My Photo
Name:
Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, January 28, 2007

नेवला

आज मैंने मकान के पीछे के जंगल में एक नेवला देखा। छत में खड़ा शाम की आखिरी उछल-कूद मचाती लंबी पूँछ वाली मैनाएँ देख रहा था, तभी उसे देखा। चलते चलते बीच बीच में जैसा खतरा भाँपते हुए रुक रहा था। मैं छत से नीचे उतर बेटी को बुलाने आया। वह कंप्यूटर पर फिल्म देख रही थी। मैं वापस ऊपर गया। तब तक वह बहुत दूर पहुँच गया था और मेरे उसे ढूँढ निकालते ही वह झट से एक गड्ढे में घुस गया। तभी कहीं से वहाँ एक मोर आ गया। मुझे आश्चर्य हुआ, क्योंकि यहाँ पहला मोर देखा। लगा जैसे ये सब यहीं थे और मुझे पता ही नहीं था। इतनी जानें मेरे पास और मैं खुद को अकेला ही समझता रहा।

पिछले कई हफ्तों से लगातार हो रही निठारी की दर्दनाक वारदात पर लिखने की कोशिश करते हुए लिख न पा रहा था। हर बार जैसे अंदर से पित्त भरा गुबार उमड़ आता था।
इस नेवले की चाल देख कर लिखने का मन हो आया।

कई साल पहले मध्य प्रदेश में हरदा शहर के सिंधी कालोनी में एक मकान में कुछ समय के लिए ठहरे थे। वहाँ एक नेवला अक्सर घर के अंदर आ जाता था। मेरी पत्नी को समझ में नहीं आ रहा था कि यह नेवला क्या बला है - तो एक दिन मैं कह ही रहा था और उसने पूछा कि आखिर कैसा होता है यह नेवला और तभी श्रीमान साक्षात् खिड़की पर आ मौजूद हुए। आज वह घटना याद हो आई।

Labels:

6 Comments:

Blogger Divine India said...

चलिए आपका मन तो हलका हुआ…निठारी पर आप कुछ लिखेगें आशा करता हूँ…

9:07 PM, January 28, 2007  
Blogger मसिजीवी said...

हॉं लाल्‍टू , मित्र निठारी, नेवले और मोर सब यहीं होते हैं ठीक हमारे पिछवाड़े वस हम ही अक्‍सर उनहें नजरअंदाज करने का फैसला ले बैठते हैं, गनीमत है ये नेवले और मोर खोदकर नहीं निकालने पड़े।

कुछ महीने पहले तक मैं एक स्‍कूल में पढ़ाता था जिसकी रसायन विज्ञान प्रयोगशाला में जो भूमितग नाली थी उसमें नेवला बाकायदा रहा करता था। शंतिपूर्ण सहअस्तित्‍व....

2:07 PM, January 30, 2007  
Blogger Neelima said...

लाल्टु जी हम जी ही नेवला युग में रहे हैं घरों के पिछवाडों में और कितने नेवले हैं किसे पता ..

1:25 PM, February 05, 2007  
Blogger सिद्धान्त जैन said...

लाल्टु जी को नेवला दिखा तो अच्छा लगा जान कर की आज कल भी ऐसे जानवर बाहर निकलने की हिम्मत कर लेते है, नही तो किसी ने ठीक ही कहा है कि :
कैद मे कर लिया यह कह कर सापो को सपेरो ने,
कि ये मौसम तो इन्सान को इन्सान से कटाने का है.

लाल्टु जी मै आपके निठारी पर लेख की प्रतिक्षा कर रहा हुँ,

4:38 PM, February 05, 2007  
Anonymous Anonymous said...

Sir, this is the first time I saw your blog. It is really very very imaginative and creative.

11:03 PM, February 07, 2007  
Anonymous Anonymous said...

visited your blog after a long time. The reactions that Nithari evokes paralyse me , into paranoia and unmanagable repulsion . I wonder what retribution would be adequate for the duo and their accomplices ?
Reading " Two Lives " by vikram Seth . Another biography that recounts , through the lives of protagonists , the horrors of Naziz . We do not seem to civilised much since then .
shikha

3:44 PM, February 10, 2007  

Post a Comment

<< Home