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तीस साल पहले नया साल


तीस साल पहले कभी ये कविताएँ लिखी थीं. दूसरी वाली शायद 1990 के आसपास जनसत्ता के चंडीगढ़ एडीशन में छपी थी. उन दिनों दक्षिण अफ्रीका में  नस्लवादी तानाशाही थी.

नया साल

ऐसे हर दिन वह उदास होता है
जब लोग नया साल मनाते हैं
हाथों में जाम थामे
एक दूसरे को चुटकुले सुनाते हैं
विडियो फिल्में देखते
हँसते हँसते बेहाल होते हैं

वह हवाओं में तैरता है
ऐसे किनार ढूँढता
जहाँ नाचती गाती भीड़ में
वह भी शामिल है
जब उल्लास के छोर पर पहुँचता है
ठंड की चादर आ जकड़ती है
बातों में मशगूल लोग
उससे दूर चले जाते हैं
वह उनकी ओर बढ़ते हुए
ज़मीन पर पाँव गाड़ने की
कोशिश करता है

वह डूबने लगता है
हवा उसके नथुनों में जोर से घुसती है
दम घुटते हुए सहसा उसे याद आते हैं
पुराने उन्माद भरे गीत
जो पहाड़ों के बीच अकेले गाए थे
हालांकि वह अकेला न था
न वो घाटियाँ
घाटियाँ थीं।


हर नए साल में एक बात होती है
वह बात पिछले साल के होने की होती है
पिछला साल होता है बहुत सारी धड़कनों का
समय अक्ष पर बंद हो चुका गणितीय समूह

पिछला साल होता है
उदासी भरा
आने वाले साल को काले साए सा घेरे हुए
अनगिनत सवालों भरी आँखों का तनाव होता है
अनगिनत अनिश्चितताएँ नए साल में पटकता
अपने किए पर अट्टहास कर गुजरता

पिछला साल होता है
खून से रंगे बड़े दिनों का
यौवन के बार बार असावधान आक्रोश का

पिछला साल होता है
तीन सौ पैंसठ दक्षिण अफ्रीकी दिन रातों का
अनगिनत उपहासों का
होता है पिछला साल

पिछले साल की ये बातें
होती हैं नए साल में
थके हुए हम
हर नए साल याद करते हैं पिछले सालों को
कब आएगा हमारा नया साल!

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