम, खूबसूरती, धरती की हर खुशी,

सारी हुकूमतें, काजी, देव, दुनिया के अनुकरणीय जन,

ये काम में हैं, उस का हिस्सा हैं और उसे सही ठहराती हैं।

जो भी पुरुष मुझे भाता है वह बिना लाज अपने काम-उल्लास को खुलकर स्वीकारता है

जो स्त्री मुझे भाती है वह बिना लाज खुलकर अपना काम-उल्लास स्वीकारती है।

अब मैं जड़ स्त्रियों से दूर चला

मैं तो उसके साथ रहने चला जो मेरा इंतज़ार कर रही है, और उनके साथ जिनके खूँ में ग़र्मी है और जो मुझे खुश रखती हैं

मैंने देखा है कि वे मुझे समझती हैं और मुझे अस्वीकार नहीं करतीं,

मैंने देखा है कि वे मेरे योग्य हैं, मैं उन स्त्रियों का समर्थ पति होऊँगा।



वे मुझसे लेश भर भी कम नहीं हैं

चमकती धूप और बहती हवाओं ने उनके चेहरों में रंगत ला दी है

उनकी मांसलता में पक चुका दैवी लचीलापन और ताकत है,

वे तैरना, नाव चलाना, घुड़सवारी, कुश्ती लड़ना, निशानेबाजी, दौड़ना, धावा बोलना, पीछे हटना, आगे बढ़ना, विरोध करना, अपनी रखवाली करना जानती हैं,

वे अपने तईं भरपूर हैं - वे शांत, साफ, अपने-आप में सुगठित हैं।

ऐ स्त्रियों, मैं तुम्हें पास खींचता हूँ

मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता, मैं तुम्हारा भला करूँगा

मैं तुम्हारा हूँ, और तुम मेरी हो, यह बस परस्पर के लिए ही नहीं, बल्कि औरों के लिए है

हमसे बड़े नायकों और कवियों को तुम्हारी नींद ढँके हुए है

मेरे सिवा किसी और के स्पर्श से वे जागेंगे नहीं।

यह मैं हूँ, ऐ स्त्रियों, मैं आगे बढ़ता हूँ

मैं सख्त, तीखा, चौड़ा हूँ, मैं हटूँगा नहीं, पर मैं तुम्हें प्यार करता हूँ

जितना तुम्हारे लिए ज़रूरी है, तुम्हें उससे अधिक तकलीफ नहीं देता,

इन राज्यों के लिए काबिल बेटे-बेटियाँ पैदा करने को मैं तुम्हारे अंदर सत्व डालता हूँ, मैं धीमी रूखी उद्दंड शिराओं से दबाव डालता हूँ

मैं खुद को प्रभावी ढंग से तैयार करता हूँ, मैं कोई गुजारिश नहीं सुनता,

अरसे से अपने अंदर जो जमा है, जब तक उसे डाल न दूँ, मैं निकलने की ज़ुर्रत नहीं कर सकता।

तुम्हारे जरिए मैं अपनी थमी हुई नदियों को बहाता हूँ

आगे के हजारों साल मैं तुममें समेट लेता हूँ

मैं अपने और अमेरिका से सबसे प्रिय जनों के चित्र तुम पर तराशता हूँ

जिन बूँदों को मैं तुममें स्वच्छ डालता हूँ, उनसे जोशीली और चुस्त लड़कियाँ, नए कलाकार, संगीतकार और गायक जन्मेंगे,

जिन बच्चों को मैं तुम्हारे अंदर पैदा करता हूँ वे अपनी बारी में बच्चे पैदा करेंगे,

यह मेरी माँग है कि मेरे प्रेम की लागत से संपूर्ण मर्द-औरत जन्म लें,

मेरी उम्मीद है कि जैसे हम संभोग कर रहे हैं, वैसे ही वे भी औरों के साथ संभोग करेंगे,

जैसे मैं अभी बरसा रहे बौछारों से उम्मीद करता हूँ, मुझे उनकी बौछारों के फलों से उम्मीद रहेगी,

प्रेम में मगन जिन जन्म, जीवन, मृत्यु, अमरता को मैं अब रोप रहा हूँ, उनसे प्रेम भरी फसल की उम्मीद मैं करता रहूँगा।

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