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चुपचाप अट्टहास - 35: हर सुंदर के असुंदर को अपनाया


मूँछ होती थी

काली कच्ची उम्र की

सिर पर उन दिनों के बालों के साथ जमती भली थी

आईना देखता उससे बातें करता था

कहता था कि वह कभी न गिरेगी

वह गिरी भी कटी भी

जब यह वारदात हुई

मैं दिनों तक दाँतों से नाखून काट चबाता रहा

लू में बदन तपाया

बारिश के दिन सड़कों में भीगा

हर सुंदर के असुंदर को अपनाया

इस तरह बना जघन्य

मूँछ फिर कभी खड़ी नहीं हुई

हर सुबह एक नए उस्तरे से उसे मुँड़वाता हूँ

फिर बाँट देता उस्तरा

गोरक्षकों को।



I had a moustache

dark one like a young adult

It used to match well with the hair on my head

I talked with it when looking at the mirror

I told it that it will never droop

And then it drooped and and I lost my dignity



For days I bit my nails

After it happened

I tanned my skin in blazing sun

Got drenched in pouring rain

I went for the ugly in all that is beautiful

This is how I turned ugly

The moustache never twisted upwards

Every morning I use a new razor to shave it off

And then I hand over the razor

to the cow-vigilantes.

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