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इक्कीसी कानून

जब समय कम हो और लग रहा हो कि बहुत वक्त बीत गया, कुछ पोस्ट नहीं किया, तो या तो अपनी कोई प्रकाशित कविता या फिर सुकुमार राय - यही फिलहाल।
तो दोस्तो, आबोल-ताबोल से एक और अनुवाद।


इक्कीसी कानून


शिव ठाकुर के अपने देश,
आईन कानून के कई कलेष।
कोई अगर गिरा फिसलकर,
प्यादा ले जाए पकड़कर।
काजी करता है न्याय-
इक्कीस टके दंड लगाए।

शाम वहाँ छः बजने तक
छींको तो लगे टिकट
जो छींका टिकट न लेकर,
धम धमा दम, लगा पीठ पर,
कोतवाल नसवार उड़ाए-
इक्कीस दफे छींक मरवाए।

जो किसी का हिला भी दाँत
चार टके जुर्माना माँग
किसी की निकली मूँछ
सौ आने की टैक्स पूछ -
पीठ कुरेदे गर्दन दबाए
इक्कीस सलाम लेता ठुकवाए।

चलते हुए कोई देखे अगर
दाँए बाँए इधर उधर
राजा तक दौड़े खबर
उछलें पल्टन बाजबर
भरी दोपहर धूप खटाए
इक्कीस कड़छी जल पिलाए।

जो लोग कविता करते हैं
उन्हें पिंजड़ों में रखते हैं
पास कानों के नाना सुर में
पढ़ें पहाड़ा सौ मुष्टंडे
बहीखाते मोदी के पकड़ाए
इक्कीस पन्ने हिसाब लगवाए।

वहाँ अचानक रात दोपहर
भरे खर्राटे नींद में अगर
झट जोरों से सिर में रगड़
कसैले बेल में घुला गोबर
इक्कीस चक्कर घुमा घुमाकर
इक्कीस घंटे रखें लटकाकर।

Comments

Anonymous said…
क्या बात है , लाल्टू जी !

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