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आलोचना के प्रश्नपत्र

पता नहीं यह कविता  कब लिखी थी, शायद ट्वेंटी-ट्वेंटी वाले दिनों में या उसके भी पहले. 
पहली जनवरी को जनसत्ता में प्रकाशित हुई. 
अश्लीलता की कई सारी परिभाषाएं हैं इस कविता में - एक मेरे अपने अकादमिक दुनिया के साथ जुड़ी है. 
अश्लीलता पर मैंने कई सारी कवितायेँ लिखी हैं - यह उनमें  से एक है. 
संयोग से यह तब छपी जब भारत की क्रिकेट टीम की किस्मत जहन्नुम के चक्कर काट रही है. 
 
अश्लील कविता

पैड, दस्ताने, हेलमेट में
जवान लड़के
वाकई एक और जंग

वाजिब लोगों की बातों में जुम्ले
क्रिकेट क्रिकेट क्रिकेट
एकबार साथ छिड़ी पुरानी भी जंग
एक जंग और
और एक जंग
में छिड़ी जंग
असली जंग

अखबार टी वी वेबसाइट इंटरनेट
लोगों ने जम कर लड़ी  जंग

ऐसे ही वक्त में देखा मैंने
चीथड़ों से झलकता उसका सूखा जिस्म बदरंग।

इस तरह लिखी अश्लील कविता मैंने।
अश्लील और तात्कालिक।

कविता को कहानी बनाते हुए मैंने अश्लीलता का चार्ट बनायाः
   
क्रिकेट क्रिकेट क्रिकेट – जंग
पुरानी जंग – जंग
जंग और जंग में जंग - जंग
जिस्म सूखा चीथड़ों में - जंग
मेरी चाहत - जंग
तात्कालिकता - जंग
अश्लीलता की वरीयता में इन जंगों को सजाओ प्रश्न
सोचा मैंने आलोचना के प्रश्नपत्र के लिए
और कागज कलम समेट लगा जरुरी कामों में।

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