My Photo
Name:
Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Tuesday, March 13, 2007

चार लाइनें

मसिजीवी ने दो बार याद दिलाया कि चिट्ठों की दुनिया से छूट चुका हूँ। बिल्कुल छूटा नहीं हूँ। पढ़ता रहता हूँ। खुद लिख नहीं पा रहा था। चलो तो चार लाइनें कुछ लिखा जाए।

उत्तरी भारत के दीगर इलाकों में जब लोग बसंत की आवभगत में जुटे होते हैं, हैदराबाद और बंगलूर जैसे दक्खनी शहरों में गर्मी का कहर बरपने लगता है। हम भी इसी दौर में हैं। पता नहीं कैसे वर्षों से खोया धूप का चश्मा ढूँढ निकाला है। बड़े काले शीशों वाली ऐनक।

पानी की समस्या है। नगरपालिका मंजीरा बंध से पानी सप्लाई करती है। पर इसका कोटा है। और जिस तरह चारों ओर धड़ाधड़ मकान बनते जा रहे हैं, पानी बँट रहा है और कुल सप्लाई खपत की तुलना में बहुत कम है। इसलिए बोर वेल का इस्तेमाल हर घर में होता है। बोर वेल के पानी में लवणों की मात्रा अधिक है और पानी का स्वाद अच्छा नहीं है। तो क्या किया जाए? नगरपालिका टैंकरों में पानी बेचती भी है। मंजीरा के अलग रेट और बोर के पानी के अलग। तो जिसके पास पैसे हैं, उसे बढ़िया पानी और जिसके पास नहीं उसे नहीं।

सोचने की बात है। किसानों को पानी चाहिए। झोपड़ियों में रह रहे गरीब लोग घंटों इंतज़ार कर पानी लेते हैं। हमें जो पानी मिलता है, हम उससे खुश नहीं हैं। खास बात नहीं। हजार बार सोची गयी बात। पर फिर भी फिर फिर से सोचने वाली बात।

Labels:

4 Comments:

Blogger मसिजीवी said...

लिखने का सोचा.... बहुत भला सोचा।

अगर पानी की बात खास नहीं तो शायद कुछ भी खास नहीं।

वैसे ये केवल कल्‍पना ही है कि कैसे लगते हैं आप इस नए रंगीन चश्‍मे में। :)

8:01 PM, March 13, 2007  
Blogger ePandit said...

स्वागत है फिर से, आदमी कितना भी व्यस्त हो फिर भी सप्ताह में एक पोस्ट तो लिखी ही जा सकती है।

4:57 AM, March 14, 2007  
Blogger Pratyaksha said...

लिखा करें ।

9:45 AM, March 14, 2007  
Blogger अनूप शुक्ल said...

लिखा करें नियमित!

11:48 PM, March 14, 2007  

Post a Comment

<< Home