Saturday, December 03, 2005

कंप्यूटर

कंप्यूटर

स्मृति
का एक टुकड़ा इस कार्ड में है
दूसरा उसमें

एक टुकड़ा यह विकल्प देता है
कि स्मृति को हम
बचपन जवानी या बुढ़ापे में बाँटें
या बाँटें लिखने और पढ़ने के कौशल में
या देखने सूँघने या चखने की आदत में
बाँटने के अलग अलग विकल्पों की उलझन से
हमें उबारता है एक और टुकड़ा

हम बटनों पर बैठे हैं
निर्जीव स्मृतियाँ अब चमत्कार नहीं
हमारी उँगलियों के स्पर्श से पैदा करती हैं
स्पर्धाएँ
स्पर्धाओं में हार जीत
अहं, रक्तचाप

एक टुकड़ा
बुझते ही
बुझता है
एक टुकड़ा प्यार

चेतना और कंप्यूटर
में तुलना
चलती लगातार।

१९९५ (उत्तर प्रदेश(पत्रिका)-मार्च १९९७)

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