Wednesday, December 14, 2011

दुर्घटनाओं और दुस्वप्नों के दो हफ्ते और

तो सोचा यह गया था कि बुक फेयर में घूमेंगे। दो हफ्ते मैंने लिखा नहीं  तो बुक फेयर भी नहीं हुआ। अब कल से शुरू हो रहा है। स्थान भी बदल गया है। इसी बीच तमाम ताज़ा दुर्घटनाओं और पुराने दुस्वप्नों के बीच दो हफ्ते और गुज़र गए।

कई साल पहले मेरे पी एच डी सुपर्वाइज़र अमरीका से भारत आए हुए थे और मैं उनसे मिलने चंडीगढ़ से दिल्ली आया था। जे एन यू में उनके भाषण के  बीच हम बातचीत कर रहे थे, मेरे गुरुभाई जो इन दिनों हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति हैं, उनके आफिस में बातें हो रही थीं। बातें देश की तरक्की पर हो रही थीं। मैंने हताशा  से कुछ ही दिनों पहले हरियाणा के मंडी डभवाली इलाके में क्रिसमस के एक दिन पहले  एक स्कूल में एक समारोह के दौरान  लगी भयंकर आग का ज़िक्र  किया जिसमें कोई दो सौ लोग मारे गए थे, जिनमें अधिकांश बच्चे थे। सुनकर प्रोफ़ेसर ने कहा कि तुम इन बातों से ज़रा ज्यादा ही प्रभावित होते हो। हाल की कोलकाता की दुर्घटना को लेकर मैं इतना नहीं रोया जितना उन दिनों ऐसी घटनाओं पर सोचता था, तो क्या यह मेरी तरक्की की पहचान है या जमे हुए दुखों की, जिनसे मैं क्रमशः पत्थर बनता जा रहा हूँ।


मार्क टली ने कहा है कि 'जुगाड़' और 'चलता है' मानसिकता से हिंदुस्तान आगे नहीं बढ़ सकता। हमारा कहना है कि ज़मीनी सच्चाइयों से अलग हटकर हम महान ही महान हैं मानसिकता से भी नहीं।

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